रविवार, 10 नवंबर 2024

समोसे और वीआईपी समोसा

 

बिहार में एक मशहूर कहावत है "जब तक रहेगा समोसे में आलू, बिहार पे राज करेगा हमारा, लालू"। देश में सबसे ज्यादा खाया जाने वाले समोसे में भी आलू ही होता है। मेरा बचपन पुरानी दिल्ली में बिता। पुरानी दिल्ली में कई बाज़ारों के नाम, उन बाजार में मिलने वाले वस्तुओंके नाम पर है। जैसे तेल वाली गली (गली तेलियाँन) में खाने के तेल बेचने वालों की दुकाने है। परांठा वाली गली में पराठों की दुकाने। वैसे ही एक गली का नाम समोसे वाली गली है। इस गली में तरह तरह के समोसे मिलते है। ज़्यादातर दुकानों में मूंग, चने के दाल के बने समोसे मिलते है। ये समोसे किलो के भाव मिलते  है। शादी ब्याह में भी स्टार्टर की तरह परोसे जाते हैं। इसके अलावा मक्खन से बनने वाला समोसा भी प्रसिद्ध है। इस समोसे का कवर मक्खन का होता है और अंदर मेवे भरे होते हैं। इसे बर्फ या  फ्रिज में  ठंडा  रखना  होता है। इसके  राजसी ठाठ बाट होते हुए भी यह वीआईपी समोसा नहीं कहलाता। 

समोसा आम आदमी टाइम पास है। उत्तम नगर मेट्रो स्टेशन के पास एक आदमी पटरी पर आज भी दस रुपए के पाँच समोसे बेचता है। गरीब  मजदूर लोग इन सस्ते समोसों को खाकर समोसे खाने का आनंद उठा लेते हैं। ज़्यादातर दुकानदार उबले आलू में नमक, मिर्च, अमचूर इत्यादि मिलाकर समोसा बेचते हैं। जीवन पार्क में एक दुकानदार दिन में ऐसे दो से ढाई हजार समोसे 15 रु का एक बेचकर दिन में मोटी कमाई कर लेता है। ऐसे सैंकड़ों दुकाने दिल्ली में होंगी। कुछ दुकानदार आलू को अच्छी  तरह भून कर उसमें कई तरह के मसाले, काजू इत्यादि डाल कर 20 से 25  रुपए का एक समोसा बेचते हैं। समोसे के साथ हरी चटनी और इमली और गुड  की मीठी चटनी परोसी जाती है। कुछ दुकानदार खजूर की चटनी भी समोसे के साथ देते हैं।  पंजाबी इलाकों में दुकानदार समोसों में आलू के साथ मटर और पनीर भी डालते हैं। ये दुकानदार समोसों को छोले के साथ परोसते हैं। नागपुर शहर में कई दुकानदार समोसे को दही, तीखी और खट्टी मीठी चटनी के साथ ग्राहकों को परोसते हैं। दिल्ली के सैंकड़ों सरकारी दफ्तरों में सस्ता होने की वजह से चाय के साथ समोसा बाबुओंका प्रिय नाश्ता है।समोसे के साथ चाय पीते हुए होने वाली चर्चाओं में ही देश के भविष्य का निर्णय होता है,  ऐसा अधिकांश बाबुओं  को लगता है। 

फिर भी इनमें से कोई भी वीआईपी समोसा नहीं होता है। वीआईपी समोसा फाइव स्टार होटल से आता है। इसकी किंमत कम से कम डेढ़सो सौ रुपए के आसपास होती है। वीआईपी समोसे को खाने का हक केवल वीआईपी लोगों को  होता है। आम आदमी गलती से इन्हे चखले तो उसे इसके परिणाम भुगतने पड़ते हैं। पिछले दिनों शिमला में यही हुआ। वीआईपी लोगों के लिए मँगवाए 21 समोसे, गलती से स्टाफ ने खा लिए। पर वे वीआईपी समोसे हजम न कर सके। सीआईडी ने जांच की और पाया "यह सरकार विरोधी कृत्य है"। इसी से पता चलता है वीआईपी समोसा कितना पावरफुल होता है। अब यह मामला मीडिया में जोरदार उछल रहा है, जैसे समोसे कढ़ाई में उछलते हैं। जाहीर है कुछ कर्मचारियों को इसकी कीमत चुकनी पड़ेगी।







