हमारे पिताजी की उम्र 75 साल से ऊपर हो गयी थी। बुढ़ापे में पुरानी यादें ताजी होने लगती है। उनका दिन का अधिकांश समय टीवी पर समाचार देखते कटता था। टीवी के समाचारों नेताओंके भ्रष्ट आचरण की चर्चा आम बात है। एक दिन ऐसे ही समाचार देखने के बाद, पिताजीने मुझसे कहा नेताओंके दिल में भ्रष्टाचार के बीज तो स्वतन्त्रता मिलने से पूर्व ही पड़ चुके थे। अब तो बस वह बीज एक बड़ा वटवृक्ष बन गया है। उन्होने एक नेता का किस्सा सुनाया। नेताजी खुद को गांधीवादी कहते थे। नेताजी सार्वजनिक मंचों पर सदा सत्य, अहिंसा, ईमानदारी की बातें करते थे।
आज से लगभग 100 साल पूर्व हमारे दादाजी नौकरी के सिलसिले में दिल्ली आए थे। रंग-रसायन का धंधा करनेवाली एक जर्मन कंपनी में उन्हे नौकरी मिली थी। कंपनी का कार्यालय तिलक बाज़ार में था। उन्होने नया बाज़ार में किराए का मकान लिया। वह इमारत आज भी है। उस समय ग्राउंड फ्लोर पर ट्रांसपोर्ट कंपनी का कार्यालय था। पहिले माले पर दादाजी परिवार सहित रहते थे। द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने पर जर्मन कंपनी देश से बाहर चली गयी। दादाजीने खुद का धंधा शुरू किया और कोई दूसरा चारा भी नहीं था। उन्हे ज़्यादातर कस्टमर जर्मन कंपनी से विरासत में मिल गए थे। पहिले माले पर घर के सामने बड़ासा आँगन जिसके एक तरफ दो छोटे कमरे और एक बाथरूम भी था जिसका स्नान इत्यादि के लिए उपयोग होता था। इन कमरो में काम के सिलसिले में आने वाले व्यापारी इत्यादि रुकते थे। उस समय के रिवाज के अनुसार बाहर से आने वाले ज़्यादातर व्यापारी, दिल्ली के व्यापारियों के घरोंमे ही रुकते थे। दादाजी का ज़्यादातर धंधा आज के पंजाब और पाकिस्तान के व्यापारियोंके साथ था। जो अधिकांश मुस्लिम समाज से ही होते थे। वैसे भी आज भी रंगाई के धंधे में मुस्लिम समाज ही ज्यादा है। घर में एक मुस्लिम नौकर था। जो घर के छोटे-मोटे काम जैसे किराना, सब्जी लाना, हमारे पिताजी, चाचाओं इत्यादि को सड़कपार काबुली गेट स्कूल तक छोड़ने जाना और लाना, घर के बच्चोंकों बगीचे, मेले में घूमने ले जाना इत्यादि। बाहर से आए व्यापारियों को खाना देना भी उसका काम था। व्यापारी खाना बाहर के कमरो में ही खाते थे। हमारी दादी पंजाबी खाना भी बढ़िया बनाती थी। पंजाबी खाने के तरीका अर्थात एक बड़े थाल में बड़ी-बड़ी कटोरियों में सब्जी और दाल पहले ही परोस दी जाती थी और गरमा-गरम ताजी रोटियां रसोई से लाकर परोसी जाती थी। बाजार के अधिकांश व्यापारी हमारे दादाजी को बापूजी के नाम से पुकारते थे। बाद में घर में सभी बापूजी के नाम से ही पुकारने लगे थे।
स्वतन्त्रता से पूर्व देश के सभी भागों से काँग्रेस के नेता राजनीतिक कामकाज के लिए भी दिल्ली आते थे। जाहीर है कई नेता अपने समुदाय के लोगों के घर में ठहरना पसंद करते थे। एक मराठी नेता हमेशा हमारे घर आकर ठहरते थे। कॉंग्रेस हमेशा हिन्दू मुसलमान की एकता की बात करती हो, परंतु यह नेता छुआछूत मानने वाला था। नेताजी किसी मुस्लिम के हाथ का खाना तो दूर पानी भी नहीं पीते थे। हमारी दादी को उनके लिए अलग से खाना बनाना पड़ता था। उस काल के लोगोंकी सोच के हिसाब से