मन में द्वंद है
फिर शांति कहाँ.
सपने दिखाता है
खुद को ही ठगता है
चंचल मन.
एक बार जंगल में रहने वाले गिरगिट सोचा शहर जाकर लोगों को अपना रंग बदलने का हुनर दिखाकर वाहवाही बटोरूंगा. गिरगिट शहर आया. एक बंगले में एक आदमी सफेद टोपी लगाए कुर्सी पर बैठा हुआ था. गिरगिट उस आदमी के पास जाकर बोला, मैं जंगल में रहने वाला गिरगिट हूं. मैं जिस जगह पर बैठता हूं, उसी के रंग में रंग जाता हूं. आपको में अपनी कला दिखाता हूं. गिरगिट हरे पौधे पर बैठा, हरे रंग का हो गया.लाल फूल पर बैठा, लाल रंग का हो गया. इस तरह गिरगिट ने कई रंग बदल कर उस आदमी को दिखाए. फिर गिरगिट उस आदमी को बोला, क्या आप ऐसा कर सकते हो. वह आदमी बोला इसमें कौनसी बड़ी बात है. मैं इसी कुर्सी पर बैठा- बैठा रंग बदल सकता हूं. बस तुम मेरी टोपी की तरफ देखो. गिरगिट ने देखा उस आदमी की टोपी का रंग क्षणभर में हरे से लाल, लाल से नीला, नीले से भगवा और फिर सफेद ही गया. उस आदमी की रंग बदलने की कला देख गिरगिट आश्चर्य चकित हो गया. गिरगिट ने उस आदमी से पूछा आप आखिर हो कौन? मैने इंसानों को रंग बदलते आजतक नहीं देखा है.वह आदमी बोला, गिरगिट मैं मामूली इंसान नही हूं. मैं सदा कुर्सी पर विराजमान रहने वाला नेता हूं. चाहे टोपी के कितने ही रंग बदलने पड़े. गिरगिट ने उस आदमी के चरण छुए और बोला गुरुदेव क्या अपनी कला मुझे सिखाएंगे क्या?
अतीत में युद्ध का मुख्य उद्देश्य दूसरे देशों पर कब्जा करना और उनसे प्रत्यक्ष रूप से चौथ वसूलना था। आज शत्रु देशों की प्रगति के मार्ग में बाधा उत्पन्न करना और उन्हें भारी आर्थिक क्षति पहुँचाना युद्ध का ही एक रूप है। उसके लिए स्वार्थी मीडिया, स्वार्थी राजनेता और दुश्मन देश के सामाजिक संगठनों का इस्तेमाल उन्ही के देश के खिलाफ़ किया जाता है।. हमारे शत्रुओं द्वारा छेड़े गए इस आर्थिक शीत युद्ध में हमारे देश का लाखों करोड़ों का नुकसान आजतक हुआ है। देश के लाखों लोग आर्थिक प्रगति और रोजगार से वंचित रह गए। सरकार को दुश्मन देशों की साजिश के बारे में पता है। लेकिन भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में, कानून कमजोर हैं और न्यायपालिका वर्षों तक निष्क्रिय या भटकी रहती है, जिससे महत्वपूर्ण विकास परियोजनाओं पर रोक लग जाती है। जब तक न्याय व्यवस्था द्वारा विकास परियोजनाओं को हरी झंडी दी जाती, तब तक देश को लाखों करोड़ों का का नुकसान हो चुका होता है. ऐसी व्यवस्था में दुश्मन के इशारों पर नाचने वाली तथाकथित सामाजिक संस्थाओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करना बहुत मुश्किल है। कई साल गुजरने के बाद दिल्ली के मेट्रो फेज-iv को सुप्रीम कोर्ट ने हरी झंडी दी। परंतु प्रोजेक्ट्स कम से कम दो साल पिछड़ गया। लागत बढ़ने से दिल्ली मेट्रोंको कई हजार करोड़ का नुकसान हुआ होगा. तथाकथित पर्यावरणविदों की वजह से मुंबई मेट्रो के काम दो साल स्थगित रहा और मुंबई मेट्रो को अंदाजन दस हजार करोड़ का नुकसान हुआ ऐसा कहा जाता है।
पर्यावरण सैनिक जो हमारे देश के ही नागरिक होते हैं, चंद पैसों , अंतराष्ट्रीय पुरस्कार इत्यादि के लिए बिक जाते हैं। वे सभी विकास के प्रोजेक्ट्स में अड़ंगा लगाते हैं। सरदार सरोवर बांध यदि मोदीजी गुजरात के मुख्यमंत्री न बनते तो शायद आज भी पूरा न बन पाता. दशकों की देरी की वजह से सरदार सरोवर बांध की लागत हजारों करोड़ बढ़ गई. परियोजना में रोड़े अटकाने वालोंको अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले या कहे देश को नुकसान पहुंचाने की रिश्वत मिली. देश का सबसे बड़ा बंदरगाह पालघर जिले में वाढवन में बनाने की योजना 1993 में बनी थी. पर पर्यावरणविद् न्यायालय पहुंचे और प्रोजेक्ट रद्द करवा दिया. अब 2024 में हमारे प्रधानमन्त्री ने भूमिपूजन कर काम को फिर से गति दी. 30 साल की देरी का मतलब लागत में हजारों करोड़ की वृद्धि होना. गत दस साल में देश जा निर्यात ढाई गुना बढ़ गया है. जेएनपीटी अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल कर रहा है. अब हर हाल में दो साल के भीतर वाढवन बंदरगाह का कुछ हिस्सा शुरू होना जरूरी है. यह प्रोजेक्ट्स कई लाख लोगों को रोजगार भी देगा. अभी भी प्रोजेक्ट को अटकाने का प्रयास पर्यावरणविद् कहे या विदेशी एजेंट निश्चित करेंगे.