सोमवार, 23 सितंबर 2024

स्वार्थबुद्धि मेंढक और सांप: आज के संदर्भ में

एक बहुत बड़े कुंए में हजारों मेंढक रहते थे. स्वार्थबुद्धि वहां का राजा था. एक चुनाव में वह पराजित हो गया. उसे गद्दी छोड़नी पड़ी. अपने विरोधियों को सबक सिखाने के लिए, मदद मांगने के इरादे से, वह कुंए के बाहर निकला. थोड़ी दूर चलने के बाद उसे एक सांप नजर आया. स्वार्थबुद्धि ने सोचा सांप मेंढकों को खाता है. क्यों न इसकी मदद से विरोधियों का हमेशा के लिए सफाया कर दूं. उसके बाद वह हमेशा के लिए कुंए के राजा बन जायेगा. स्वार्थबुद्धि सांप के पास आया और बोला सांप क्या तुम मेरे दोस्त बनोगे, इससे हम दोनों का फायदा होगा. सांप भी मेंढक को अपने पास आते देख आश्चर्य चकित हो गया था. क्योंकि मेंढक तो सांप को देखते ही भाग खड़े होते है. सांप ने मीठी आवाज में पूछा, तुमसे दोस्ती करने पर मुझे क्या फायदा होगा. आज तुम्हे खा के मेरी भूख जरूर मिट जायेगी. स्वार्थबुद्धि बिना डरे बोला, मुझे खाकर तुम्हारी एक समय की भूख मिट जायेगी, पर यदि मैं तुम्हारा कई महीने के भोजन का इंतजाम कर दूं, तो तुम मेरे दोस्त बनोगे. स्वार्थबुद्धि ने कहा, यहीं नजदीक में एक बहुत बड़ा कुंआ है. उसमे हजारों मेंढक रहते है. मैं वहां का राजा था. लेकिन पिछले चुनाव में मैं हार गया. मैं फिर से राजा बनना चाहता हूं. मुझे कुंए तक जाने का गुप्त रास्ता पता है. मैं तुम्हे कुंए तक ले जाऊंगा, तुम मेरे सारे विरोधियों को उनके परिवार समेत खा लेना. उसके बाद मैं राजा बन जाऊंगा. तुम कुंआ छोड़कर चले जाना. स्वार्थबुद्धि की मूर्खतापूर्ण बातें सुन सांप के मुंह से लार टपकने लगी. वह स्वार्थबुद्धि से बोला तुम शीघ्रता से मुझे कुंए के पास ले चलो, मैं तुम्हारे सारे विरोधियों को खाकर तुम्हे राजा बनाकर, कुंए को छोड़ दूंगा. 

इस तरह सांप कुंए में पहुंच गया. पहले उसने स्वार्थबुद्धि के विरोधियों को खा लिया. स्वार्थबुद्धि राजा बन गया. उसने सांप से कहा अब तुम कुंआ छोड़ के चले जाओ. सांप ने कहा मूर्ख,  मेंढक मेरा भोजन है. सब मेंढकों को खाने के बाद ही मैं यह कुंआ छोडूंगा. तुमसे बड़ा मूर्ख मैने आज तक नही देखा जो अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए अपने शत्रुओं की मदद लेता है. ऐसा कहते हुए सांप ने स्वार्थबुद्धि को निगल लिया. अब कुंए पर सांप का राज हो गया. स्वार्थबुद्धि  ने मेंढकों के शत्रु की मदद ली और कुंए के सभी मेंढकों के विनाश का कारण बना.

हमारा इतिहास बताता है, अपने छोटे- छोटे स्वार्थ सिद्ध करने के लिए जिन्होंने शत्रु की मदद ली. देश के शत्रुओं ने उन्हें भी नष्ट कर दिया.  इसके बावजूद, आज भी हमारे देश के कुछ महत्त्वाकांक्षी राजनेता शत्रु की मदद से देश की गद्दी पर बैठना चाहते हैं. तो कुछ शत्रु की मदद से स्वतंत्र राज्य बनाना चाहते है. उनका हश्र स्वार्थबुद्धि तरह ही होगा. लेकिन अपना स्वार्थ सिद्ध करने के चक्कर में  ऐसे मूर्ख नेता, देश और प्रदेश के लोगो का जीवन भी संकट में डाल देंगे. 


