बुधवार, 14 नवंबर 2018

हायकू: दिल्ली की हवा


हवा दिल्ली की
हलाहल से विषैली 
धीमे-धीमे लेती प्राण. 

स्माग में देखा 
यम का चेहरा 
कंठ में आया प्राण.

मंगलवार, 6 नवंबर 2018

मंगलवार, 16 अक्तूबर 2018

प्रदूषण, पराली और दिल्ली


अक्तूबर महीना शुरू होते ही दिल्लीमें बढ़ते प्रदूषण पर चर्चाएँ शुरू हो जाती है. आज तो वायु गुणवत्ता निदेशांक केन्द्रीय सचिवालय मेट्रो स्टेशन पर ३०० ऊपर अर्थात अत्यंत खरनाक स्तर पर है. बाकि दिल्ली का हाल इससे भी बुरा होगा. दिल के मरीज और अस्थमा के मरीजोंको तो आज घर से निकलना ही नहीं चाहिए.  

अब मीडिया और व्यवस्था का भोंपू बजना शुरू हो गया है. किसानोंने पराली जलानी नहीं चाहिए. प्रदूषण मुक्त दीवाली मनानी चाहिए, फटाके कदापि नहीं चलाने चाहिए इत्यादी. पराली के उपयोग और उसके निपटान की विधियों पर टीवी पर भारी चर्चा और अखबार आदि में बड़े बड़े लेख छपेंगे. न्यायलय भी पराली जलाने वाले किसानों पर कड़ी कार्रवाई के आदेश देगा.  किसान भी पराली जलाएंगे हमेशा की तरह. 

कल मेट्रो से घर जा रहा था. मुंह पर मास्क लगाये एक नौजवान ने सीट बैठे बूढ़े चौधरी की तरफ इशारा करते हुए कहा, ये लोग पराली चलते हैं और उसका नतीजा दिल्ली में हमें भुगतना पड़ता है. चौधरी को उसकी आवाज सुनाई दे गई. चौधरी का दिमाग सटक गया, वह जोर से बोला. हम तो साल में ज्यादा से ज्यादा १५-२० दिन पराली जलाते होंगे. तुम्हारी दिल्ली में लाखो गाड़ियां क्या रस्ते पे  खुशबू  बिखेरते हुए चलती है. दिल्ली का धुआं भी पंजाब हरियाणा पहुँचता है. कभी इस पर मिडिया में चर्चा हुई है. सत्य कडवा होता है, नौजवान को छोडो हम सभी की बोलती बंद हो गई. 

आज दिल्ली में १ करोड़ से ऊपर गाड़ियां सड़क पर चलती है. जिसमे ३२ लाख से ऊपर कार रोज सड़क पर होती है. ९०% कार मालिक आय कर भी नहीं भरते. बैंक सस्ते में कार लोन देते हैं.  सरकार भी पीछे नहीं रहती. गरीबोंके नाम पर पेट्रोल पर  सब्सिडी देती है. "सस्ते में कार खरीदो और प्रदूषण फैलाओ" शायद यही प्रशासन मनसुबा है. दूसरी तरफ पराली जलाने से  ज्यादासेज्यादा वायु गणवत्ता निदेशांक में २५ से ५० अंकों  की बढ़ोतरी  होती होगी. फिर भी प्रदूषण का ठीकरा किसानोंके  सर पर फोड़ा जाता है. अजीब नहीं लगता यह सब. 

