शनिवार, 5 सितंबर 2020

पुन: एकलव्य

 

एकलव्य चित्रगुप्त सामने खड़ा था, लेकिन उसका मन बेचैन था। वह चाहता था, बिना उसकी बात सुने चित्रगुप्त फैसला सुनाये. चित्रगुप्त ने एकलव्य के जीवन का खाता देखकर फैसला सुनाया, एकलव्य, तुमने कोई पाप कर्म नहीं किया है, इस कारण तुम्हें नरक नहीं भेजा जाएगा। लेकिन तुम्हारे  मन में कुछ अतृप्त इच्छाएँ शेष हैं, इसलिए तुम स्वर्ग नहीं जा सकते। तुम्हे  धरती पर वापस भेजने का निर्णय लिया है तुम्हे इस पर कुछ कहना है।  

एकलव्य ने कहा, हे भगवन, मेरे साथ अन्याय हुआ है। आपको पता होना चाहिए, मैं सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाना चाहता था, लेकिन द्रोणाचार्य ने राजकुमार अर्जुन के लिए  गुरुदक्षिणा के रूप में मेरा अंगूठा मांग  लिया। मेरी इच्छा अधूरी रह गई। हे भगवन, मेरी आपसे एक ही विनंती है, यदि आप ने मुझे धरती पर भेजने का फैसला ले ही लिया है, तो मुझे उच्चकुल में जन्म मिले और अर्जुन का जन्म एक वनवासी के घर में होना चाहिए, तभी अर्जुन मेरे साथ हुए अन्याय को समझ पायेगा. यह मेरी इच्छा है।


चित्रगुप्त ने कहा, एकलव्य, तुम बदले की आग में जल रहे हो, फिर से सोचो इसका परिणाम क्या होगा।


एकलव्य ने गुस्से से कहा, क्या सोचना हैक्या धर्म की अदालत में अन्याय होगा? चित्रगुप्त ने कहा, यहाँ किसी के साथ अन्याय नहीं होता है। "जैसा तुम चाहते हो वैसा ही होगापृथ्वी पर तुम एक उच्चकुल  में पैदा होगे और अर्जुन एक वनवासी कुल में।"


एकलव्य का जन्म कलियुग में पुण्यनगरी में एक मध्यम वर्गीय ब्राह्मण के घर में हुआ। पिता सरकारी नौकरी में थे। घर के हालात काफी अच्छे थे। एकलव्य ने एक पब्लिक स्कूल में पढ़ना शुरू किया। एकलव्य का केवल एक ही लक्ष्य था बारहवीं कक्षा में अच्छे अंक  लाना उसने स्कूल के अलावा कई क्लास्सेस भी लगाईं।  एकलव्य के अथक परिश्रम का नतीजाउसने बारहवी कक्षा में  95% अंक प्राप्त किए।


एकलव्य देश के एक प्रमुख शिक्षण संस्थान इंद्रप्रस्थ मैनेजमेंट कॉलेज में प्रवेश पाने के लिए इंद्रप्रस्थ पहुंचा। कोट-पैंट और टाई पहनकर एकलव्य कॉलेज के दरवाजे पर पहुँचा। वहाँ उसने एक लड़के को टूटी चप्पलें और गंदे कपड़े पहने देखा। उसे देखकर एकलव्य को अपना पिछला जन्म याद गया। एकलव्य ने ज़ोर से हँसते हुए कहातुम अर्जुन हो क्या? तुम निश्चित ही एक वनवासी परिवार में पैदा हुए होंगे।


अर्जुन की पिछले जन्म की स्मृति जागृत हो गई। उसने कहा एकलव्य, यह सच है, मैं एक वनवासी परिवार में पैदा हुआ हूँ। मैं आज सुबह छत्तीसगढ़ से यहां आया।  मैंने घर से 10-12 किमी मैं दूर के एक सरकारी स्कूल में पढाई पूरी की। मुझे 12 वीं कक्षा में 60% अंक मिले है। स्कूल के हेडमास्टर ने मुझसे कहा है की मुझे इंद्रप्रस्थ  मैनेजमेंट कॉलेज में प्रवेश अवश्य मिलेगा। इसलिए मैं यहाँ हूँ