शनिवार, 21 सितंबर 2024

जिन्न ने प्रदूषण का खात्मा कैसे किया

एक दिन अलादीन अपनी कार से महानगर पहुंचा. महानगर में सैकड़ो कल कारखाने थे, जिनकी चिमनियाँ धुंआ उगल रही थी. लाखों कारें भी प्रदूषित वायु वातावरण में छोड़ रही थी.  शहर के धुएं से अलादीन का दम घुटने लगा. उसने बोतल का ढक्कन खोला. जिन्न हाथ बांधकर अलादीन से बोला, क्या हुक्म है मेरे आका. अलादीन ने कहा जिन्न क्या तुम इस प्रदूषण को जड़ से मिटा सकते हो? हां, मेरे आका,Nलेकिन इसकी इंसान को बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ेगी. अलादीन बोला,  मुझे मंजूर है, तुम प्रदूषण को जड़ से खत्म करो. जिन्न ने तत्काल अलादीन का गला घोट दिया. उसीके साथ दुनिया इंसान खत्म हो गया. इंसान के खत्म होते ही प्रदूषण भी जड़ से खत्म हो गया. जिन्न भी आज़ाद हो गया. धरती फिर से हरी भरी हो गई.  पशु पक्षी जानवर सभी धरती पर हंसी खुशी रहने लगे

बुधवार, 18 सितंबर 2024

चंचल मन


मन में द्वंद है
खुद से ही युद्ध है
फिर शांति कहाँ.

सपने दिखाता है
खुद को ही ठगता है
चंचल मन.

मंगलवार, 17 सितंबर 2024

गिरगिट और रंग बदलने वाला नेता

एक बार जंगल में रहने वाले गिरगिट सोचा शहर जाकर लोगों को अपना रंग बदलने का हुनर दिखाकर वाहवाही बटोरूंगा. गिरगिट शहर आया. एक बंगले में एक आदमी सफेद टोपी लगाए कुर्सी पर बैठा हुआ था. गिरगिट उस आदमी के पास जाकर बोला, मैं जंगल में रहने वाला गिरगिट हूं. मैं जिस जगह पर बैठता हूं, उसी के रंग में रंग जाता हूं. आपको में अपनी कला दिखाता हूं. गिरगिट हरे पौधे पर बैठा, हरे रंग का हो गया.लाल फूल पर बैठा, लाल रंग का हो गया. इस तरह गिरगिट ने कई रंग बदल कर उस आदमी को दिखाए. फिर गिरगिट उस आदमी को बोला, क्या आप ऐसा कर सकते हो. वह आदमी बोला इसमें कौनसी बड़ी बात है. मैं इसी कुर्सी पर बैठा- बैठा रंग बदल सकता हूं. बस तुम मेरी टोपी की तरफ देखो. गिरगिट ने देखा उस आदमी की टोपी का रंग क्षणभर में हरे से लाल, लाल से नीला, नीले से भगवा और फिर सफेद ही गया. उस आदमी की रंग बदलने की कला देख गिरगिट आश्चर्य चकित हो गया. गिरगिट ने उस आदमी से पूछा आप आखिर हो कौन? मैने इंसानों को रंग बदलते आजतक नहीं देखा है.वह आदमी बोला, गिरगिट मैं मामूली इंसान नही हूं. मैं सदा कुर्सी पर विराजमान रहने वाला नेता हूं. चाहे टोपी के कितने ही रंग बदलने पड़े. गिरगिट ने उस आदमी के चरण छुए और बोला गुरुदेव क्या अपनी कला मुझे  सिखाएंगे क्या?


शुक्रवार, 13 सितंबर 2024

आर्थिक युद्ध: पर्यावरण सैनिक

 अतीत में युद्ध का मुख्य उद्देश्य दूसरे देशों पर कब्जा करना और उनसे प्रत्यक्ष रूप से चौथ वसूलना था। आज शत्रु देशों की प्रगति के मार्ग में बाधा उत्पन्न करना और उन्हें भारी आर्थिक क्षति पहुँचाना युद्ध का ही एक रूप है। उसके लिए स्वार्थी मीडिया, स्वार्थी राजनेता और दुश्मन देश के सामाजिक संगठनों का इस्तेमाल  उन्ही के देश के खिलाफ़ किया जाता है।. हमारे शत्रुओं द्वारा छेड़े गए इस आर्थिक शीत युद्ध में हमारे देश का लाखों करोड़ों का नुकसान  आजतक हुआ है। देश के लाखों लोग आर्थिक प्रगति और रोजगार से वंचित रह गए। सरकार को दुश्मन देशों की साजिश के बारे में पता है। लेकिन भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में, कानून कमजोर हैं और न्यायपालिका वर्षों तक निष्क्रिय या भटकी रहती है, जिससे महत्वपूर्ण विकास परियोजनाओं पर रोक लग जाती है। जब तक न्याय व्यवस्था द्वारा विकास परियोजनाओं को हरी झंडी  दी जाती, तब तक देश को लाखों करोड़ों का का नुकसान हो चुका  होता है. ऐसी व्यवस्था में दुश्मन के इशारों पर नाचने वाली तथाकथित सामाजिक संस्थाओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करना बहुत मुश्किल है। कई साल गुजरने  के बाद दिल्ली के मेट्रो फेज-iv को सुप्रीम कोर्ट ने हरी झंडी दी। परंतु प्रोजेक्ट्स कम से कम दो साल पिछड़ गया। लागत बढ़ने से दिल्ली  मेट्रोंको कई हजार करोड़ का नुकसान हुआ होगा. तथाकथित पर्यावरणविदों की वजह से मुंबई मेट्रो के काम दो साल स्थगित रहा और मुंबई मेट्रो को अंदाजन दस हजार करोड़ का नुकसान हुआ ऐसा कहा जाता है। 

