सोमवार, 1 सितंबर 2025

बूढ़ा आदमी और सुनहरे फूलों की महक

 

एक बूढ़ा आदमी रोज़ सुबह बगीचे में टहलने आता था। बगीचे में पहुँचने के बाद वह घंटों तक सुनहरे फूलों से बातें करता। इस सुबह भी वह आया, लेकिन उसने क्या देखा—बगीचे में सुनहरे फूलों का पौधा किसी ने उखाड़ दिया था। 

"यह जरूर उन क्रिकेट खेलने वाले शरारती लड़कों की करतूत है," उसने मन ही मन सोचा और उन्हें कोसा। उसने एक मुरझाया हुआ सुनहरा फूल उठाया और उसे अपने सीने से कसकर लगा लिया। उसके दिल में एक टीस उठी, और वह वहीं ज़मीन पर लुढक गया।

"दादाजी, अब कैसा लग रहा है?"

बूढ़े आदमी ने आँखें खोलीं। सामने क्यारी में सुनहरे फूल हवा में झूम रहे थे। उनकी महक चारों ओर फैली हुई थी। उसने प्यार से फूलों को सहलाया।

दादाजी ने हमेशा की तरह पूछा, "कैसे हो मेरे बच्चों?"

"दादाजी, हम बहुत अच्छे हैं। यहाँ कोई चिंता नहीं है। अब कोई हमें तकलीफ़ नहीं दे सकता। आप थक गए होंगे—थोड़ा आराम कर लीजिए। हम आपकी पसंदीदा बाँसुरी की टेप चला देते हैं। अब हमारे पास भरपूर समय है—सिर्फ हमारे लिए।"

बूढ़े आदमी ने संतोष से आँखें बंद कर लीं। दूर आकाश में बाँसुरी की मधुर धुन गूंज रही थी।

 

शनिवार, 30 अगस्त 2025

विरही प्रेम

 

उस दिन शनिवार था। कनॉट प्लेस के सरकारी दफ्तर से दोपहर ढाई बजे काम निपटाकर बाहर निकला। मेट्रो स्टेशन की ओर जाते हुए, वह सामने से आती दिखाई दी। उसने भी मुझे देखा।

“विवेक!” वह दौड़ती हुई मेरे पास आई। ऐसा लगा जैसे वह मुझे गले लगाना चाहती हो। लेकिन पास आते ही ठिठक गई। आज भी वह वैसी ही लग रही थी—दुबली-पतली, उजली पंजाबी रंगत, बस बालों में थोड़ी सफेदी आ गई थी। उसके चेहरे पर खुशी और डर का मिला-जुला भाव था।

मैं बोला, “तुम बिल्कुल नहीं बदली हो। वैसी ही लग रही हो जैसे 35 साल पहले लगती थी।” वह हँस पड़ी, “तुम भी वैसे ही हो—बस बाल सफेद हो गए हैं।” मैं मुस्कुराया, “उम्र हो गई है अब। कॉफी हाउस चलें? बातें भी हो जाएंगी।” अनायास ही मैंने उसका हाथ थाम लिया और हम कॉफी हाउस की ओर चल पड़े।

शायद अगस्त 1981 रहा होगा। मुझे राजेंद्र प्लेस की एक व्यापारिक संस्था में अस्थायी नौकरी मिली थी। वह भी पास की एक कंपनी में काम करती थी। उम्र हमारी बराबर थी। वह तिलक नगर में रहती थी। हमारी मुलाकात चार्टर्ड बस में हुई। वह बी.कॉम के अंतिम वर्ष में थी और अकाउंट्स में कमजोर थी। मैं उसमें अच्छा था। रविवार और समय मिलने पर वह पढ़ने मेरे घर आने लगी।

एक दिन पढ़ाई के बाद जब मैं उसे जेल रोड तक छोड़ने जा रहा था, कुछ आवारा लड़के अजीब नजरों से हमें घूरते हुए गुज़रे। मुझे असहजता हुई। मैंने महसूस किया,  मेरा हाथ उसके कंधे पर था। मैंने झिझकते हुए हाथ हटा लिया और कहा, “सॉरी, गलती से रख दिया था।”

