शनिवार, 20 सितंबर 2025

दंगे की राख में बचपन

 

यह बचपन की कहानी है। मेरी उम्र लगभग 12-13 साल थी। हमारा स्कूल पहाड़गंज में थी। स्कूल सुबह की थी, इसलिए हम 7-8 दोस्त पैदल ही स्कूल जाते थे। नया बाजार, कुतुब रोड, सदर बाजार, बारा टूटी, मोतियाखान होते हुए स्कूल पहुंचते द.  स्कूल पहुँचने में लगभग आधा घंटा लगता था। रोज़ 3-4 किलोमीटर चलने से चप्पल और जूते जल्दी खराब हो जाते थे।

मोतियाखान में फुटपाथ पर एक मोची  बैठता था। 5-10 पैसे में जूते-चप्पल ठीक करता था। उसका बेटा छोटू, हमारी उम्र का ही था। वह सरकारी स्कूल में पढ़ता था, जो दोपहर की होती थी। सुबह वह अपने पिता की मदद करता था।

उन दिनों पुरानी दिल्ली में साल में 2-4 दंगे होते थे। हमारे लिए दंगे का  मतलब दुकानों की लूट और आगजनी। एक बार सदर बाजार में दंगा हुआ। कपड़ों की कई दुकानें लूटी गईं। गरीबों ने भी मौका देखकर कपड़े उठा लिए। स्कूल में फटे कपड़े पहनने वाले बच्चे नए कपड़ों में दिखने लगे।

दंगे के 15-20 दिन बाद की बात है। स्कूल के बाद हम घर जा रहे थे। एक दोस्त के जूते फट गए थे। छोटू उस दिन मैली-कुचैली स्कूल यूनिफॉर्म में दुकान पर बैठा था। 

मैंने पूछा, "अब्बू की तबियत खराब है क्या?"

छोटू बोला, "स्कूल छोड़ दिया है। अब दुकान पर ही बैठूंगा।"

मैंने पूछा, "क्यों?"

उसने कहा, "अब्बू जेल में हैं।"

छोटू ने कहा उस दिन सुबह उसकी अम्मी ने अब्बू को उठाया और कहा, "सदर में दुकानें लूटी जा रही हैं। पड़ोसी नानके कपड़े उठा लाया है। मोहल्ले के बाकी मर्द भी गए हैं। तुम सो रहे हो?" अब्बू उठे, मन में सोचा कि यह ठीक नहीं है। लेकिन उन्होंने कई सालों से बच्चों के लिए नए कपड़े नहीं खरीदे थे। वहाँ तो पूरा मोहल्ला—हिंदू हो या मुसलमान—दुकानों की लूट में शामिल था। अब्बू भी उस भीड़ का हिस्सा बन गए। सदर बाज़ार में एक दुकान से लोग कपड़ों के थान सिर पर उठाकर बाहर निकल रहे थे। अब्बू भी उस दुकान में घुसे।

"लालच बुरी बला होती है" यह कहावत यूँ ही नहीं बनी है। शरीर साथ नहीं दे रहा था, फिर भी अब्बू ने 3–4 कपड़ों के थान सिर पर लाद लिए और दुकान से बाहर निकले। तभी अचानक आवाजें आईं—"पुलिस! पुलिस!" अब्बू घबरा गए। उनका  संतुलन बिगड़ गया और वे सड़क पर गिर पड़े। चोट तो लगी ही, साथ ही पुलिस ने उन्हें रंगे हाथ पकड़ लिया। 

उस उम्र में यह समझना आसान नहीं था कि ऐसे समय में क्या कहना चाहिए। फिर भी मैंने हिम्मत करके पूछा, "कोई वकील किया है क्या?"

"हाँ, एक वकील किया है, लेकिन वह कहता है कि अब्बू के खिलाफ पक्के सबूत हैं। अब्बू को कुछ साल तो जेल में रहना ही पड़ेगा।"

छोटू बोला, "अब्बू से गलती हो गई। किस्मत खराब थी।"

अब छोटू की पढ़ाई छूट गई। घर की जिम्मेदारी उसके कंधों पर आ गई।

उस साल की ईद और दिवाली कई घरों में अंधेरा लेकर आई।

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