नई बस्ती से तिलक बाजार की ओर जाने वाली गली में एक कमरे में चुन्नी मियां रहते थे। उनकी उम्र उस समय कम से कम साठ साल तो होगी ही। सफ़ेद दाढ़ी, मैलासा सफ़ेद कुर्ता-पाजामा, एक पुरानी मेज और उतनी ही पुरानी उषा सिलाई मशीन। यही चुन्नी मियां की पहचान थी। उसी गली में अमजद कसाई की दुकान भी थी। (शोले फिल्म के बाद मोहल्ले के बच्चे उन्हें गब्बर सिंह के नाम से पुकारने लगे। उनकी दुकान के सामने से गुजरते समय बच्चे ज़ोर-ज़ोर से शोले का डाइलाग बोलते थे, "पचास कोस दूर के बकरे अमजद कसाई का नाम सुनकर ...)
उस समय दशहरे पर दिल्ली में स्कूलोंको 10 दिन की छुट्टियाँ होती थी। छुट्टियाँ शुरू होते ही हम चुन्नी मियां का घर आने का इंतजार करते थे। जब चुन्नी मियां इंच-टेप और माप लिखने के लिए एक पुरानी फटी हुई नोटबुक लेकर घर आते थे। तो हमारी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहता था। क्योंकि साल में एक बार दिवाली पर नए कपड़े जो पहनने को मिलते थे। कपड़ा और सिलाई सब चुन्नी मियां का होता था। चुन्नी मियां के सिले हुए शर्ट और निक्कर पहने हुए बच्चे दूर से ही पहचाने जाते थे। शायद एक ही थान से सबके कपड़े सिलते थे।
उस समय चुन्नी मियां और अमजद कसाई के बीच बातचीत बंद थी। चुन्नी मियां का कहना था, अमजद कसाई ने कपड़े सिलवाने की सिलाई नहीं दी थी। उधर अमजद कसाई का कहना था, चुन्नी मियां ने उसके महंगे कपड़े बर्बाद कर दिये। इसलिए चुन्नी मियां को हर्जाना देना चाहिए। चुन्नी मियां के लिए अमजद भाई जैसे दबंग आदमी से पैसे वसूल करना संभव नहीं था। परंतु हर आने जाने वाले से वे अमजद की शिकायत करते थे। कुछ ही दिनों में मौहल्ले में सबको मालूम हो गया अमजद कसाई ने चुन्नी मियांकों सिलाई के पैसे नहीं दिये। मेरा मुस्लिम दोस्त कालू (उसका असली नाम क्या था, यह मैंने उससे कभी नहीं पूछा), हमे चुन्नी मियां से पंगे लेने में बड़ा मजा आता था। उन दिनों जब भी चुन्नी मियां के दुकान के सामने से गुजरते थे, ज़ोर से आवाज देकर उनसे पूछते थे, "मियांजी, अमजद ने आपके पैसे दिए या नहीं"। मियांजी उतनी ज़ोर से चिल्लाते थे, नाम मतलो उस पाजी हरामखोर का? वह क्या समझता है, चुन्नी मियां के पैसे डुबायेगा, मेहनत की कमाई है. पैसे नहीं चुकाए तो देखना कोई बकरा एक दिन उसकी मोटी गर्दन पकड़कर उसे हलाल करेगा. सुबह-सुबह आ जाते हो खामका परेशान करने. भागो शैतानो यहां से कहते हुए पास पड़ा हुआ डंडा उठा हमे मारने के लिए दौड़ते थे। हम हँसते हुए वहाँ से भाग निकलते थे।