उसने मेरा हाथ फिर से अपने कंधे पर रखा और मुस्कराकर कहा, “तू मूर्ख है, तुझे कुछ समझ नहीं आता।”  अब हमारी मित्रता प्रेम में बदल गयी थी। उस समय शनिवार को ऑफिस जल्दी बंद हो जाते थे। हम रचना सिनेमा हॉल में फिल्में देखते, बुद्ध गार्डन में बॉलीवुड प्रेमियों की तरह घूमते। लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था। कुछ दिनों से वह मिलने नहीं आयी। एक दिन उसकी सहेली लंच टाइम में मेरे ऑफिस आई और बोली, “विवेक, उससे मिलने की कोशिश मत करना। हमारे ऑफिस भी मत आना।” मैंने पूछा, “क्या हुआ?” उसने बताया कि उसके पिता ने उसके बड़े भाई के दोस्त से उसकी शादी की बात की थी। उसने साफ़ मना कर दिया और कहा -“मैं उस शराबी से शादी करूंगी? आप यह कैसे सोच सकते हैं?”उसका भाई भड़क गया और पिता से बोला, "मैं तो पहले ही कह रहा था कि उसे नौकरी मत करने दो। बाहर इधर-उधर नजरें लड़ाती फिरती होगी"।'भाई की बात सुन वह भी तमतमा गई— “हाँ करती हूँ। क्या कर लोगे? वह तुम्हारे दोस्त जैसा शराबी नहीं है। वह साफ-सुथरे ब्राह्मण परिवार से है।”

उस समय दिल्ली में खालिस्तानी हवा बह रही थी।  उसकी बात सुन उसके पिता को गुस्सा आया और बेल्ट निकालकर उसे पीटना शुरू कर दिया। वह उससे मेरा नाम बुलवाना चाहते थे। वह मार खाती रही लेकिन उसने मुंह नहीं खोला। उसकी माँ ने किसी तरह उसे बचाया। उसका भाई मुझे मारने की कसम खा चुका था। दो-तीन दिन बाद उसका भाई उसके ऑफिस आया और बोला, “उसका एक्सीडेंट हो गया है। अब वह ऑफिस नहीं आएगी।” फिर धीरे से उसने मुझसे कहा, “उसका एक बॉयफ्रेंड है। उसे उससे मिलना है। मुझे उसका संदेश देना है।” उसके चेहरे के भाव देखकर मेरी छठी इंद्रिय जाग गई। मैंने कहा, “हम सिर्फ ऑफिस के मित्र  हैं। बाहर क्या करती है, मुझे नहीं पता।” वह बुदबुदाया, “न बताओ, मैं खुद देख लूंगा।” हमारे मैनेजर को भी शक हुआ। अगले दिन हम उसके घर गए। उसकी माँ चाय  बनाने के लिए  रसोई में गई। तब वह धीरे से बोली, “विवेक से कहना, कुछ महीनों तक उससे मिलने की कोशिश न करे। मेरा भाई कनाडा जाने की कोशिश कर रहा है। उसके जाने के बाद मैं खुद मिलूंगी।”

नवंबर में मुझे सरकारी नौकरी मिल गई। घर की आर्थिक स्थिति सुधरी। जनवरी 1983 में हम हरिनगर के एलआईजी फ्लैट में शिफ्ट हो गए। एक दिन मैं उसके ऑफिस गया। उसकी सहेली ने बताया, “वह फिर ऑफिस नहीं आयी। कुछ दिन पहले वह उसके घर गई थी—घर पर ताला लगा था। उसके पिता ने घर बेचकर बेटे को कनाडा भेज दिया था और बाकी पैसों से दिल्ली में ही कहीं फ्लैट खरीद लिया। उसकी सहेली की बात सुन मैं स्तब्ध रह गया। इतनी बड़ी दिल्ली में मैं उसे कहाँ खोजता? मेरी प्रेम कहानी यहीं समाप्त हो गयी थी।

