गुरुवार, 9 जून 2011

काली लक्ष्मी

बचपन के दिन याद आते हैं. मां संध्या के समय भगवान के सामने दिया जलाती थी. साथ ही हम बच्चे जोर- जोर से शुभम करोति कल्याणं, आरोग्यं सुख-संपदा .. का पाठ करते थे. साथ ही अपनी मातृभाषा मराठी में मां लक्ष्मी को घर आने का न्योता देते थे. जिसका हिंदी अनुवाद निम्न है:

आजा लक्ष्मी मेरे घर, मेरा घर तेरे लिये.
घर से पीडा बाहर जाये, बाहर कि लक्ष्मी घर में आये.

संध्या के समय सचमुच लक्ष्मी घर आती है. गृह स्वामी दिनभर मेहनत-मजदूरी कर यह लक्ष्मी घर लाता है. यह सौभाग्य सूचक श्रीलक्ष्मी है जो अपने साथ घर में सुख, चैन एवं सुख-संपन्नता लाती है. इसी श्रीलक्ष्मी का स्वागत हम करते हैं. हम सभी जानते हैं रात्री के अंधकार में दैवीय शक्तियां क्षीण होती हैं. इसीलिये हम तिजोरी, अलमारी अथवा संदूक को ताला लगाकर इसे सुरक्षित रखने का प्रयास करते हैं.



परंतु अंधकार फैलने के साथ ही पाताल के राक्षस धरती पर उत्पात मचाने लगते हैं. ये काली लक्ष्मी के आराधक हमारे घर कि लक्ष्मी को चुराते हैं व बाहर भेजते हैं. बदले में नशे का सामान व आतंकवाद रुपी पीडा लाते हैं. जिसका परिणाम यह होता है कलहग्रस्त हो हम दरिद्री व विपन्न बन जाते हैं. काली लक्ष्मी के बल पर ये कभी-कभी सत्ता भी प्राप्त कर लेते हैं. तब अंधकार कि शक्तियां पूरी शक्ति के साथ दैवीय शक्तियों को समाप्त करने में जुट जाती है. अंधरे में काली लक्ष्मी के आराधक राक्षसों को पराजित करना लगभग असम्भव ही होता है. अत: दैवीय शक्तियों को पराजय ही मिलती है. इन्हें परास्त करने के लिए सूर्योदय का इंतजार करना जरुरी है. अथवा कोई ऋषि-मुनि अपनी तपश्चर्या से रात्रि में ही सूर्य को उगने को विवश करे. तभी घर का विनाश करने वाली काली लक्ष्मी के उपासक राक्षसों को नष्ट किया जा सकेगा. तब तक हम केवल इंतजार ही कर सकते है.

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