प्रशासन सचमुच दिल्ली का प्रदूषण कम चाहता है, तो उसे सर्वप्रथम दिल्लीमें कारोंकी संख्या कम करने का उपायढूंढना होगा. कार पर  जीएसटी बढानी पड़ेगी, पार्किंग शुल्क बढ़ाना पडेगा. पेट्रोल  केवल  कार  में इस्तेमाल होता है, उसका रेट १०० क्या १५० भी कर दिया तो कोई फर्क नहीं पड़ता.  हाँ दिल्ली में १० लाख कार डिजेल पर भी चलती है. उन कारों पर साल का ५० से लाख रूपये डिजेल कार कर लगाया जा सकता है. ताकि ग्राहक डिजेल पर चलने वाली कार ना ख़रीदे. उसी धन को मेट्रो के विस्तार में और डीटीसी को सुधारने पर व्यय किया जा सकता है. १९९७ में दिल्ली की आबादी ८५ लाख थी और डीटीसी बसेस ८५०० थी. आज दिल्ली की आबादी २.५० करोड़ है और बसेस केवल ४५०० है.  मेट्रो फेज-IV पर भी अभी तक प्रशासन ने कोई निर्णय नहीं लिया है. निश्चित ही यह बड़ी दयनीय स्थिति है. प्रशासन दिल्ली  के प्रदूषण के लिए कभी राजस्थान से आने वाली धूल, काफी फटाकों को तो कभी खेत में जलने वाली पराली को दोष देता है. वैसे मैं खेत में पराली जलाने का कदापि समर्थन नहीं करता परन्तु पेट्रोल पर  सब्सिडी देने से अच्छा पराली के निपटान पर किसानों को सब्सिडी देना ज्यादा उचित  समझता हूँ.


सोमवार, 15 अक्तूबर 2018

पोपट बोला मिटू-मिटू


पोपट बोला 
मिटू-मिटू.

वकील बोला 
नोटीस आया.

पोलीस बोला 
चलो ससुराल.

मिटू-मिटू पोपट बोला 
उसको हार्टअटेकच  आया.
पती पत्नी वो का 
नतीजा सामने आया.


सोमवार, 8 अक्तूबर 2018

हायकू : सीता


(सीता किसान के खेत में उत्पन्न होती है.  उपज का एक हिस्सा राजा को कर के रूप में दिया जाता था.  जिसका प्रयोग राजा जनहित के लिए करता था, कृषकों की सुरक्षा करता था. परन्तु रावण ने भारतीय किसानों से  भरी कर इकठ्ठा कर लंका को सोने की बनाया. श्रीराम ने वह सीता  किसानों को लौटाई- हायकू में यही भाव प्रगट करने का प्रयास किया है)


खेत में मिली
सुवर्ण लक्ष्मी
किसान के.

कैद हुई 
दरबार में 
राजा के.

त्याग किया 
सीता का
वास्ते जनहित के.

लक्ष्मी के पैरोंसे 
उजियारा आया
घर किसान के. 


गुरुवार, 27 सितंबर 2018

कविता : कहाँ हुई गलती हमसे



(अल्पवयीन लड़कियों पर बलात्कार और उनकी घृणित हत्या. ऐसी घटनाएँ रोज हमारे  देश में क्यों हो रही है. आज का नौजवान  वासना के भंवर में क्यों डूब रहा है. कहाँ गलती हुई. अनेक प्रश्न मन में उठ रहे है.)

 
भरी दुपहरी में फैला क्यों
अमावस का अँधेरा आज.

किसने पैरों तले कुचल दी 
एक कमसिन कली आज.


माँ- बहनों के रिश्ते क्यों 
निरर्थक हो गए हैं आज.

ममता के कोख में क्यों 
पल रहे रक्त पिशाच आज.


वासना के भंवर में क्यों 
डूब रही जवानी आज.

कहाँ हुई गलती हमसे 
जो सजा भुगत रहे हैं आज. 


  

मंगलवार, 25 सितंबर 2018

मौत का इंतजार


जनकपुरी के 
 डिस्ट्रीक्ट पार्क में



चार 'बूढ़े'
   
पथराई आँखोंसे 
 कर रहे थे
इन्तजार मौत का.

लेकिन दिखावा 
"रमी" खेलने का.
 