कॉफी पीते हुए उसने पूछा, “विवेक, तुम्हारा परिवार कैसा है?” मैं बोला, “तुम्हारा कोई पता नहीं चला। पच्चीस की उम्र पार होते ही मैंने माँ ने पसंद की लड़की से शादी कर ली। दो बच्चे हैं।” “तुम्हारा क्या?” वह बोली, “छह महीने बाद भाई कनाडा चला गया, उसी हफ्ते माँ-बाप का एक्सीडेंट हुआ। घर आते समय एक ट्रक ने उनके स्कूटर को टक्कर मारी। पिताजी  हमेशा के लिए बिस्तर पर पड़ गए। माँ भी एक साल तक चल फिर ना सकी। मेरा पूरा समय उनकी सेवा में बीतता था। पिताजी ने दुकान भी बेच दी, पैसे फिक्स डिपॉज़िट में लगाए। भाई थोड़े पैसे घर भेजता था, उसी से गुज़ारा चलता रहा। एक साल बाद माँ वॉकर के सहारे चलने लगी। एक दिन तुम्हारे घर गई, लेकिन तुम शिफ्ट हो चुके थे। ऑफिस की सहेली भी नौकरी छोड़ चुकी थी। तुम्हारा कोई सुराग नहीं था। भाई ने कनाडा में शादी कर ली और पैसे भेजना बंद कर दिया। बचत भी धीरे धीरे खत्म होने लगी थी। मैंने घर पर ट्यूशन शुरू की और सरकारी नौकरी की तैयारी की। 1986 के अंत में नौकरी मिल गई। फिर तुम्हारी खबर मिली—तुम शादीशुदा हो। "मैं टूट गई। शायद मेरे भाग्य में माँ-बाप की सेवा ही थी। इसलिए नियति ने हमें अलग कर दिया।

मैंने पूछा, “अब कैसे हैं वे?” वह बोली, “पिताजी चार-पाँच साल बाद चल बसे। अंतिम संस्कार मैंने ही किया। माँ ने कई बार शादी की बात की, लेकिन उन्हें छोड़कर कैसे जाती? पिछले साल वह भी चली गईं।”  कुछ देर चुप रहकर मैंने पूछा, “क्या तुम अपना पता और फोन नंबर दे सकती हो? कभी ज़रूरत पड़ी तो…”

उसने मेरा दाहिना हाथ अपने हाथ में लिया। उसके स्पर्श में एक जलन थी। वह बोली, “विवेक, मैंने जीवन में सिर्फ एक पुरुष को छुआ है—तुम्हें। जब रातों में मैं बेचैन होती हूँ, मन व्याकुल हो उठता है—तब तुम्हारा स्पर्श याद आता है और मुझे सुकून से भर देता है। उस एक प्रेमभरे स्पर्श से ही मुझे जीने की ताक़त मिलती है।  मेरा पता मत मांगो। फोन नंबर भी नहीं। अगर कभी मैं दिखूं, तो दूसरी राह पकड़ लेना। मेरे पास मत आना। अगर मेरी भावनाओं का बाँध टूट गया, तो हम दोनों जलकर राख हो जाएंगे। तुम्हारा परिवार भी बिखर जाएगा।”

उसकी साँसें तेज़ थीं, आवाज़ काँप रही थी। वह उठी, पर्स उठाया और तेज़ कदमों से विपरीत दिशा में चली गई। उसने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा।  मैं अवाक बैठा रह गया। आँखों में आँसू थे। उसके स्पर्श की ऊष्मा महसूस कर रहा था  "वह अंदर ही अंदर सुलग रही थी, फिर भी खुद को समेटे हुए चली गई—मेरे स्पर्श को अपनी खामोशी में सहेजकर।"  लसैंकड़ों अनसुलझे सवाल छोड़कर —क्यों नहीं खोजा मैंने उसे? शादी की इतनी जल्दी क्यों की? क्या मैं इंतज़ार नहीं कर सकता था? लेकिन अतीत कभी जवाब नहीं देता। हम सब नियति के गुलाम हैं।

उसे मेरी जानकारी थी, फिर भी वह कभी मिलने नहीं आई। उसने मेरी खुशियों पर अपनी छाया नहीं पड़ने दी। वह गज़ेटेड ऑफिसर बन चुकी थी। उसका पता और नंबर मिलाना मुश्किल नहीं था। लेकिन उसके प्रेम का सम्मान कर मैंने भी उससे मिलने का प्रयत्न नहीं किया। अब वह मेरे स्पर्श को दिल में सँजोकर अपना जीवन जी रही है। उसने मुझसे सच्चा प्रेम किया था।

और मैं…? मैं क्या सचमुच उससे प्रेम करता था, यह आज भी नहीं जानता। कुछ सवालों के जवाब कभी नहीं मिलते। वे उम्र भर हमें सताते रहते हैं।

गुरुवार, 24 जुलाई 2025

मतदान का अधिकार, हमारा हक


बिहार में चुनाव आयोग ने मतदाता सूचियों की जांच पड़ताल की। फलस्वरूप लाखों नाम मतदाता सूची से कट गए। लाखों लोगों का मताधिकार छिन लिया गया। उसी पर चार लाइन:

