बुधवार, 22 जून 2022

पुरानी दिल्ली के यादें (8) : दंगा कथा : छोटू


हमारा स्कूल पहाड़गंज में था। स्कूल सुबह का था। नई बस्ती, नया बाज़ार के हम 7-8  विद्यार्थी सुबह-सुबह स्कूल जाने के लिए पैदल ही घर से निकल पड़ते थे। कुतुब रोड, सदर बाजार, बारा टूटी और मोतियाखान होते हुए आधा पौना घंटे में स्कूल पहुँच जाते थे। रोज सुबह और दोपहर करीब लगभग चार  किमी पैदल चलने के कारण चप्पल जूतों के दो-तीन महीनों में ही बारा बज जाते थे। मोतियाखान में रास्ते के किनारे एक मोची बैठता था।  वह 10-20 पैसों में  जूते-चप्पल की मरम्मत कर देता था। सुबह उसका बेटा भी काम में हाथ बँटाता था। हम उसे छोटू कहकर पुकारते थे। उसकी उम्र हमारे जितनी ही थी। वह एक सरकारी स्कूल में पढ़ता था। उस समय दिल्ली के सरकारी स्कूलों में दुपहर की शिफ्ट लड़कों की होती थी। सुबह के वक्त चप्पल और जोड़ियों की छोटी-बड़ी मरम्मत वही करता था।

उस समय पुरानी दिल्ली में साल में दो से चार दंगे होते ही थे। ज़्यादातर दंगोंका मकसद व्यापारियों की दुकानों को जलाना और लूटना होता था। ऐसा ही एक दंगा सदर बाजार में हुआ। दंगे के दौरान कपड़ों की कई दुकानों को लूट लिया गया। बहती गंगा में कई गरीबों ने हाथ धो लिए। जिसमे हिन्दू मुसलमान दोनों ही थे। जो विद्यार्थी फटे कपड़ों में स्कूल में आते थे। दंगे के बाद नए कपड़ों में नजर आने लगे। उस साल कई बच्चों ने ईद और दिवाली नए कपड़ों में मनाई। लेकिन हर सिक्के के दो पहलू होते हैं।

दंगे के 15-20 दिन बाद की कहानी। स्कूल से निकलने के बाद हमारी चौकड़ी दोपहर 1 बजे घर जाने लगी। एक दोस्त का जूता सुबह स्कूल आते समय फट गया था। जूते की मरम्मत करने हम उसी मोची की फुटपाथी दुकान में पहुंचे। उस दिन छोटू अपनी स्कूल यूनिफॉर्म में जूते मरम्मत कर रहा था।  मैंने उससे पूछा वह इस समय स्कूल छोड़कर यहाँ क्यों बैठा है?  क्या उसके अब्बू की तबीयत खराब है? छोटू ने कहा, उसने स्कूल छोड़ दिया है। अब वह दुकान में ही बैठेगा। मैंने पूछा, क्यों? उसने   बिना किसी हिचकिचाहट के कहा अब्बू जेल में है।  क्यों ???

 उसने कहा, उस दिन अम्मी ने तड़के ही अब्बू को उठाया, कहा कि  सदर में दुकानों की लूट मची है। मोहल्ले के सभी मर्द वहीं गए हैं। नानके तो चार थान उठाकर भी ले आया है। पहले तो अब्बू ने मना कर दिया।  लेकिन जब पूरा मोहल्ला ही, चाहे हिंदू हो या मुसलमान, दुकानों को लूटने गया था, अब्बू से रहा नहीं गया। अपने बच्चोंके लिए हर साल नए कपड़े खरीदना अब्बू के लिए एक सपना ही था। अब्बू भी भीड़ का हिस्सा बन गए। एक जली हुई दुकान से लोग कपड़ोंके थान सिर पर लाद बाहर निकल रहे थे। अब्बू भी उस दुकान में घुस गया। लालच बुरी बला होती है, अब्बू भी सिर पर 3-4 कपड़े के थान लाद दुकान से जैसेही निकला, तभी शोर हुआ, पुलिस-पुलिस। अब्बू डर गया। बिना सामने देखे भागने लगा, डर के मारे अब्बूका संतुलन बिगड़ गया। वह सड़क पर गिर पड़ा। उसे बुरी तरह चोट लगी। लेकिन पुलिस ने उसे रंगे हाथ पकड़ लिया। हालाँकि मेरी उम्र इतनी भी नहीं थी कि ऐसे हालात में मैं छोटू से क्या कहूँ। फिर भी हिम्मत करके मैंने उससे पूछा, कोई वकील किया है क्या? हां, एक वकील ने किया है, लेकिन उसका कहना है, अब्बू को जेल से छूटने में कम से कम साल तो लग ही जाएगा।  छोटू ने आगे कहा कि अब्बू हमेशा नेकी और ईमानदारी की बात करते थे, पता नहीं कैसे उस दिन अब्बू से गलती हो गई। बोलते समय छोटू का गला भर्रा गया। हम सब चुप हो गए। कुछ भी सूझ नहीं रहा था। घर आकर माँ को यह बात बताई। माँ ने कहा अब तुम बड़े हो रहे हो। एक गलत कदम पूरे घर को बर्बाद कर देता है। सबकी जिंदगी तबाह हो जाती है। सदा याद रखो, भूल कर भी कभी गलत काम मत करना। माँ ने सच ही कहा था, किस्मत की मार छोटू पर पड़ी जिसने कोई गलत काम नहीं किया था। उस छोटी सी उम्र में ही घर की पूरी गाड़ी  चलाने की ज़िम्मेदारी उसके कंधों पर आ गयी थी। दंगाई हमेशा साफ बच निकलते हैं परंतु लालच में आकर आम गरीब आदमी जरूर पुलिस के हत्थे चढ़ जाता है। 

उस साल की ईद और दिवाली ने कई  बच्चोंके घरों में अंधेरा लेकर आई थी। यह भी सच है। 

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