अक्तूबर
महीना शुरू होते ही दिल्लीमें बढ़ते प्रदूषण पर चर्चाएँ शुरू हो जाती है.
आज तो वायु गुणवत्ता निदेशांक केन्द्रीय सचिवालय मेट्रो स्टेशन पर ३०० ऊपर
अर्थात अत्यंत खरनाक स्तर पर है. बाकि दिल्ली का हाल इससे भी बुरा होगा. दिल
के मरीज और अस्थमा के मरीजोंको तो आज घर से निकलना ही नहीं चाहिए.
अब
मीडिया और व्यवस्था का भोंपू बजना शुरू हो गया है. किसानोंने पराली जलानी
नहीं चाहिए. प्रदूषण मुक्त दीवाली मनानी चाहिए, फटाके कदापि नहीं चलाने
चाहिए इत्यादी. पराली के उपयोग और उसके निपटान की विधियों पर टीवी पर भारी चर्चा और अखबार आदि में बड़े बड़े लेख छपेंगे. न्यायलय भी पराली जलाने वाले
किसानों पर कड़ी कार्रवाई के आदेश देगा. किसान भी पराली जलाएंगे हमेशा की
तरह.
कल
मेट्रो से घर जा रहा था. मुंह पर मास्क लगाये एक नौजवान ने सीट बैठे बूढ़े
चौधरी की तरफ इशारा करते हुए कहा, ये लोग पराली चलते हैं और उसका नतीजा
दिल्ली में हमें भुगतना पड़ता है. चौधरी को उसकी आवाज सुनाई दे गई. चौधरी का
दिमाग सटक गया, वह जोर से बोला. हम तो साल में ज्यादा से ज्यादा १५-२० दिन
पराली जलाते होंगे. तुम्हारी दिल्ली में लाखो गाड़ियां क्या रस्ते पे
खुशबू बिखेरते हुए चलती है. दिल्ली का धुआं भी पंजाब हरियाणा पहुँचता है.
कभी इस पर मिडिया में चर्चा हुई है. सत्य कडवा होता है, नौजवान को छोडो
हम सभी की बोलती बंद हो गई.
आज
दिल्ली में १ करोड़ से ऊपर गाड़ियां सड़क पर चलती है. जिसमे ३२ लाख से ऊपर
कार रोज सड़क पर होती है. ९०% कार मालिक आय कर भी नहीं भरते. बैंक सस्ते
में कार लोन देते हैं. सरकार भी पीछे नहीं रहती. गरीबोंके नाम पर पेट्रोल
पर सब्सिडी देती है. "सस्ते में कार खरीदो और प्रदूषण फैलाओ" शायद यही प्रशासन मनसुबा है. दूसरी तरफ पराली जलाने से ज्यादासेज्यादा वायु गणवत्ता निदेशांक में २५ से ५० अंकों की बढ़ोतरी होती होगी. फिर भी प्रदूषण का ठीकरा किसानोंके सर पर फोड़ा जाता है. अजीब नहीं लगता यह सब.
प्रशासन सचमुच दिल्ली का प्रदूषण कम चाहता है, तो उसे सर्वप्रथम दिल्लीमें कारोंकी संख्या कम करने का उपायढूंढना होगा. कार पर जीएसटी बढानी पड़ेगी, पार्किंग शुल्क बढ़ाना पडेगा. पेट्रोल केवल कार में इस्तेमाल होता है, उसका रेट १०० क्या १५० भी कर दिया तो कोई फर्क नहीं पड़ता. हाँ दिल्ली में १० लाख कार डिजेल पर भी चलती है. उन कारों पर साल का ५० से लाख रूपये डिजेल कार कर लगाया जा सकता है. ताकि ग्राहक डिजेल पर चलने वाली कार ना ख़रीदे. उसी धन को मेट्रो के विस्तार में और डीटीसी को सुधारने पर व्यय किया जा सकता है. १९९७ में दिल्ली की आबादी ८५ लाख थी और डीटीसी बसेस ८५०० थी. आज दिल्ली की आबादी २.५० करोड़ है और बसेस केवल ४५०० है. मेट्रो फेज-IV पर भी अभी तक प्रशासन ने कोई निर्णय नहीं लिया है. निश्चित ही यह बड़ी दयनीय स्थिति है. प्रशासन दिल्ली के प्रदूषण के लिए कभी राजस्थान से आने वाली धूल, काफी फटाकों को तो कभी खेत में जलने वाली पराली को दोष देता है. वैसे मैं खेत में पराली जलाने का कदापि समर्थन नहीं करता परन्तु पेट्रोल पर सब्सिडी देने से अच्छा पराली के निपटान पर किसानों को सब्सिडी देना ज्यादा उचित समझता हूँ.
प्रशासन सचमुच दिल्ली का प्रदूषण कम चाहता है, तो उसे सर्वप्रथम दिल्लीमें कारोंकी संख्या कम करने का उपायढूंढना होगा. कार पर जीएसटी बढानी पड़ेगी, पार्किंग शुल्क बढ़ाना पडेगा. पेट्रोल केवल कार में इस्तेमाल होता है, उसका रेट १०० क्या १५० भी कर दिया तो कोई फर्क नहीं पड़ता. हाँ दिल्ली में १० लाख कार डिजेल पर भी चलती है. उन कारों पर साल का ५० से लाख रूपये डिजेल कार कर लगाया जा सकता है. ताकि ग्राहक डिजेल पर चलने वाली कार ना ख़रीदे. उसी धन को मेट्रो के विस्तार में और डीटीसी को सुधारने पर व्यय किया जा सकता है. १९९७ में दिल्ली की आबादी ८५ लाख थी और डीटीसी बसेस ८५०० थी. आज दिल्ली की आबादी २.५० करोड़ है और बसेस केवल ४५०० है. मेट्रो फेज-IV पर भी अभी तक प्रशासन ने कोई निर्णय नहीं लिया है. निश्चित ही यह बड़ी दयनीय स्थिति है. प्रशासन दिल्ली के प्रदूषण के लिए कभी राजस्थान से आने वाली धूल, काफी फटाकों को तो कभी खेत में जलने वाली पराली को दोष देता है. वैसे मैं खेत में पराली जलाने का कदापि समर्थन नहीं करता परन्तु पेट्रोल पर सब्सिडी देने से अच्छा पराली के निपटान पर किसानों को सब्सिडी देना ज्यादा उचित समझता हूँ.
Absolutely right and necessary
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