बुधवार, 19 सितंबर 2018

हायकू: छह ऋतु (अर्थ के साथ)


हायकू जापानी काव्यविधा है. अधिकतम १७ शब्द और तीन पंक्तियों में भाव को समेटने की कला. हेमंत, वसंत, ग्रीष्म, श्रावण, शरद और शिशिर इन्ही छह ऋतुओं को   हायकू के माध्यम से व्यक्त करने का प्रयास किया है.

हेमंत ऋतु-  बर्फ पिघलने लगती है. रातें ठंडी है परन्तु संकट के बाहर निकलने की राह भी दिख रही है. ऐसे में भविष्य के नए सपने दिल में जगेंगे ही.  

सर्द रातो में 
हृदय में जगे 
सपने बसंतके.

वसंत ऋतु- जंगल में फूल महकने लगते हैं. भौंरे फूलोंपर मंडराने लगते है. नर कोयल भी मीठी आवाज में मादा को लुभाने लगता है. काम पीड़ित शरीर गंध बैचैन कर देती है.  

पलाश जले 
कोयल कूके 
देह महके.

ग्रीष्म:-  कामदेव ने भस्म होना ही है. दिल टूट जाते है. प्रेमी बिछड़ जाते है.ग्रीष्म इसी विरह का प्रतिक है. बिरहन की व्यथा मीरा से बढ़कर कौन जान सकता है. 

 परदेसी पिया 
बिरहन राती
व्यथा मीरा की.

वर्षा ऋतु: धरती और आकाश के मिलन की ऋतु. बरसात में  दोनों एकाकार हो जाते है. तन और मन से भी. सौतिया डाह से जली-भुनी  राधा देखती है, यमुना तट पर सभी कृष्ण सभी गोपियोंके साथ नृत्य कर रहा है. कौन गोपी-कौन कृष्ण. राधा सत्य को जान लेती है. प्रेम में द्वैत समाप्त हो जाता है.  

कृष्ण कदम्ब
कालिंदी कुञ्ज
 वर्षा प्यार की.

शरद ऋतु:  प्रेम सृजनशील है. धरती से लक्ष्मी प्रगट होती है. सुख सम्पन्नता चहुं ओर छा जाती है. हर मनुष्य सुखी सम्पन्न व ऐश्वर्शाली बनना चाहता है. सन्तति के माध्यम से अमर भी होना चाहता है.

शरद चांदनी  
अमृत बरसे 
ऐश्वर्यका.

शिशिर ऋतु: पेड़ोंसे पत्ते गिरने के दिन. हम मृत्यु को जीवन की समाप्त नहीं अपितु सम्पूर्णता मानते है.  "ॐ त्र्यम्बकम यजामहे सुगंधिम पुष्टि वर्धनम". यही भाव व्यक्त करने का प्रयास किया है. 
सुगंध फैला 
पक्व फलोंका 
पतझरी पत्तोंका.




मंगलवार, 18 सितंबर 2018

लघु कथा: पाताल लोक का सिक्का

राजा: "अपने कारीगरों से कहो, दुगने वजन के सिक्के बनाएं."

मंत्री: "महाराज, अपने कारीगर दुगने वजन का सिक्का बनाना नहीं जानते. 

राजा:  "नहीं जानते क्या मतलब, उन्हें पाताल लोक भेजो वजनी सिक्के बनाने का प्रशिक्षण लेने के लिए." 

कारीगर पाताल लोक गए, वजनी सिक्के बनाने का प्रशिक्षण लेकर वापस लौटे.  राजाने उन्हें पाताल लोक के सिक्कों से भी दुगने वजन के सिक्के बनाने को कहा.  

कारीगरोंके बनाये नए सिक्के देख राजाने सर पर हाथ मार लिया. 

अब उन्हें पाताल देश के एक सिक्के के बदले चार सिक्के देने पड़ते हैं.

जो इस कहानी के अर्थ को समझेगा, वही सच्चा अर्थतज्ञ?


टिप: कारीगरोंने पाताल लोक जाकर, वहांके सिक्के बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त किया था.