शुक्रवार, 27 मई 2011

सिंहासन चार पुतली


जम्बुद्वीपे, भरतखंडे, क्षिप्रा तटे, सुन्दर एंव रम्य अवन्ती नगरी थी. क्षिप्रा तट
विक्रमादित्य नित नेम से  उज्जैन की राज्यलक्ष्मी की  दीप, धूप, नैवैद्य दिखाकर  पूजा करता था.  अपने विनम्र स्वभाव से वह सदैव  मंदिर के पुजारीयों एवं देवी के भक्तों को  प्रसन्न रखता था. आखिरकार राज्यलक्ष्मी उसपर प्रसन्न हुई. उसकी कृपा से आज विक्रमादित्य सिंहासन पर बैठ्ने वाला था.   उज्जयनी नगरी दुल्हन की तरह सजी हुई थी.  दरबार लोगों से ठसाठस भरा हुआ था. मंत्री, सेनापती, सभासद, विदेशी दूत, गणमान्य अतिथी सभी उपस्थित थे. विक्रमादित्य की नजर सुवर्णजडित सिंहासन की ओर गई. जिसे चार पुतलियां थामे थी. उसका सपना पूर्ण होने के बीच केवल चार सीढियां थी. विक्रमादित्य पहली सीढी पैर रखने वाला था की एक पुतली उसके सामने प्रगट  हुई. उसकी उसकी आंखों पर पट्टी बंधी हुई थी. उसने विक्रमादित्य की और देखते हुए कहा, विक्रम मेरे प्रश्न का उत्तर दो, "राजा की नजर कैसे होनी चाहिये?"  विक्रमादित्य ने कहा, पुतलीके राजा "गरुड के समान होता है जो अपनी  तीक्ष्ण नजर से   प्रजा को कष्ट देने वाले सर्पसमान मंत्री, सामंतो एवं सरकारी अधिकारीयों को  खोजकर  दंडित करता है." पुतली खिलखिलाकर हंसी और बोली, विक्रम तू भोला है, गठबंधन के जमाने मे राजा को कभी बुरा देखना नहीं चाहिये.  मंत्री कितने ही 'आदर्श स्पेक्ट्रम घोटाले करें' राजा की नजर वहां नहीं पडनी चाहिये.  इस सीढी पर पैर रखने से पूर्व तुझे अपनी आंखों पर पट्टी बांधनी पडेगी.   राजा बनने को उत्सुक विक्रमादित्य ने शीघ्रता से अपनी आंखों पर पट्टी बांधी और पहली सीढी पर पैर रखा

अब वह दुसरी 
सीढी पर पैर रखने को था,  तभी  दुसरी पुतली प्रगट हुई. उसने अपने कानों  को दोनो हाथों  से ढका हुआ था. वह बोली विक्रमादित्य, "राजा ने कभी बुरा सुनना नाही चाहिये."  किसान भूख से आत्महत्या कर  रहें  हैं, राशन का माल काले बाजार मे बिकता है, सरकारी कर्मचारी बिना रिश्वत लिये कोई कार्य  नहीं करता है इत्यादी बुरी बातें सुनते समय राजा ने अपने कान ढकने चाहिये ताकी बुरी खबरें उसे सुनाई न दें.   उसे केवल, किसान खुश है, कर्मचारी ईमानदार है, खेल सफल हुए  हैं, इत्यादी खबरें ही सुननी चाहिये. पुतली कि बात मान, विक्रमादित्य ने अपने कान ढक लिये और उसने दुसरी सीढी पर पैर रखा.

अब वह तिसरी
सीढी पर पैर रखने को था,  तभी तिसरी  पुतली प्रगट हुई उसके मुख पर पट्टी बंधी हुई थी. वह बोली विक्रमादित्य, राजाने कभी बुरा नही बोलना चाहिये.
चाहे मंत्रीगण आपका आदेश ना माने, प्रजा का कल्याण भूल अपने ही कल्याण मे लगे हो तब भी राजा ने उन्हें कोई निर्देश नहीं चुप रहना चाहिये न ही क्रोध करना चाहिये बल्की  स्वयं शांत रहकर सब  'राज्यलक्ष्मी' पर छोड देना चाहिये.  विक्रमादित्य ने कहा, पुतलीके तुम्हारी यह शर्त भी मुझे मंजूर है. विक्रमादित्य ने अपने मुख पर पट्टी बांध ली और तिसरी सीढी पर पैर रखा.

अब विक्रमादित्य चौथी और अंतिम
सीढी पर पैर रखने को था,  तभी  चौथी  पुतली प्रगट हुई , वह बोली, विक्रमादित्य, चाहे आंखों पर पट्टी बंधी हो, कान ढके हों और मुख पर पट्टी बंधी हो. मनुष्य के पास आत्मा भी होती है. जिसकी आवाज उसे सदा बैचैन करती है.  आत्मा कि आवाज सुन तुम प्रजा का कल्याण करने के लिये न्याय मार्ग पर चलने का प्रयत्न कर सकते हो. और तुम्हें मालूम ही है न्याय मार्ग पर चलने वाले राजा हरिश्चंद्र को सत्ता गवानी पडी थी.  तुम अपनी आत्मा मुझे दे दो. सिंहासन पर बैठ्ने को अधीर विक्रमादित्य ने अपनी आत्मा उसके हवाले कर  दी और चौथी सीढी पर  पैर रख सिंहासन पर विराजमान हो गया.
राजा विक्रमादित्य कि जय हो से वातावरण गुंजायमान हो उठा. स्वर्गीय मधुर संगीत उसके कानों में गुंजने लगा. विक्रमादित्य ने अपनी आंखें मूंद ली. उसे दिखाई देने लगा -  हरी भरी धरती, खुशाल किसान, सुखी प्रजा ... स्वर्गीय संगीत कि धुन पर ताल देते हुए वह गुनगुनाने लगा -- दुखभरे दिन बीते रे भैया, अब सुख आयो रे,,,,
इस तरह राज्यलक्ष्मी कि कृपा से राजा विक्रमादित्य ने अनंत काल तक अवंती नगरी पर राज्य किया.  जो भी नेता
कलयुग में इस कहानी को मनपूर्वक सुनेंगा  उसे  विक्रमादित्य कि तरह राज्य कि प्राप्ती होगी.