अतीत में युद्ध का मुख्य उद्देश्य दूसरे देशों पर कब्जा करना और उनसे प्रत्यक्ष रूप से चौथ वसूलना था। आज शत्रु देशों की प्रगति के मार्ग में बाधा उत्पन्न करना और उन्हें भारी आर्थिक क्षति पहुँचाना युद्ध का ही एक रूप है। उसके लिए स्वार्थी मीडिया, स्वार्थी राजनेता और दुश्मन देश के सामाजिक संगठनों का इस्तेमाल उन्ही के देश के खिलाफ़ किया जाता है।. हमारे शत्रुओं द्वारा छेड़े गए इस आर्थिक शीत युद्ध में हमारे देश का लाखों करोड़ों का नुकसान आजतक हुआ है। देश के लाखों लोग आर्थिक प्रगति और रोजगार से वंचित रह गए। सरकार को दुश्मन देशों की साजिश के बारे में पता है। लेकिन भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में, कानून कमजोर हैं और न्यायपालिका वर्षों तक निष्क्रिय या भटकी रहती है, जिससे महत्वपूर्ण विकास परियोजनाओं पर रोक लग जाती है। जब तक न्याय व्यवस्था द्वारा विकास परियोजनाओं को हरी झंडी दी जाती, तब तक देश को लाखों करोड़ों का का नुकसान हो चुका होता है. ऐसी व्यवस्था में दुश्मन के इशारों पर नाचने वाली तथाकथित सामाजिक संस्थाओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करना बहुत मुश्किल है। कई साल गुजरने के बाद दिल्ली के मेट्रो फेज-iv को सुप्रीम कोर्ट ने हरी झंडी दी। परंतु प्रोजेक्ट्स कम से कम दो साल पिछड़ गया। लागत बढ़ने से दिल्ली मेट्रोंको कई हजार करोड़ का नुकसान हुआ होगा. तथाकथित पर्यावरणविदों की वजह से मुंबई मेट्रो के काम दो साल स्थगित रहा और मुंबई मेट्रो को अंदाजन दस हजार करोड़ का नुकसान हुआ ऐसा कहा जाता है।
पर्यावरण सैनिक जो हमारे देश के ही नागरिक होते हैं, चंद पैसों , अंतराष्ट्रीय पुरस्कार इत्यादि के लिए बिक जाते हैं। वे सभी विकास के प्रोजेक्ट्स में अड़ंगा लगाते हैं। सरदार सरोवर बांध यदि मोदीजी गुजरात के मुख्यमंत्री न बनते तो शायद आज भी पूरा न बन पाता. दशकों की देरी की वजह से सरदार सरोवर बांध की लागत हजारों करोड़ बढ़ गई. परियोजना में रोड़े अटकाने वालोंको अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले या कहे देश को नुकसान पहुंचाने की रिश्वत मिली. देश का सबसे बड़ा बंदरगाह पालघर जिले में वाढवन में बनाने की योजना 1993 में बनी थी. पर पर्यावरणविद् न्यायालय पहुंचे और प्रोजेक्ट रद्द करवा दिया. अब 2024 में हमारे प्रधानमन्त्री ने भूमिपूजन कर काम को फिर से गति दी. 30 साल की देरी का मतलब लागत में हजारों करोड़ की वृद्धि होना. गत दस साल में देश जा निर्यात ढाई गुना बढ़ गया है. जेएनपीटी अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल कर रहा है. अब हर हाल में दो साल के भीतर वाढवन बंदरगाह का कुछ हिस्सा शुरू होना जरूरी है. यह प्रोजेक्ट्स कई लाख लोगों को रोजगार भी देगा. अभी भी प्रोजेक्ट को अटकाने का प्रयास पर्यावरणविद् कहे या विदेशी एजेंट निश्चित करेंगे.
कभी पर्यावरण के नाम पर, किसानों के नाम पर या स्थानीय भावनाएं भड़का कर देश का आर्थिक विकास रोकने का कार्य, शत्रुओं को निष्ठा बेचकर, हमारे देश के लोग ही करते है. बिका हुआ मीडिया भी ऐसे कामों में उनकी मदत करता है. देश का विकास रोकने का पुरस्कार के रूप में फोर्ड फाउंडेशन की मदत मिलती है, मैगासे जैसे पुरस्कार भी मिलते है.
अब समय आ गया है विकास विरोधी शत्रुओं के पैसों पर पलने वाले पर्यावरण सैनिकों को पहचाने और उनके जाल में देश को ने फंसने दे.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं