शुक्रवार, 11 अगस्त 2017

अब की सावन में



आज मनुष्य ने धरती को नोच-नोच कर लुह्लुहान कर दिया है.  सड़े-गले   घावों से उठने वाली दुर्गंधी में साँस लेना भी दुष्कर हो गया है. पहले तो यमुना में  जहर उगलने वाला एक कालिय नाग था. परन्तु आज सभी नदी नालों में हजारो कालिय  नाग विष उगल रहे है. समस्त जल विषाक्त हो गया है.  प्रतिदिन धरती पर जीवन नष्ट हो रहा है. क्या यह प्रलय का आग़ाज तो नहीं है.

वडनावल: समुद्र से उठाने वाली प्रलयंकारी अग्नि 
संवर्तक मेघ: जलप्रलय के समय बरसने वाला मेघ. 


अब की सावन में 
वडनावल उठे समुद्र से 
सौ सालों तक बरसे
मेघ संवर्तक प्रलयंकारी.

जीर्ण शीर्ण काया को तज 
जलप्लावित प्रलय समुद्र में  
फिर अमृत स्नान करे धरती.

नववधु सी कोमल काया 
हरित वस्त्र का कर शृंगार 
गालों में लाली लिए 
धरती फिर मुस्काए.

नव सृजन के अंकुर फूटे 
कवी गण गाये 
वेदों की नयी ऋचाएं.

अब की सावन में 
वडनावल उठे समुद्र से 
सौ सालों तक बरसे 
मेघ संवर्तक प्रलयंकारी.