मरे हुओं की आत्माएँ 
भटकती है जहाँ।  
उन्हे भी हक है 
मतदान करने का वहाँ। 

घुसपैठीयों का पसीना 
बहता है जहाँ।
उन्हे भी हक है
मतदान करने का वहाँ। 

डुप्लीकेट मतदाता भी 
बढ़ाते हैं मतदान जहाँ। 
उन्हे भी हक है
मतदान करने का वहाँ।

मत बदलो मतदाता सूची
चुनाव आयोग वालों। 
लोकतंत्र की रक्षा के लिए 
नकली मतदान जरूरी है।



सोमवार, 21 जुलाई 2025

ऑपरेशन सिंदूर : ट्रम्प चाचा कोमा में

 

ऑपरेशन सिंदूर के बाद ट्रंप चाचा  कोमा में चले गए हैं। वो भ्रमित व्यक्ति की तरह बड़बड़ाने लगे हैं। भारत के खिलाफ अनाप-शनाब बड़बड़ाने लगे हैं।  उन्होंने हाल ही में कहा कि भारत-पाक युद्ध में कई जेट विमान गिर गए, लेकिन किसके थे, ये नहीं बता सके। अमेरिका के सैकड़ों उपग्रह और CIA भी उन्हें सही जानकारी नहीं दे सके। सच्ची जानकारी मिलने पर उन्हें एहसास हुआ होगा कि भविष्य में भारत को ब्लैकमेल करना संभव नहीं है। इसका मानसिक झटका उन्हें जरूर लगा होगा।

मेरे एक मित्र कट्टर मोदी विरोधी हैं। कल उन्होंने मुझे फोन करके कहा, "पटाईत, ट्रम्प  चाचा  फिर कह रहे हैं, भारत के जेट गिर गए।" ऐसा कहते हुए वो खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। मैंने जवाब दिया, "भारत के युद्धक विमान गिर गए और तुम खुश हो रहे हो?" मान लो  चाचा  ने अगर सच कहा है, पाकिस्तान ने भारतीय युद्धक विमानों को मार गिराया।  हमारे  पायलट पैराशूट खोलकर पाकिस्तान की जमीन पर उतरे, फिर वहां से ओला-उबर पकड़कर भारत लौट आए। वो बोला, "पटाईत, कुछ भी मत बोलो!" मैंने कहा, "गधे, फिर क्या कहूं? अगर विमान सचमुच गिरते, तो अभिनंदन की तरह कोई पायलट पकड़ा गया होता या उसका शव तो पाक मीडिया दिखाता। अगर भारतीय युद्धक विमान भारत में गिरे होते, तो मीडिया वहां पहुंच जाता और स्थानीय लोग वीडियो डालते। भारत में हर शहीद सैनिक को सलामी दी जाती है, यह तो तुम्हें पता ही है।  थोड़ा तो अपने दिमाग का इस्तेमाल किया करो। उसके बाद मेरे मित्र के सुर बदल गए। उसने पूछा, "तो चाचा  झूठ क्यों बोले?" मैंने जवाब दिया, " चाचा कोमा में चले गए हैं।" उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया है। 

किराना हिल्स में शायद चाचा के परमाणु हथियारों का भंडार हो। ऐसा कहा गया है की भारत ने वहां मिसाइल हमला नहीं किया।  लेकिन उस इलाके में हुए धमाकों के सैटेलाइट फोटो मीडिया में हैं। बाद में उस क्षेत्र में कई भूकंप भी आए। शायद परमाणु हथियार जमीन के अंदर ही फट गए हो। नूरखान बेस में ज़मीन के अंदर हथियार भंडार नष्ट हुआ। भारत ने दुनिया को दिखा दिया कि पाकिस्तान के हथियार सुरक्षित नहीं हैं। अगर वहां ट्रम्प चाचा के हथियार थे तो उनका कोमा में जाना तय ही था।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि उस  सुबह वे भारत पर हवाई हमला करने वाले थे, लेकिन उससे पहले ही भारत ने ब्रह्मोस मिसाइल से हमारे एयरबेस पर हमला कर दिया। हमें जवाब देने के लिए 30 सेकंड भी नहीं मिले। भरात के हमले में कई हवाई अड्डों की हवाई पट्टी और वहाँ  खड़े विमान नष्ट हो गए। हवाई अड्डों पर पाकिस्तान के विमान हमला करने की तैयारी कर रहे थे, भारतीय हमले के समय वे असुरक्षित थे। बचाव का कोई उपाय ही नहीं था। कम से कम 30-40 विमानों को नुकसान हुआ होगा। सही आंकड़ा शायद कुछ सालों बाद पाकिस्तान बताएगा। भारत की सटीक हमला करने की क्षमता देखकर चाचाजी को झटका लगना स्वाभाविक था।

