बुधवार, 19 सितंबर 2018

हायकू: छह ऋतु (अर्थ के साथ)


हायकू जापानी काव्यविधा है. अधिकतम १७ शब्द और तीन पंक्तियों में भाव को समेटने की कला. हेमंत, वसंत, ग्रीष्म, श्रावण, शरद और शिशिर इन्ही छह ऋतुओं को   हायकू के माध्यम से व्यक्त करने का प्रयास किया है.

हेमंत ऋतु-  बर्फ पिघलने लगती है. रातें ठंडी है परन्तु संकट के बाहर निकलने की राह भी दिख रही है. ऐसे में भविष्य के नए सपने दिल में जगेंगे ही.  

सर्द रातो में 
हृदय में जगे 
सपने बसंतके.

वसंत ऋतु- जंगल में फूल महकने लगते हैं. भौंरे फूलोंपर मंडराने लगते है. नर कोयल भी मीठी आवाज में मादा को लुभाने लगता है. काम पीड़ित शरीर गंध बैचैन कर देती है.  

पलाश जले 
कोयल कूके 
देह महके.

ग्रीष्म:-  कामदेव ने भस्म होना ही है. दिल टूट जाते है. प्रेमी बिछड़ जाते है.ग्रीष्म इसी विरह का प्रतिक है. बिरहन की व्यथा मीरा से बढ़कर कौन जान सकता है. 

 परदेसी पिया 
बिरहन राती
व्यथा मीरा की.

वर्षा ऋतु: धरती और आकाश के मिलन की ऋतु. बरसात में  दोनों एकाकार हो जाते है. तन और मन से भी. सौतिया डाह से जली-भुनी  राधा देखती है, यमुना तट पर सभी कृष्ण सभी गोपियोंके साथ नृत्य कर रहा है. कौन गोपी-कौन कृष्ण. राधा सत्य को जान लेती है. प्रेम में द्वैत समाप्त हो जाता है.  

कृष्ण कदम्ब
कालिंदी कुञ्ज
 वर्षा प्यार की.

शरद ऋतु:  प्रेम सृजनशील है. धरती से लक्ष्मी प्रगट होती है. सुख सम्पन्नता चहुं ओर छा जाती है. हर मनुष्य सुखी सम्पन्न व ऐश्वर्शाली बनना चाहता है. सन्तति के माध्यम से अमर भी होना चाहता है.

शरद चांदनी  
अमृत बरसे 
ऐश्वर्यका.

शिशिर ऋतु: पेड़ोंसे पत्ते गिरने के दिन. हम मृत्यु को जीवन की समाप्त नहीं अपितु सम्पूर्णता मानते है.  "ॐ त्र्यम्बकम यजामहे सुगंधिम पुष्टि वर्धनम". यही भाव व्यक्त करने का प्रयास किया है. 
सुगंध फैला 
पक्व फलोंका 
पतझरी पत्तोंका.




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