पर्यावरण सैनिक जो हमारे देश के ही नागरिक होते हैं, चंद पैसों , अंतराष्ट्रीय पुरस्कार इत्यादि के लिए बिक  जाते हैं।  वे सभी विकास के प्रोजेक्ट्स में अड़ंगा लगाते हैं। सरदार सरोवर बांध यदि मोदीजी गुजरात के मुख्यमंत्री न बनते तो शायद आज भी पूरा न बन पाता. दशकों की देरी की वजह से सरदार सरोवर बांध की लागत हजारों करोड़ बढ़ गई. परियोजना में रोड़े अटकाने वालोंको अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले या कहे देश को नुकसान पहुंचाने की रिश्वत मिली. देश का सबसे बड़ा बंदरगाह पालघर  जिले में वाढवन में बनाने की योजना 1993 में बनी थी. पर पर्यावरणविद् न्यायालय पहुंचे और प्रोजेक्ट रद्द करवा दिया. अब 2024 में हमारे प्रधानमन्त्री ने भूमिपूजन कर काम को फिर से गति दी. 30 साल की देरी का मतलब लागत में  हजारों करोड़ की वृद्धि होना. गत दस साल में देश जा निर्यात ढाई गुना बढ़ गया है. जेएनपीटी अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल कर रहा है. अब हर हाल में दो साल के भीतर वाढवन बंदरगाह का कुछ हिस्सा शुरू होना जरूरी है. यह प्रोजेक्ट्स कई लाख लोगों को रोजगार भी देगा. अभी भी प्रोजेक्ट को अटकाने का प्रयास पर्यावरणविद् कहे या विदेशी एजेंट निश्चित करेंगे.

कभी पर्यावरण के नाम पर, किसानों के नाम पर या स्थानीय भावनाएं भड़का कर देश का आर्थिक विकास रोकने का कार्य, शत्रुओं को निष्ठा बेचकर, हमारे देश के लोग ही करते है. बिका  हुआ मीडिया भी ऐसे कामों में उनकी मदत करता है. देश का विकास रोकने का पुरस्कार के रूप में फोर्ड फाउंडेशन की मदत मिलती है, मैगासे जैसे पुरस्कार भी मिलते है.

अब समय आ गया है विकास विरोधी शत्रुओं के पैसों पर पलने वाले पर्यावरण सैनिकों को पहचाने और उनके जाल में देश को ने फंसने दे. 


मंगलवार, 10 सितंबर 2024

आर्थिक युद्ध: भारतीय शहद को बदनाम करने का षडयंत्र


गत 15 वर्षों में भारत में शहद का उत्पादन 27000 एमटी से बढ़कर 1,33,200 एमटी (2022) तक पहुँच गया है। सन 2030 तक इसे दुगना करने का लक्ष्य है। भारत उत्पादन का आधे से ज्यादा शहद निर्यात करता है। जहां भारत ने 2013 में 194 करोड़ रूपए का शहद निर्यात किया था, वहीं 2022 में 1200 करोड़ रुपए का. जाहीर है भारत के इस उद्योग में बढ़ते त कदम का नुकसान विदेशी उत्पादकों को होगा ही। भारतीय शहद उद्योग को धक्का पहुँचाने के लिए  भारत की बड़ी कंपनियों के शहद के बारे में भारतीय जनता में भ्रम फैलाना का ही आर्थिक युद्ध है। इसके तहत भारत में शहद बनाने वाली बड़ी कंपनियों को भारत में ही बदनाम कर दिया जाए।  हमारे देश की पढ़ी-लिखी जनता भी यूरोप से कोई रिपोर्ट आई तो उसपर  बिना सोचे समझे  आंख बंद करके भरोसा करती है। इसके सिवा हम भारतीय पैसे के लिए चाहे नौकरशाह हो, पत्रकार हो या तथाकथित एनजीओ आसानी से बिक जाते है। भारतीय कंपनियों के शहद को भारत की प्रयोगशालाओं नकली सिद्ध करना संभव ही नहीं। तो यूरोप में ही सही। एक भारतीय एनजीओ की मदत से यह कार्य यूरोप के  गत वर्ष यूरोप में हुआ। 

