मंगलवार, 10 सितंबर 2024

आर्थिक युद्ध: भारतीय शहद को बदनाम करने का षडयंत्र


गत 15 वर्षों में भारत में शहद का उत्पादन 27000 एमटी से बढ़कर 1,33,200 एमटी (2022) तक पहुँच गया है। सन 2030 तक इसे दुगना करने का लक्ष्य है। भारत उत्पादन का आधे से ज्यादा शहद निर्यात करता है। जहां भारत ने 2013 में 194 करोड़ रूपए का शहद निर्यात किया था, वहीं 2022 में 1200 करोड़ रुपए का. जाहीर है भारत के इस उद्योग में बढ़ते त कदम का नुकसान विदेशी उत्पादकों को होगा ही। भारतीय शहद उद्योग को धक्का पहुँचाने के लिए  भारत की बड़ी कंपनियों के शहद के बारे में भारतीय जनता में भ्रम फैलाना का ही आर्थिक युद्ध है। इसके तहत भारत में शहद बनाने वाली बड़ी कंपनियों को भारत में ही बदनाम कर दिया जाए।  हमारे देश की पढ़ी-लिखी जनता भी यूरोप से कोई रिपोर्ट आई तो उसपर  बिना सोचे समझे  आंख बंद करके भरोसा करती है। इसके सिवा हम भारतीय पैसे के लिए चाहे नौकरशाह हो, पत्रकार हो या तथाकथित एनजीओ आसानी से बिक जाते है। भारतीय कंपनियों के शहद को भारत की प्रयोगशालाओं नकली सिद्ध करना संभव ही नहीं। तो यूरोप में ही सही। एक भारतीय एनजीओ की मदत से यह कार्य यूरोप के  गत वर्ष यूरोप में हुआ। 

हम सभी जानते हैं भारत गर्म देश है। यहां के फूलो में खुशबू और मिठास होती है। भारतीय शहद औषधि गुणों से भरपूर होता है। इसी कारण  अमेरिका जैसा देश जो दुनिया का सबसे ज्यादा शहद उत्पादन करता है वह भी भारत से सबसे ज्यादा शहद खरीदता है। अब यूरोप की बात करे अधिकांश भाग ठंडा है। वहाँ के फूलों में खुशबू और मिठास नहीं होती। अत: यूरोप के शहद का मापदंड अलग है। इसी आधार पर भारतीय शहद के बारे में भ्रम फैलाया जा सकता था। यूरोप एक देश की एक छोटी प्रयोगशाला जिसके पास ३०० फूलों के मार्कर थे जिसमे से ८५ प्रतिशत यूरोपियन फूलों के थे। भारतीय शहद के बारे में भ्रम फैलाने के लिए इसी प्रयोगशाला का उपयोग हुआ। भारत के एनजीओ के मुताबिक भारत  के सभी प्रमुख ब्रांड के शहद उस प्रयोगशाला में टेस्ट किए और रिपोर्ट के अनुसार यूरोपियन मापदंड के अनुसार अधिकांश बड़े भारतीय ब्रांड के शहद में मिठास ज्यादा थी। वह यूरोपियन मापदंड के अनुसार नहीं थे।   

बस फिर क्या भारतीय मीडिया में इस रिपोर्ट को उछाल दिया। मीडिया ने भी बिना विचार किए पाँच की पंचायत में  इस पर चर्चा की। भारतीय ब्रण्ड्स को बदनाम किया। मजेदार बात  हमारे उपभोक्ता मंत्रालय ने भी वेब साइट पर उस रिपोर्ट को डाल दिया।  किसी ने प्रश्न नही पूछा क्या सचमुच भारतीय शहद ही वहां टेस्ट हुए थे? क्या शहद बनाने वाली कंपनियों से सहमति ली गई थी? क्या उस प्रयोगशाला के पास कोई वैधानिक अधिकार था? वैधानिक नियमों का पालन किया गया था?  जिन शहद उत्पादकों के पास खुद की प्रयोगशाला नहीं होती वह दूसरी लैब जिन्हे इस कार्य के लिए भारत सरकार ने अधिकृत किया है अपने शहद की क्वालिटी की जांच नियमित कराते है। सबसे बड़ा सवाल क्या उस लेब के पास भारतीय फूलों के मार्कर थे? क्या भारतीय मापदण्डों के अनुसार टेस्टिंग हुई थी? इन सभी के जवाब नकारात्मक मिलते। क्या उपभोक्ता मंत्रालय को भारत सरकार के fassai के मापदंड और अधिकृत प्रयोगशालाओं पर विश्वास नहीं है, या बात कोई दूसरी है।    

बाकी मीडिया द्वारा एनजीओ को  सवाल ना पूछने के कारण मुझे बताने की जरूरत नहीं है। कारण सभी समझदार लोग जानते हैं। परिणाम सभी भारतीय कंपनियों डाबर से पतंजलि को बड़े-बड़े विज्ञापन  प्रमाण पत्र सहित अखबारों टीवी पर देकर उनका शहद शुद्ध है यह बताना पड़ा। करोड़ों रुपए उनके इस में खर्च हुए। फिर भी बहुत से लोग इस रिपोर्ट पर  विश्वास करेंगे और माल में महंगे दामों पर निम्न दर्जे के विदेशी शहद खरीदेंगे।   

फेक और भ्रमित कारणे वाली रिपोर्ट्स कैसे तैयार की जाती है, इसका एक अंदाजा सभी को हो गया होगा।  परंतु उनका यह षड्यंत्र नाकाम ही गया. भारतीय और अंतरराष्ट्रीय ग्राहक को भारतीय  शहद की शुद्धता पर विश्वास है.इसका प्रमाण भारत का शहद निर्यात 23- 24 में बढ़कर 1470.85 करोड़ हो गया.


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