बुधवार, 6 जुलाई 2011

समलेंगिकता एक विकृती

 समाज समलेंगिकता को एक विकृती मानता हैं तथा उसका निषेध करता है परंतु  आज  समलेंगिकता को कानूनी रूप से जायज करार देने की मांग तथाकथित बुद्धीजीवी कर रहे हैं. क्या यह उचित है?  समाज  समलेंगिकता एक विकृती क्यों मानता है. इसी पर प्रकाश डालने का प्रयास अपनी अल्प बुद्धी से किया है.

परमात्मा के मन में एक से अनेक होने  कि इच्छा उत्पन्न हुई. इसके साथ ही सृष्टी का निर्माण शुरू हुआ. विज्ञान कि भाषा में इसे 'बिग बैंग' भी  कहते हैं.  तभी से एक से अनेक होने  विचार मन में संजोये  सभी जीव सृष्टी कि निर्मिती में  परमात्मा का  हाथ बंटा रहे हैं.   हम सभी जानते हैं, एक कोशकीय जीव स्वयं को विभाजित कर अनेक होता हैं.  उस  परमात्माने स्त्री-पुरुष के रूप में मानवजाती का निर्माण किया हैं अत: जन्म से ही अन्य जीवोंकी तरह  मानव मन में भी एक से अनेक होने कि इच्छा विद्यमान रही है.   

यही इच्छा मन में संजोये स्त्री-पुरुष  मिलन करते हैं.  मानव एक से अनेक होता हैं तथा निर्मिती  परमानंद  स्त्री-पुरुष दोनो को प्राप्त होता हैं.   अत: स्त्री-पुरुष का एक दुसरे कि ओर  आकर्षित होना  मानवजाती के  अस्तित्व के लिये आवश्यक भी है.  इसीलिये हमारे प्राचीन मनीषियों विवाह के रूप में स्त्री-पुरुष संबंधों को परिभाषित किया हैं.  केवल यौन आनंद के लिये होने वाले स्त्री-पुरुष  संबंधों को भी  हमारे   मनीषियों कभी उचित नहीं माना है. क्योंकी यह मिलन  विकृत संतती को ही जन्म देता है.  
अब प्रश्न है पुरुष का पुरुष के प्रती, स्त्री का स्त्री के प्रति आकर्षित होने से क्या परमात्मा प्रदत्त मानव कि 'एक से अनेक होने की' इच्छा पूर्ण हो सकती है?  हम सभी जानते हैं बिना पुरुष वीर्य धारण किये स्त्री बीज फलित नहीं सकता हैं.  समलेंगिक व्यक्ती मानव की एक से अनेक होने की मूल इच्छा को कभी भी पूर्ण नहीं कर सकते हैं.  इसके अलावा यौन आनंद भी कभी प्राप्त नहीं हो सकता हैं. क्योंकी आनंद निर्मिती में प्राप्त होता हैं विनाश में नहीअत: समलेंगिकता एक विकृती है, मानवजाती को विनाश की ओर ले जाने वाली है.  समलेंगिक व्यक्ती जिंदगी में दुख और पीडा ही भोगते  हैं. यही सच्चाई है.   समलेंगिक व्यक्ती अपनी विकृती को पहचाने तथा कुशल चिकित्सक से अपनी बिमारी का इलाज कराये उसी में उसकी एवं मानव जाती की भलाई हैं.    भारतीय  मनीषी  इसे बिमारी ही मानते हैं जिसकी चिकित्सा की जा सकती हैं. 

गुरुवार, 9 जून 2011

काली लक्ष्मी

बचपन के दिन याद आते हैं. मां संध्या के समय भगवान के सामने दिया जलाती थी. साथ ही हम बच्चे जोर- जोर से शुभम करोति कल्याणं, आरोग्यं सुख-संपदा .. का पाठ करते थे. साथ ही अपनी मातृभाषा मराठी में मां लक्ष्मी को घर आने का न्योता देते थे. जिसका हिंदी अनुवाद निम्न है:

आजा लक्ष्मी मेरे घर, मेरा घर तेरे लिये.
घर से पीडा बाहर जाये, बाहर कि लक्ष्मी घर में आये.

संध्या के समय सचमुच लक्ष्मी घर आती है. गृह स्वामी दिनभर मेहनत-मजदूरी कर यह लक्ष्मी घर लाता है. यह सौभाग्य सूचक श्रीलक्ष्मी है जो अपने साथ घर में सुख, चैन एवं सुख-संपन्नता लाती है. इसी श्रीलक्ष्मी का स्वागत हम करते हैं. हम सभी जानते हैं रात्री के अंधकार में दैवीय शक्तियां क्षीण होती हैं. इसीलिये हम तिजोरी, अलमारी अथवा संदूक को ताला लगाकर इसे सुरक्षित रखने का प्रयास करते हैं.


शुक्रवार, 27 मई 2011

सिंहासन चार पुतली


जम्बुद्वीपे, भरतखंडे, क्षिप्रा तटे, सुन्दर एंव रम्य अवन्ती नगरी थी. क्षिप्रा तट
विक्रमादित्य नित नेम से  उज्जैन की राज्यलक्ष्मी की  दीप, धूप, नैवैद्य दिखाकर  पूजा करता था.  अपने विनम्र स्वभाव से वह सदैव  मंदिर के पुजारीयों एवं देवी के भक्तों को  प्रसन्न रखता था. आखिरकार राज्यलक्ष्मी उसपर प्रसन्न हुई. उसकी कृपा से आज विक्रमादित्य सिंहासन पर बैठ्ने वाला था.   उज्जयनी नगरी दुल्हन की तरह सजी हुई थी.  दरबार लोगों से ठसाठस भरा हुआ था. मंत्री, सेनापती, सभासद, विदेशी दूत, गणमान्य अतिथी सभी उपस्थित थे. विक्रमादित्य की नजर सुवर्णजडित सिंहासन की ओर गई. जिसे चार पुतलियां थामे थी. उसका सपना पूर्ण होने के बीच केवल चार सीढियां थी. विक्रमादित्य पहली सीढी पैर रखने वाला था की एक पुतली उसके सामने प्रगट  हुई. उसकी उसकी आंखों पर पट्टी बंधी हुई थी. उसने विक्रमादित्य की और देखते हुए कहा, विक्रम मेरे प्रश्न का उत्तर दो, "राजा की नजर कैसे होनी चाहिये?"  विक्रमादित्य ने कहा, पुतलीके राजा "गरुड के समान होता है जो अपनी  तीक्ष्ण नजर से   प्रजा को कष्ट देने वाले सर्पसमान मंत्री, सामंतो एवं सरकारी अधिकारीयों को  खोजकर  दंडित करता है." पुतली खिलखिलाकर हंसी और बोली, विक्रम तू भोला है, गठबंधन के जमाने मे राजा को कभी बुरा देखना नहीं चाहिये.  मंत्री कितने ही 'आदर्श स्पेक्ट्रम घोटाले करें' राजा की नजर वहां नहीं पडनी चाहिये.  इस सीढी पर पैर रखने से पूर्व तुझे अपनी आंखों पर पट्टी बांधनी पडेगी.   राजा बनने को उत्सुक विक्रमादित्य ने शीघ्रता से अपनी आंखों पर पट्टी बांधी और पहली सीढी पर पैर रखा

अब वह दुसरी 
सीढी पर पैर रखने को था,  तभी  दुसरी पुतली प्रगट हुई. उसने अपने कानों  को दोनो हाथों  से ढका हुआ था. वह बोली विक्रमादित्य, "राजा ने कभी बुरा सुनना नाही चाहिये."  किसान भूख से आत्महत्या कर  रहें  हैं, राशन का माल काले बाजार मे बिकता है, सरकारी कर्मचारी बिना रिश्वत लिये कोई कार्य  नहीं करता है इत्यादी बुरी बातें सुनते समय राजा ने अपने कान ढकने चाहिये ताकी बुरी खबरें उसे सुनाई न दें.   उसे केवल, किसान खुश है, कर्मचारी ईमानदार है, खेल सफल हुए  हैं, इत्यादी खबरें ही सुननी चाहिये. पुतली कि बात मान, विक्रमादित्य ने अपने कान ढक लिये और उसने दुसरी सीढी पर पैर रखा.