हाल में हुए इज़राइल-ईरान युद्ध में अमेरिका की आधुनिक सुरक्षा प्रणाली हज़ारों किलोमीटर दूर से आ रहे मिसाइलों और ड्रोन को नहीं रोक सकी, जबकि भारत ने 25-50 किलोमीटर दूर से आ रहे मिसाइलों और ड्रोन को रोक दिया। भारत की सटीक सुरक्षा प्रणाली देख चाचाजी को ज़बरदस्त झटका लगा होगा।

ट्रम्प चाचा की तरह भारत में भी कुछ लोगों को गहरा धक्का लगा और उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया। भारत ने 9 आतंकी ठिकाने तबाह किए, वहां इतने आतंकी मारे गए कि एक आतंकी नेता ने कहा, "हम लाशें गिनते-गिनते थक गए। हमारा दर्द कोई नहीं समझ सकता।" पाकिस्तान के 11 एयरबेस नष्ट होने से इतना तो तय है, पाकिस्तान एक साल तक कुछ गड़बड़ नहीं कर सकता। भयंकर नुकसान होने के बाद भी पाकिस्तान ने जवाबी हमला न करके युद्धविराम स्वीकार किया। यानी बिना शर्त आत्मसमर्पण। फिर भी हमारे कुछ नेता कह रहे हैं कि भारत ने आत्मसमर्पण किया। शायद पाकिस्तान की हार का दुख उन्हें ज़्यादा हुआ होगा और वे भी ट्रम्प चाचा की तरह बड़बड़ाने लगें हैं। ईरान ने भारत को धन्यवाद दिया। उसका मुख्य कारण ईरान पर हमला करने के लिए कम से कम एक साल अमेरिका पाकिस्तान के हवाई अड्डों का इस्तेमाल नहीं कर पाएगा। 

अब ट्रम्प चाचा को भारत के साथ सभी व्यापारिक समझौते समानता के आधार पर करने की मानसिक तैयारी करनी चाहिए। उन्हें कोमा से जल्दी बाहर आना होगा। अब प्रधानमंत्री मोदी के भारत को कोई हल्के में नहीं ले सकता।


बुधवार, 16 जुलाई 2025

सनातन पर्व: काँवड़ यात्रा का आर्थिक महत्व

भारत में सनातन के सभी पर्व, तीर्थ यात्राएं इत्यादि का धार्मिक महत्व के साथ आर्थिक महत्व भी होता। सभी पर्व और यात्राएं समाजवादी अर्थव्यवस्था की प्रतीक है। इन पर्वों और यात्राओं के माध्यम से धन समाज के सभी तबकों तक पहुंचता है। आर्थिक चक्र को गति देता हैं। जिससे समाज का सर्वांगीण विकास होता है। इस साल हरिद्वार में कम से कम छह से सात करोड़ काँवड़ उठाने शिव के भक्त आएंगे। यह संख्या हम कम करके यदि पाँच करोड़ मान लेते हैं। इन काँवड़ यात्रियों में आधे ऐसे होने जो हर साल काँवड़ उठाते हैं और आधे वे होते हैं मनौती, संकल्प इत्यादि पूरा करने के लिए जो प्रथम बार काँवड़ उठाते हैं। 