कभी पर्यावरण के नाम पर, किसानों के नाम पर या स्थानीय भावनाएं भड़का कर देश का आर्थिक विकास रोकने का कार्य, शत्रुओं को निष्ठा बेचकर, हमारे देश के लोग ही करते है. बिका हुआ मीडिया भी ऐसे कामों में उनकी मदत करता है. देश का विकास रोकने का पुरस्कार के रूप में फोर्ड फाउंडेशन की मदत मिलती है, मैगासे जैसे पुरस्कार भी मिलते है.
अब समय आ गया है विकास विरोधी शत्रुओं के पैसों पर पलने वाले पर्यावरण सैनिकों को पहचाने और उनके जाल में देश को ने फंसने दे.
हम सभी जानते हैं भारत गर्म देश है। यहां के फूलो में खुशबू और मिठास होती है। भारतीय शहद औषधि गुणों से भरपूर होता है। इसी कारण अमेरिका जैसा देश जो दुनिया का सबसे ज्यादा शहद उत्पादन करता है वह भी भारत से सबसे ज्यादा शहद खरीदता है। अब यूरोप की बात करे अधिकांश भाग ठंडा है। वहाँ के फूलों में खुशबू और मिठास नहीं होती। अत: यूरोप के शहद का मापदंड अलग है। इसी आधार पर भारतीय शहद के बारे में भ्रम फैलाया जा सकता था। यूरोप एक देश की एक छोटी प्रयोगशाला जिसके पास ३०० फूलों के मार्कर थे जिसमे से ८५ प्रतिशत यूरोपियन फूलों के थे। भारतीय शहद के बारे में भ्रम फैलाने के लिए इसी प्रयोगशाला का उपयोग हुआ। भारत के एनजीओ के मुताबिक भारत के सभी प्रमुख ब्रांड के शहद उस प्रयोगशाला में टेस्ट किए और रिपोर्ट के अनुसार यूरोपियन मापदंड के अनुसार अधिकांश बड़े भारतीय ब्रांड के शहद में मिठास ज्यादा थी। वह यूरोपियन मापदंड के अनुसार नहीं थे।
बस फिर क्या भारतीय मीडिया में इस रिपोर्ट को उछाल दिया। मीडिया ने भी बिना विचार किए पाँच की पंचायत में इस पर चर्चा की। भारतीय ब्रण्ड्स को बदनाम किया। मजेदार बात हमारे उपभोक्ता मंत्रालय ने भी वेब साइट पर उस रिपोर्ट को डाल दिया। किसी ने प्रश्न नही पूछा क्या सचमुच भारतीय शहद ही वहां टेस्ट हुए थे? क्या शहद बनाने वाली कंपनियों से सहमति ली गई थी? क्या उस प्रयोगशाला के पास कोई वैधानिक अधिकार था? वैधानिक नियमों का पालन किया गया था? जिन शहद उत्पादकों के पास खुद की प्रयोगशाला नहीं होती वह दूसरी लैब जिन्हे इस कार्य के लिए भारत सरकार ने अधिकृत किया है अपने शहद की क्वालिटी की जांच नियमित कराते है। सबसे बड़ा सवाल क्या उस लेब के पास भारतीय फूलों के मार्कर थे? क्या भारतीय मापदण्डों के अनुसार टेस्टिंग हुई थी? इन सभी के जवाब नकारात्मक मिलते। क्या उपभोक्ता मंत्रालय को भारत सरकार के fassai के मापदंड और अधिकृत प्रयोगशालाओं पर विश्वास नहीं है, या बात कोई दूसरी है।
बाकी मीडिया द्वारा एनजीओ को सवाल ना पूछने के कारण मुझे बताने की जरूरत नहीं है। कारण सभी समझदार लोग जानते हैं। परिणाम सभी भारतीय कंपनियों डाबर से पतंजलि को बड़े-बड़े विज्ञापन प्रमाण पत्र सहित अखबारों टीवी पर देकर उनका शहद शुद्ध है यह बताना पड़ा। करोड़ों रुपए उनके इस में खर्च हुए। फिर भी बहुत से लोग इस रिपोर्ट पर विश्वास करेंगे और माल में महंगे दामों पर निम्न दर्जे के विदेशी शहद खरीदेंगे।
फेक और भ्रमित कारणे वाली रिपोर्ट्स कैसे तैयार की जाती है, इसका एक अंदाजा सभी को हो गया होगा। परंतु उनका यह षड्यंत्र नाकाम ही गया. भारतीय और अंतरराष्ट्रीय ग्राहक को भारतीय शहद की शुद्धता पर विश्वास है.इसका प्रमाण भारत का शहद निर्यात 23- 24 में बढ़कर 1470.85 करोड़ हो गया.