एकलव्य ने जोर से हंसते हुए कहा, अर्जुन, मुझे 95% अंक मिले हैं. 90% से कम अंक वालों यहाँ आने की सोचना ही नहीं चाहिए। मुझे यह देखकर आश्चर्य है कि इतने कम अंक आने पर भी तुमने यहाँ आने की सोचा। इस पर अर्जुन ने कुछ नहीं कहा। प्रवेश के लिए प्रमाणपत्र जमा करने के बाद, एकलव्य अपने होटल में लौट आया। उसे यह सोचकर बड़ी ख़ुशी हो रही थी की कल परिणाम देखकर अर्जुन की क्या हालत होगी उस रात एकलव्य जीवन में पहली बार शांति से सोया।


अगले दिन सुबह 10 बजे एकलव्य कॉलेज पहुंचा। एकलव्य का नाम पात्रता सूची में नहीं था। एकलव्य से कम अंक लानेवाले अनेक विद्यार्थियोंका नाम पात्रता सूची में था। उसके गतजन्म के शत्रु अर्जुन का नाम भी उस सूची में  था। जरुर किसीने गड़बड़ की है, फिर से मुझपर किसीने अन्याय किया हैगुस्से में तमतमाया वह प्रिंसिपल के कार्यालय के सामने पहुंचा।


दरवाजे पर लगी तख्ती पर लिखा थाप्राचार्य श्री द्रोणाचार्य  तो यह बात है, दरवाजा खोल एकलव्य सीधे अंदर चला गया और  गुस्से में द्रोणाचार्य  पर चिल्लाया, मुझ पर अन्याय करते हुए आपको शर्म नहीं आती? उस अर्जुन के पास क्या  है, हर जन्म में  तुम उसका पक्ष लेते हो।


द्रोणाचार्य ने इस एकलव्य को पहचान लिया और कहा, एकलव्य,  मैंने कोई अन्याय नहीं किया है, नियमोंके अनुसार ही यहाँ सबको प्रवेश मिला है। मुझे बेवकूफ मत बनाओ, एकलव्य गुस्से से चिल्लाया। द्रोणाचार्य ने कहा, 'एकलव्य शांत हो जाओ', मेरी पूरी बात सुनो, यहाँ 50 सीटें उपलब्ध है। 70% स्थानीय छात्रों के लिए आरक्षित है। अतीत में दलितों, वनवासियों और पिछड़े वर्गों के साथ हुए अन्याय को दूर करने के लिए हमारी लोकतांत्रिक सरकार ने उन्हें कलियुग में आरक्षण दिया है। इसके अलावा, कुछ सीटें लड़कियों, विकलांग बच्चों, स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों और कुछ अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित हैं। तुमसे कम अंक पानेवाले अर्जुन के वनवासी  कोटे में  सर्वोच्च अंक हैं। उसी आधारपर उसे यहाँ प्रवेश मिला है।सामान्य श्रेणी में  केवल एक अंक कम आने की वजह से तुम्हे यहाँ प्रवेश नहीं मिल पाया। 


एकलव्य फिर से अर्जुन से हार गया था। उसने महसूस किया कि एक बार फिर से द्रोणाचार्यने उसका अंगूठा छीन लिया। वह फूटफूट कर रोने लगा।एकलव्य की  यह दशा देखकर द्रोणाचार्य ने कहाएकलव्य, तुम्हारी  इच्छा थी कि इस जन्म में अर्जुन  वनवासी बनें, पूरी हुई। लेकिन तुम  भूल गए थेसमय का चक्र हमेशा घूमता  रहता है, यह कभी अन्याय नहीं करता है एकलव्य चुपचाप उठ गया और वापस चला गया।