उनका यह व्यवहार सामान्य ही था। हमारे दादाजी के मन में उनके लिए बहुत इज्जत थी। हमारे दादाजी उनके दिल्ली आने पर उनके आने-जाने का रेल का किराया और दिल्ली में घूमने का इन्तजाम करते थे। इसी तरह दादाजी को देश की आजादी के लिए थोड़ा सा योगदान देने की तसल्ली मिल जाती थी। देश को आजादी मिली। परंतु समय का चक्र कभी एक जैसा नहीं रहता। देश विभाजन का नतीजा हमारे दादाजी को भी भुगतना पड़ा। उनका धंधा चौपट हो गया। सर पर भारी कर्ज भी हो गया। ऐसी हालत में भी हमेशा की तरह वह नेता हमारे घर आकार ठहरा। उस दिन दादाजी ने हमारे पिताजी को नेता के वापसी का तिकीट निकालने रेलवे स्टेशन भेजा था। पर उन्होने सोचा ऐसे ज्यादा दिन नहीं चल सकता। वह अपने परिचित दिल्ली के एक कांग्रेसी नेता जिनका नाम शायद गुप्ता था मिलने गए। दादाजी ने उन्हे कहा, अब उनकी आर्थिक हालत खस्ता है। ऐसे में दिल्ली आने वाले कांग्रेसी नेता का खर्चा उठाना उनके बस में नहीं है। आज भी दूसरों से पैसा उधार लेकर नेता का वापसी का तिकीट निकाला है। अब तो देश आजाद हो चुका है। कांग्रेस पार्टी को अपने नेताओंके आने जाने का खर्च उठाना चाहिए। दादाजी की बात सुन गुप्ताजी हैरान रह गए। उन्होने कहा बापूजी, कांग्रेस पार्टी तो शुरू से ही बाहर से आने वाले नेताओंका खर्च उठाती रही है। उनके आने जाने का किराया और रहने का खर्च देती रही है।मेरी बातों पर विश्वास न हो तो मेरे साथ पार्टी कार्यालय चलो आपको भुगतान की रसीदे दिखा सकता हूँ। गुप्ताजी की बात सुन दादाजी स्तब्ध रह गए। गुप्ताजीने दादाजी को तसल्ली देते हुए कहा, बापूजी आप बहुत सीधे आदमी हो, वह नेता आपके सीधेपन का फायदा उठा रहा है। दुर्भाग्य से पार्टी ऐसे नेताओंसे भरी पड़ी है। गुप्ताजीने बापूजी को ऐसे भ्रष्ट नेताओंके कई किस्से सुनाये। गुप्ताजी के बातें सुन दादाजी को बड़ा सदमा पहुंचा, जिसे वह एक आदर्श नेता समझते थे, वह तो खोटा निकला। उस दिन दादाजी ने खाना नहीं खाया। शाम को जब वह नेता घर आए तो दादाजी ने उन्हे हाथ जोड़कर कहा। अब हमारी आर्थिक स्थिति खराब है, आगे से आपका घर में स्वागत नहीं कर पाएंगे। इस घटना के कई सालों बाद दादाजी ने यह किस्सा पिताजी को बताया था। पिताजी ने यह बात उनके बुढ़ापे में मुझे बताई। मैंने पिताजी से कई बार उस नेता का नाम पूछा परंतु गड़े मुर्दे उखाड़कर किसी गुजर चुके इंसान को बदनाम करना उचित नहीं होगा यह कहते हुए पिताजी ने उस नेता का नाम मुझे कभी नहीं बताया। किस्सा सुनाते समय भी नेता की प्रतिष्ठा का खयाल उन्होने रखा। उस नेता के कई कार्योंकी तारीफ भी की थी।
स्वतन्त्रता मिलने के पूर्व ब्रिटिश शासन के अधीन 1937 में हुए चुनावों में देश के कई राज्यों में कांग्रेस सत्ता का स्वाद चख चुकी थी। अंग्रेज़ जाने के बाद सत्ता की डोर कांग्रेस के पास ही आएगी ऐसा सोचकर अनेक मौका परस्त भ्रष्ट नेता कांग्रेस से जुड़ गए थे। उसी का परिणाम हमारे देश आज भुगत रहा है। अब तो हालत यह है की चाहे किसी दल का नेता भ्रष्टाचार कर जेलकी सजा काट आए, या नेता जेल में हो तब भी जनता उस दल को वोट देती है। नेताओंका भ्रष्ट आचरण अब कोई मुद्दा ही नहीं है।