कुएंवाली गली जहां नई बस्ती की बड़ी गली से मिलती थी। उसी जगह एक धर्मशाला थी। शायद आज भी होती ऐसी आशा है। धर्मशाला काफी बड़ी थी। धर्मशाला में सामने एक बड़ा सा वरांडा और एक बड़ा हाल था । ऊपरी मंजिल पर भी कुछ कमरे और एक हाल था। जहां शादी ब्याह की दावतें होती थी। उस समय ज़्यादातर शादियोंमे देसी घी में बने व्यंजन ही होते थे। धर्मशाला का उपयोग इलैक्शन के समय पोलिंग बूथ के रूप में भी होता था। इसी धर्मशाला में समय-समय पर भागवत कथाएँ और भगवती जागरण होते थे। माँ अपने साथ मुझे भी अक्सर कथा सुनने ले जाया करती थी। कथाकार अक्सर सन्यासी अथवा बुजुर्ग होते थे। भजन भी वह खुद ही गाते थे। कभी-कभी साथ में भजन गायक भी साथ देने के लिए होते थे। जो लोक गीत अथवा अर्धशास्त्रीय भजन अपनी सुमधुर आवाज में गाते थे। पेटी-तबला, ढ़ोल-मंजीरा, घंटी, शंख, करताल आदि वाद्यों का उपयोग भजन के साथ होता था। किसी तरह का शोर-शराबा नहीं होता था। भगवती जागरण पूरी रात होता था। अत: कथाकार रामायण, महाभारत, कृष्ण-सुदामा और कई पौराणिक कहानियाँ बहुत ही भक्ति भाव से ओतप्रोत होकर तल्लीनता से कहते थे। वातावरण भक्तिमय हो जाता था। सुबह कथा के बाद,स्वादिष्ट देसी घी में बना हलवा और काले चने प्रसाद में मिलते थे। दुपहर के भंडारे में ही देसी घी में बनी पूरियाँ और सब्जी होती थी। जिसका स्वाद आज भी भूल नहीं पाया हूँ। इन कथाओंकों प्रभाव स्वाभाविक रूपसे मुझ पर भी हुआ। जीवन भर गलत आदतों और संगतों से दूर ही रहा।
1980 में पुरानी दिल्ली मजबूरी में छोडनी पड़ी और हमारा परिवार हरी नगर इलाके में किराए के फ्लेट में आकार रहने लगा। नून, तेल लकड़ी के चक्कर में कई साल भगवती जागरण से दूर ही रहा। जितना की मुझे याद है शायद 1986 का साल था। मेरे एक मित्र ने कहा आज भगवती जागरण है, बॉलीवूड के एक बड़े गायक आ रहे हैं। रात को खाना खाकर करीब 11 बजे मित्र के साथ भगवती जागरण के पंडाल पर पहुंचा। वहाँ डीजे लगा हुआ था। बहुत शोर शराबे वाला संगीत बज रहा था। कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था। मंच के सामने दे दे प्यार दे (अम्बे तार दे) गाने पर कुछ नौजवान अभिताभ बच्चन की तरह नाच रहे थे। जैसे वे किमी काटकर को लुभा रहे हो। रात को बारह बजे के आसपास बॉलीवूड के भजन गायक पधारे। मुझे भी हात मिलने का सौभाग्य मिला। उनके मुख से भयानक खुशबू आ रही थी। मंच पर आते ही बेसुरी आवाज में चिल्लाते हुए वह भजन गाने लगे। बीच-बीच में जनता भी ज़ोर ज़ोर से जयकारे लगा रही थी। कुछ समय बाद कुछ युवक भगवान का भेस धर मंच पर आकार ऊलजलूल हरकते करने लगे।वातावरण कहीं से भी भक्तिमय नहीं लग रहा था। सभी कुछ अटपटा लग रहा था। सोचने लगा क्या इससे माँ भगवती प्रसन्न होती या क्रोधित होकर श्राप देगी। आखिर भोर होने पर कथा शुरू हुई। तब जाकर थोड़ी शांति हुई। इसी तरह के जागरण/कथाओंसे से ना तो भगवान खुश होने वाले है और न ही पीढ़ी पर कोई संस्कार होगा। यदि ऐसा ही चलता रहा और जागरण और कथा के नाम पर फैल रही विकृतियोंकों दूर नहीं किया तो आनेवाली पीढ़ियाँ अपनी परंपरा और इतिहास और धर्म से वंचित हो जाएंगी। आज जब भी कभी जागरण का पंडाल देखता हूँ तो मुझे पुरानी दिल्ली कि धर्मशाला में होने वाली भगवती जागरण याद आ जाता है। काश, समय फिर लौटआए फिर से भक्ति से ओतप्रोत भगवती जागरण कि कथा सुनने को मिले बस यही भगवान से प्रार्थना करता हूँ।
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