अब वह तिसरी
सीढी पर पैर रखने को था,  तभी तिसरी  पुतली प्रगट हुई उसके मुख पर पट्टी बंधी हुई थी. वह बोली विक्रमादित्य, राजाने कभी बुरा नही बोलना चाहिये.
चाहे मंत्रीगण आपका आदेश ना माने, प्रजा का कल्याण भूल अपने ही कल्याण मे लगे हो तब भी राजा ने उन्हें कोई निर्देश नहीं चुप रहना चाहिये न ही क्रोध करना चाहिये बल्की  स्वयं शांत रहकर सब  'राज्यलक्ष्मी' पर छोड देना चाहिये.  विक्रमादित्य ने कहा, पुतलीके तुम्हारी यह शर्त भी मुझे मंजूर है. विक्रमादित्य ने अपने मुख पर पट्टी बांध ली और तिसरी सीढी पर पैर रखा.

अब विक्रमादित्य चौथी और अंतिम
सीढी पर पैर रखने को था,  तभी  चौथी  पुतली प्रगट हुई , वह बोली, विक्रमादित्य, चाहे आंखों पर पट्टी बंधी हो, कान ढके हों और मुख पर पट्टी बंधी हो. मनुष्य के पास आत्मा भी होती है. जिसकी आवाज उसे सदा बैचैन करती है.  आत्मा कि आवाज सुन तुम प्रजा का कल्याण करने के लिये न्याय मार्ग पर चलने का प्रयत्न कर सकते हो. और तुम्हें मालूम ही है न्याय मार्ग पर चलने वाले राजा हरिश्चंद्र को सत्ता गवानी पडी थी.  तुम अपनी आत्मा मुझे दे दो. सिंहासन पर बैठ्ने को अधीर विक्रमादित्य ने अपनी आत्मा उसके हवाले कर  दी और चौथी सीढी पर  पैर रख सिंहासन पर विराजमान हो गया.
राजा विक्रमादित्य कि जय हो से वातावरण गुंजायमान हो उठा. स्वर्गीय मधुर संगीत उसके कानों में गुंजने लगा. विक्रमादित्य ने अपनी आंखें मूंद ली. उसे दिखाई देने लगा -  हरी भरी धरती, खुशाल किसान, सुखी प्रजा ... स्वर्गीय संगीत कि धुन पर ताल देते हुए वह गुनगुनाने लगा -- दुखभरे दिन बीते रे भैया, अब सुख आयो रे,,,,
इस तरह राज्यलक्ष्मी कि कृपा से राजा विक्रमादित्य ने अनंत काल तक अवंती नगरी पर राज्य किया.  जो भी नेता
कलयुग में इस कहानी को मनपूर्वक सुनेंगा  उसे  विक्रमादित्य कि तरह राज्य कि प्राप्ती होगी.





शुक्रवार, 25 मार्च 2011

वसुधैव कुटुम्बकम



देश की भाषा,     आंग्ल भाषा.
देश का भोजन,   पित्ज़ा बर्गर.
देश का पेय,        पेप्सी कोला.
देश की बैंक,       स्विस बैंक. 
प्यार का दिन      वेलंटाईन डे.
देश की नेता,       विदेशी मूल.
इसी को कहते हैं, वसुधैव कुटुम्बकम.  

बंद दरवाजा





 फ्लैट में रहने वाला उच्च मध्यम वर्ग - रिश्तों की टूटन, उदास अकेलापन- यही है शहर की जिन्दगी का सच


कांक्रीट का  जंगल  है 
कागज़ी मुखौटें हैं.
टेबल पर सजा है
उदास कैक्टस एक.



ए. सी. से ठंडा यहाँ
रिश्तों का  अहसास है.
वासंतिक बयार यहाँ
आ नही सकती.

फ्लैट का दरवाजा सदा
बंद रहता है.