एक दिन हमने मियांजी की दुकान के सामने एक बकरे को बंधा हुआ देखा। मियांजी ने बकरे को अपने हाथों से बादाम खिला रहे थे। मैंने मियांजी से पूछा, मियांजी बकरा क्यों खरीदा है। मियांजी बोले "कुर्बानी के लिए खरीदा है। कालू से नहीं रहा, वाह! मियांजी, यहाँ दो टैम रोटी के लाले पड़े हैं और बकरा बादाम पाड रिया है। चुन्नी मियां ने उसकी ओर देखा और कहा, "यहाँ आजा बंध जा, तुझे भी बादाम खिलता हूँ " और गले पर चाकू फेरने का नाटक किया। कालू भी कहाँ कम था, वह ज़ोर से मियांजी पर चिल्लाया, बादाम की खातिर, बच्चे को मार डालोगे क्या, खुदा का कहर टूटेगा। जहन्नुम में जाओगे, मियांजी। चुन्नी मियां हाथ में डंडा में लिए हमारी तरफ देखते हुए कहा, अभी बताता हूँ शैतानों खुदा का कहर क्या होता है। हमेशा की तरह हम वहाँ से भाग निकले।
बकरीद के दो-तीन दिन बाद हम फिर मियांजी की दुकान के सामने से गुजरे। देखा बकरा वहीं बंधा हुआ था। चुन्नी मियां भी उदास दिखे। मैंने मियांजी से पूछा, मियांजी बकरे की कुर्बानी नहीं दी क्या? मियांजी ने धीमी उदास आवाज में कहा, बेटा क्या करूँ दिल लग गया..। मियांजी आगे कुछ बोलते, कालू ने कहा, "क्या समय आ गया है, इस उम्र में मियांजी को बकरे से मोहब्बत हो गयी है। मुझे चाचीजान को बताना ही पड़ेगा। मियांजी ने अपने पास रखे डंडे को उठाया और गुस्से से बोले, बत्तमीज, शैतानो, पहले बोलने की तमीज़ सीखकर आओ, भागो यहाँ से। उस समय वहां से भागना ही अच्छा था।
करीब एक हफ्ते बाद जब हम वापस मियांजी की दुकान पर गए तो वहां बकरा बंधा हुआ नहीं था। बकरे का आखिर क्या हुआ यह जानने के लिए मैंने मियांजी से पूछा, मियांजी बकरा कहाँ गया? मियांजी ने कहा, अमजद कसाई को बेच दिया। कई दिनों से उसकी बकरे पर नजर थी। मैंने बात काटते हुए पूछा, मियांजी अमजद ने पैसे दिये या मुफ्त में उड़ा ले गया। मियांजी ने कहा, पूरे नगद २०० रूपये में बेचा है। ये बात अलग है इतने के तो बादाम खा गया होगा वह हरामखोर, पाजी बकरा. फिर भी सौदा घाटे का नहीं रहा. तभी कालू बीच में बोल पड़ा, मियांजी, आप तो उससे मोहब्बत करते थे। कसाई को बेच दिया उसे। अब तक तो कट भी चुका होगा. चंद चांदी के टुकड़ों की खातिर आपने मौहब्बत कुर्बान कर दी, लानत है आप पर. इस बार मियांजी को उसकी बात सुनकर गुस्सा नहीं आया। मियांजी बोले, अरे काहे की मोहब्बत, एक दिन रात के टैम उस कमीने को बादाम खिला रहा था, उसने इंसानी आवाज में कहा, मियांजी, ख़बरदार मुझे कुर्बान किया तो, अगले जन्म में कसाई बनकर तेरी गर्दन पर छुरी चलाऊंगा. मैं तो घबरा गया। सोचने लगा इस हरामखोर बकरे का क्या करूँ, तभी मुझे अमजद कसाई का ख्याल आया. बेच दिया उसको. कालू ने हँसते हुए कहा, तो अगले जन्म में अमजद कसाई कि गर्दन पर छुरी चलेगी. एक तीर से दो शिकार कर दिये मियांजी आपने. चुन्नी मियांजी की एक उदास हंसी आसमान में गूंज उठी।
बाकी दबंग अमजद कसाई की नजर उस बकरे पर पड़ गयी थी। अमजद कसाई को सस्ते में बकरा बेचने के सिवा चुन्नी मियां के सामने और कोई रास्ता नहीं था।
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