काँवड़ उठाने वाले यात्री को नए जूते चप्पल खरीदने पड़ते हैं। शिव की तस्वीर लगी बनियान, अंगोछा,  टॉवल और कपड़े रखने के लिए एक बैग भी।  हरिद्वार पहुँचने के लिए ट्रेन, बस, टॅक्सी, ट्रक, रेलवे  इत्यादि का उपयोग करते होंगे। इसके लिए किराया देना पड़ता हैं।  कम से कम ढाई करोड़ लोगों 15 दिन के काल में एक दिन हरिद्वार रुकते होंगे। जिनमें से कम से कम एखाद करोड़ होटल धर्मशालाओं में भी रुकते होंगे। उन्हे भी रोजगार मिलता है। काँवड़ के लिए बांस का इस्तेमाल होता हैं। कई करोड़ बांस की जरूरत पड़ती है। बांस उगाने वालों से लेकर बेचने वालों को रोजगार मिलता है। कांवड़िए गंगाजल प्लास्टिक, पीतल, स्टील इत्यादि का प्रयोग करते हैं। उनको बनाने और बेचने वालों को रोजगार मिलता है । काँवड़ तैयार करने में भी कई लाख लोगों को रोजगार मिलता है। पाँच करोड़ लोग चार दिन भी यात्रा करेंगे तो मार्ग में उनके रुकने के लिए व्यवस्थाएं करनी पड़ती है। हजारो जगह  शिविर लगते हैं। टेंट वालों को रोजगार, डीजे वालों को रोजगार, जनेरेटर चलाने वालों को रोजगार,  बिजली वालों को रोजगार, हजारों  हलवाइयों को रोजगार, सभी जगह भगवान शिव और अन्य तस्वीरें लगी होती हैं। पूजा पाठ होता हैं। पूजा करनेवालों  को रोजगार, फूलों की खेती करने वालों और बेचने वालों को रोजगार, जागरण करने वालों को रोजगार, स्वांग भरने वालों को रोजगार, जूते चप्पल ठीक करने वाले मोचियों को भी रोजगार मिलता है। बीस से पच्चीस करोड़ पत्तल, दोने, चाय के कप का इस्तेमाल होता हैं। इन सभी को बनाने वालों और बेचने वालों को रोजगार मिलता हैं।  काँवड़ यात्रा के मार्ग में पड़ने वाले चाय की दुकान, ढाबे इत्यादि सभी को रोजगार मिलता हैं। फल, सब्जी, दूध, दही, पनीर सहित सभी खाद्य पदार्थों की बिक्री बढ़ जाती है। इससे भी रोजगार निर्मित होता है।  बड़े-बड़े सेठ धार्मिक आस्था और पुण्य कमाने के लिए शिविरों के निर्माण और भोजन इत्यादि पर हजारों करोड़ इन दिनों खर्च कर देते हैं। एक अनुमान कम से कम 20 से 25 हजार करोड़ के आर्थिक व्यवहार काँवड़ यात्रा के समय देश में होता है। 

काँवड़ यात्रा होती है, इसलिए हजारो मोची, हजारो पूजा पाठ कथा वाचकों को, स्वांग भरने वालों को, टेंट वालों को, डीजे वालों को, बिजली का काम  करने वालों को  ट्रक, टेम्पो, बस वालों को, रेलवे को, पत्तल बनाने वालों को,  बेचने वालों को, करोड़ों काँवड़ बनाने में कई लाख को रोजगार, किसानों को, साफ सफाई करने वालों इत्यादि को रोजगार मिलता है। अर्थव्यवस्था का नियम हैं जितने ज्यादा लोगों के पास पैसा पहुंचता है, उतना ही  पैसों का चक्र ज्यादा तेज घूमता हैं। जिनके पास पैसा आयेगा वह भी खर्च करेंगे, अप्रत्यक्ष रूप से लाख करोड़ का आर्थिक व्यवहार अकेली काँवड़ यात्रा की वजह से देश में होता है और कई लाख लोगों को रोजगार मिलता है। यह  रोजगार विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले हिन्दू ,मुस्लिम ,सिख, ईसाई सभी को मिलता हैं। काँवड़ यात्रा न हो तो यह आर्थिक गतिविधि नहीं होगी। लाखों लोगों का रोजगार डूब जाएगा। 

आखिर काँवड़ यात्रा करने वाले को क्या लाभ मिलता है। प्रतिदिन 50-60 किमी चलने से शारीरिक और मानसिक दृढ़ता आती है। कठिनाइयों से लड़ने की क्षमता विकसित होती है।  विभिन्न जाति, वर्ग, भिन्न-भिन्न भाषा-भाषी प्रान्तों  के लोगों से मिलना होता है। धार्मिक और सामाजिक समरसता फैलती है। कई गलतफहमियां दूर होती है। लोगों से संपर्क बढ़ता है। जिसका आर्थिक लाभ भी धंधे और रोजगार में होता है। 

कई महाविद्वान किताबी कीड़े जिन्हे अर्थव्यवस्था की समझ नहीं है, जो सनातन धर्म को समझते नहीं है, जिनके मन में सनातन धर्म के प्रति घृणा की भावना भरी है। वे ही काँवड़ यात्रा का विरोध करते हैं। आशा है, यह लेख पढ़ने के बाद आप भी काँवड़ यात्रा का समर्थन करेंगे और  शारीरिक रूप से स्वस्थ हो तो काँवड़  उठाने इस साल नहीं तो अगले साल जरूर जाएंगे। 