हम सभी जानते हैं भारत गर्म देश है। यहां के फूलो में खुशबू और मिठास होती है। भारतीय शहद औषधि गुणों से भरपूर होता है। इसी कारण  अमेरिका जैसा देश जो दुनिया का सबसे ज्यादा शहद उत्पादन करता है वह भी भारत से सबसे ज्यादा शहद खरीदता है। अब यूरोप की बात करे अधिकांश भाग ठंडा है। वहाँ के फूलों में खुशबू और मिठास नहीं होती। अत: यूरोप के शहद का मापदंड अलग है। इसी आधार पर भारतीय शहद के बारे में भ्रम फैलाया जा सकता था। यूरोप एक देश की एक छोटी प्रयोगशाला जिसके पास ३०० फूलों के मार्कर थे जिसमे से ८५ प्रतिशत यूरोपियन फूलों के थे। भारतीय शहद के बारे में भ्रम फैलाने के लिए इसी प्रयोगशाला का उपयोग हुआ। भारत के एनजीओ के मुताबिक भारत  के सभी प्रमुख ब्रांड के शहद उस प्रयोगशाला में टेस्ट किए और रिपोर्ट के अनुसार यूरोपियन मापदंड के अनुसार अधिकांश बड़े भारतीय ब्रांड के शहद में मिठास ज्यादा थी। वह यूरोपियन मापदंड के अनुसार नहीं थे।   

बस फिर क्या भारतीय मीडिया में इस रिपोर्ट को उछाल दिया। मीडिया ने भी बिना विचार किए पाँच की पंचायत में  इस पर चर्चा की। भारतीय ब्रण्ड्स को बदनाम किया। मजेदार बात  हमारे उपभोक्ता मंत्रालय ने भी वेब साइट पर उस रिपोर्ट को डाल दिया।  किसी ने प्रश्न नही पूछा क्या सचमुच भारतीय शहद ही वहां टेस्ट हुए थे? क्या शहद बनाने वाली कंपनियों से सहमति ली गई थी? क्या उस प्रयोगशाला के पास कोई वैधानिक अधिकार था? वैधानिक नियमों का पालन किया गया था?  जिन शहद उत्पादकों के पास खुद की प्रयोगशाला नहीं होती वह दूसरी लैब जिन्हे इस कार्य के लिए भारत सरकार ने अधिकृत किया है अपने शहद की क्वालिटी की जांच नियमित कराते है। सबसे बड़ा सवाल क्या उस लेब के पास भारतीय फूलों के मार्कर थे? क्या भारतीय मापदण्डों के अनुसार टेस्टिंग हुई थी? इन सभी के जवाब नकारात्मक मिलते। क्या उपभोक्ता मंत्रालय को भारत सरकार के fassai के मापदंड और अधिकृत प्रयोगशालाओं पर विश्वास नहीं है, या बात कोई दूसरी है।    

बाकी मीडिया द्वारा एनजीओ को  सवाल ना पूछने के कारण मुझे बताने की जरूरत नहीं है। कारण सभी समझदार लोग जानते हैं। परिणाम सभी भारतीय कंपनियों डाबर से पतंजलि को बड़े-बड़े विज्ञापन  प्रमाण पत्र सहित अखबारों टीवी पर देकर उनका शहद शुद्ध है यह बताना पड़ा। करोड़ों रुपए उनके इस में खर्च हुए। फिर भी बहुत से लोग इस रिपोर्ट पर  विश्वास करेंगे और माल में महंगे दामों पर निम्न दर्जे के विदेशी शहद खरीदेंगे।   

फेक और भ्रमित कारणे वाली रिपोर्ट्स कैसे तैयार की जाती है, इसका एक अंदाजा सभी को हो गया होगा।  परंतु उनका यह षड्यंत्र नाकाम ही गया. भारतीय और अंतरराष्ट्रीय ग्राहक को भारतीय  शहद की शुद्धता पर विश्वास है.इसका प्रमाण भारत का शहद निर्यात 23- 24 में बढ़कर 1470.85 करोड़ हो गया.