मंगलवार, 9 सितंबर 2025

अलादीन और जिन्न का न्याय

 

अलादीन सुबह-सुबह लोधी गार्डन में टहल रहा था, जब अचानक एक तेज़ हवा के झोंके ने पेट्रोल की तीखी बदबू उसके नथुनों तक पहुँचा दी। नाक सिकोड़ते हुए वह बुदबुदाया, “प्रकृति की गोद में भी शुद्ध हवा नहीं! इस प्रदूषण का कुछ तो हल निकालना होगा।”

तभी उसका पैर किसी कठोर चीज़ से टकराया। वह लड़खड़ाया, पर गिरा नहीं। नीचे देखा तो एक पुराना, मैला सा चिराग पड़ा था। उत्सुकता से उसने उसे उठाया। “काफी पुराना लगता है… शायद अच्छा दाम मिल जाए,” उसने सोचा। रूमाल से उसे साफ़ करने लगा।

अचानक चिराग से धुआँ उठा—और एक जिन्न प्रकट हुआ।

“क्या आदेश है, मालिक?” जिन्न ने पूछा।

अलादीन चौंक गया, हड़बड़ाते हुए बोला  “कोई आदेश नहीं। वापस चिराग में चले जाओ।”

जिन्न ने हल्का सा सिर झुकाया और बोला “मालिक, मैं तब तक वापस नहीं जा सकता जब तक आपका दिया कोई आदेश पूरा न कर दूँ। आपको आदेश देना  ही होगा।”

अलादीन ने खुद को संभाला। “तो बताओ—तुम क्या कर सकते हो?”

“मेरे लिए कुछ भी असंभव नहीं,” जिन्न बोला। “मैं वह कर सकता हूँ जो कोई मनुष्य नहीं कर सकता।”

अलादीन मुस्कराया। “ठीक है। पृथ्वी से सारा प्रदूषण तुरंत और पूरी तरह समाप्त कर दो।”

जिन्न हात जोड़े चुपचाप खड़ा रहा।

अलादीन ने ताना मारा, “क्या हुआ? प्रदूषण ने तुम्हें भी हरा दिया? मैं जानता था—यह काम तुम्हारे बस का नहीं। वापस चिराग में जाओ और सो जाओ। जब कोई तुम्हारे लायक काम होगा, तब बुलाऊँगा।”

जिन्न की आवाज़ में एक थरथराहट थी—न डर की, न क्रोध की, बल्कि एक गहरे दुख की। “मालिक, मैं प्रदूषण को जड़ से मिटा सकता हूँ… लेकिन

“लेकिन, किन्तु, परंतु!” अलादीन झल्लाया। “तुमने तो इंसानों की बहानेबाज़ी भी सीख ली है। अपने मालिक की आज्ञा मानो—या स्वीकार करो कि तुम अक्षम हो।

जिन्न ने सिर झुकाया, जैसे किसी अंतिम निर्णय पर मुहर लगा रहा हो। “जैसी आज्ञा, मालिक। मैं प्रदूषण को जड़ सहित मिटा देता हूँ। उसने आँखें बंद करके एक मंत्र बोला और आकाश में एक अजीब सन्नाटा छा गया।अगले ही पल, मानवता की साँसें थम गईं। अलादीन सहित सभी इंसान—अपने-अपने पापों के भार के साथ—नरक की आग में समा गए। धरती ने चैन की  साँस ली…  धरती हरी भरी हो गयी। 

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