सोमवार, 1 सितंबर 2025

बूढ़ा आदमी और सुनहरे फूलों की महक

 

एक बूढ़ा आदमी रोज़ सुबह बगीचे में टहलने आता था। बगीचे में पहुँचने के बाद वह घंटों तक सुनहरे फूलों से बातें करता। इस सुबह भी वह आया, लेकिन उसने क्या देखा—बगीचे में सुनहरे फूलों का पौधा किसी ने उखाड़ दिया था। 

"यह जरूर उन क्रिकेट खेलने वाले शरारती लड़कों की करतूत है," उसने मन ही मन सोचा और उन्हें कोसा। उसने एक मुरझाया हुआ सुनहरा फूल उठाया और उसे अपने सीने से कसकर लगा लिया। उसके दिल में एक टीस उठी, और वह वहीं ज़मीन पर लुढक गया।

"दादाजी, अब कैसा लग रहा है?"

बूढ़े आदमी ने आँखें खोलीं। सामने क्यारी में सुनहरे फूल हवा में झूम रहे थे। उनकी महक चारों ओर फैली हुई थी। उसने प्यार से फूलों को सहलाया।

दादाजी ने हमेशा की तरह पूछा, "कैसे हो मेरे बच्चों?"

"दादाजी, हम बहुत अच्छे हैं। यहाँ कोई चिंता नहीं है। अब कोई हमें तकलीफ़ नहीं दे सकता। आप थक गए होंगे—थोड़ा आराम कर लीजिए। हम आपकी पसंदीदा बाँसुरी की टेप चला देते हैं। अब हमारे पास भरपूर समय है—सिर्फ हमारे लिए।"

बूढ़े आदमी ने संतोष से आँखें बंद कर लीं। दूर आकाश में बाँसुरी की मधुर धुन गूंज रही थी।

 

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