रविवार, 10 नवंबर 2024

समोसे और वीआईपी समोसा

 

बिहार में एक मशहूर कहावत है "जब तक रहेगा समोसे में आलू, बिहार पे राज करेगा हमारा, लालू"। देश में सबसे ज्यादा खाया जाने वाले समोसे में भी आलू ही होता है। मेरा बचपन पुरानी दिल्ली में बिता। पुरानी दिल्ली में कई बाज़ारों के नाम, उन बाजार में मिलने वाले वस्तुओंके नाम पर है। जैसे तेल वाली गली (गली तेलियाँन) में खाने के तेल बेचने वालों की दुकाने है। परांठा वाली गली में पराठों की दुकाने। वैसे ही एक गली का नाम समोसे वाली गली है। इस गली में तरह तरह के समोसे मिलते है। ज़्यादातर दुकानों में मूंग, चने के दाल के बने समोसे मिलते है। ये समोसे किलो के भाव मिलते  है। शादी ब्याह में भी स्टार्टर की तरह परोसे जाते हैं। इसके अलावा मक्खन से बनने वाला समोसा भी प्रसिद्ध है। इस समोसे का कवर मक्खन का होता है और अंदर मेवे भरे होते हैं। इसे बर्फ या  फ्रिज में  ठंडा  रखना  होता है। इसके  राजसी ठाठ बाट होते हुए भी यह वीआईपी समोसा नहीं कहलाता। 

समोसा आम आदमी टाइम पास है। उत्तम नगर मेट्रो स्टेशन के पास एक आदमी पटरी पर आज भी दस रुपए के पाँच समोसे बेचता है। गरीब  मजदूर लोग इन सस्ते समोसों को खाकर समोसे खाने का आनंद उठा लेते हैं। ज़्यादातर दुकानदार उबले आलू में नमक, मिर्च, अमचूर इत्यादि मिलाकर समोसा बेचते हैं। जीवन पार्क में एक दुकानदार दिन में ऐसे दो से ढाई हजार समोसे 15 रु का एक बेचकर दिन में मोटी कमाई कर लेता है। ऐसे सैंकड़ों दुकाने दिल्ली में होंगी। कुछ दुकानदार आलू को अच्छी  तरह भून कर उसमें कई तरह के मसाले, काजू इत्यादि डाल कर 20 से 25  रुपए का एक समोसा बेचते हैं। समोसे के साथ हरी चटनी और इमली और गुड  की मीठी चटनी परोसी जाती है। कुछ दुकानदार खजूर की चटनी भी समोसे के साथ देते हैं।  पंजाबी इलाकों में दुकानदार समोसों में आलू के साथ मटर और पनीर भी डालते हैं। ये दुकानदार समोसों को छोले के साथ परोसते हैं। नागपुर शहर में कई दुकानदार समोसे को दही, तीखी और खट्टी मीठी चटनी के साथ ग्राहकों को परोसते हैं। दिल्ली के सैंकड़ों सरकारी दफ्तरों में सस्ता होने की वजह से चाय के साथ समोसा बाबुओंका प्रिय नाश्ता है।समोसे के साथ चाय पीते हुए होने वाली चर्चाओं में ही देश के भविष्य का निर्णय होता है,  ऐसा अधिकांश बाबुओं  को लगता है। 

फिर भी इनमें से कोई भी वीआईपी समोसा नहीं होता है। वीआईपी समोसा फाइव स्टार होटल से आता है। इसकी किंमत कम से कम डेढ़सो सौ रुपए के आसपास होती है। वीआईपी समोसे को खाने का हक केवल वीआईपी लोगों को  होता है। आम आदमी गलती से इन्हे चखले तो उसे इसके परिणाम भुगतने पड़ते हैं। पिछले दिनों शिमला में यही हुआ। वीआईपी लोगों के लिए मँगवाए 21 समोसे, गलती से स्टाफ ने खा लिए। पर वे वीआईपी समोसे हजम न कर सके। सीआईडी ने जांच की और पाया "यह सरकार विरोधी कृत्य है"। इसी से पता चलता है वीआईपी समोसा कितना पावरफुल होता है। अब यह मामला मीडिया में जोरदार उछल रहा है, जैसे समोसे कढ़ाई में उछलते हैं। जाहीर है कुछ कर्मचारियों को इसकी कीमत चुकनी पड़ेगी।







सोमवार, 23 सितंबर 2024

स्वार्थबुद्धि मेंढक और सांप: आज के संदर्भ में

एक बहुत बड़े कुंए में हजारों मेंढक रहते थे. स्वार्थबुद्धि वहां का राजा था. एक चुनाव में वह पराजित हो गया. उसे गद्दी छोड़नी पड़ी. अपने विरोधियों को सबक सिखाने के लिए, मदद मांगने के इरादे से, वह कुंए के बाहर निकला. थोड़ी दूर चलने के बाद उसे एक सांप नजर आया. स्वार्थबुद्धि ने सोचा सांप मेंढकों को खाता है. क्यों न इसकी मदद से विरोधियों का हमेशा के लिए सफाया कर दूं. उसके बाद वह हमेशा के लिए कुंए के राजा बन जायेगा. स्वार्थबुद्धि सांप के पास आया और बोला सांप क्या तुम मेरे दोस्त बनोगे, इससे हम दोनों का फायदा होगा. सांप भी मेंढक को अपने पास आते देख आश्चर्य चकित हो गया था. क्योंकि मेंढक तो सांप को देखते ही भाग खड़े होते है. सांप ने मीठी आवाज में पूछा, तुमसे दोस्ती करने पर मुझे क्या फायदा होगा. आज तुम्हे खा के मेरी भूख जरूर मिट जायेगी. स्वार्थबुद्धि बिना डरे बोला, मुझे खाकर तुम्हारी एक समय की भूख मिट जायेगी, पर यदि मैं तुम्हारा कई महीने के भोजन का इंतजाम कर दूं, तो तुम मेरे दोस्त बनोगे. स्वार्थबुद्धि ने कहा, यहीं नजदीक में एक बहुत बड़ा कुंआ है. उसमे हजारों मेंढक रहते है. मैं वहां का राजा था. लेकिन पिछले चुनाव में मैं हार गया. मैं फिर से राजा बनना चाहता हूं. मुझे कुंए तक जाने का गुप्त रास्ता पता है. मैं तुम्हे कुंए तक ले जाऊंगा, तुम मेरे सारे विरोधियों को उनके परिवार समेत खा लेना. उसके बाद मैं राजा बन जाऊंगा. तुम कुंआ छोड़कर चले जाना. स्वार्थबुद्धि की मूर्खतापूर्ण बातें सुन सांप के मुंह से लार टपकने लगी. वह स्वार्थबुद्धि से बोला तुम शीघ्रता से मुझे कुंए के पास ले चलो, मैं तुम्हारे सारे विरोधियों को खाकर तुम्हे राजा बनाकर, कुंए को छोड़ दूंगा. 

इस तरह सांप कुंए में पहुंच गया. पहले उसने स्वार्थबुद्धि के विरोधियों को खा लिया. स्वार्थबुद्धि राजा बन गया. उसने सांप से कहा अब तुम कुंआ छोड़ के चले जाओ. सांप ने कहा मूर्ख,  मेंढक मेरा भोजन है. सब मेंढकों को खाने के बाद ही मैं यह कुंआ छोडूंगा. तुमसे बड़ा मूर्ख मैने आज तक नही देखा जो अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए अपने शत्रुओं की मदद लेता है. ऐसा कहते हुए सांप ने स्वार्थबुद्धि को निगल लिया. अब कुंए पर सांप का राज हो गया. स्वार्थबुद्धि  ने मेंढकों के शत्रु की मदद ली और कुंए के सभी मेंढकों के विनाश का कारण बना.

हमारा इतिहास बताता है, अपने छोटे- छोटे स्वार्थ सिद्ध करने के लिए जिन्होंने शत्रु की मदद ली. देश के शत्रुओं ने उन्हें भी नष्ट कर दिया.  इसके बावजूद, आज भी हमारे देश के कुछ महत्त्वाकांक्षी राजनेता शत्रु की मदद से देश की गद्दी पर बैठना चाहते हैं. तो कुछ शत्रु की मदद से स्वतंत्र राज्य बनाना चाहते है. उनका हश्र स्वार्थबुद्धि तरह ही होगा. लेकिन अपना स्वार्थ सिद्ध करने के चक्कर में  ऐसे मूर्ख नेता, देश और प्रदेश के लोगो का जीवन भी संकट में डाल देंगे.