[रामसेतु के बारे में अनेक भ्रम विद्यमान है. इन्ही भ्रमों को दूर करने के लिए प्रस्तुत लेख में वाल्मीकि रामायणानुसार श्रीराम ने समुद्र पर सेतु का निर्माण कैसे किया था, का वर्णन किया है.]
वाल्मीकि ऋषी थे. उन्होंने श्रीराम की जीवनकथा का वर्णन तटस्थ एवं निरपेक्ष भाव से किया. उन्हें असत्य लिखने की कोई आवश्यकता नहीं थी. राम के जीवन का जो सत्य उन्हें दिखाई दिया उसी का वर्णन उन्होंने किया.
हम सब को मालूम है नदी नालों को पर करने के लिए सेतु या पुल का निर्माण किया जाता है. सपाट जमीन पर पुल नहीं बनाया जाता. रामसेतु के बारे में अनेक भ्रम फैलाएं गये है. भारत देश के प्राचीन इतिहास को मिथक मानने वाले, आँखों पर विशिष्ट चष्मा लगाने वाले, विद्वानों के अनुसार धनुषकोडी से तलाईमन्नार (श्रीलंका) के मध्य १८ मैल चौड़े समुद्र में लाखों साल पूर्व प्रकृती निर्मित एक भोगोलिक संरचना आहे. इस प्राकृतिक संरचना को अडम
ब्रिज अथवा रामसेतु भी कहा जाता है. कुछ अतिविद्वानों के अनुसार
श्रीराम ने कोई पुल नहीं बनाया था. दुसरी ओर धुर सनातनी
लोक लोक मानते है, यह जो प्राकृतिक संरचना है, यही वह सेतु है जिसे श्रीराम ने समुद्र पर बनाया था.
(रामसेतु का चित्र)
दोनों ही मान्यताओं में थोड़ी सचाई है. परन्तु वे पूर्ण सत्य नहीं है. मुझे तो लगता है इन विद्वानों ने शायद वाल्मीकि रामायण पढने का कष्ट भी नहीं किया होगा. रामसेतु (प्राकृतिक संरचना) का चित्र देखने पर किसी भी सामान्य बुद्धि के आदमी को यह समझ में आ जायेगा की आज भी इस प्राकृतिक संरचना का कम से कम ३०% हिस्सा समुद्र के ऊपर है. ५०-६० हजार वर्ष पूर्व जब समुद्र का स्तर काफी नीचे था, उस समय तो जंगली जानवर हाथी, तुंदुए इत्यादी इसी प्राकृतिक संरचना पर चलकर श्रीलंका पहुंचे होंगे. कुछ भारतीय इतिहासकारों के अनुसार, श्रीराम का जन्म आजसे 7500 वर्ष पूर्व हुआ था. अत: रामायण का घटनाक्रम भी ७५०० हजार वर्ष पूर्व का है. उस समय समुद्र का स्तर आज के मुकाबले कम से कम २०-२५ फूट नीचे था. दुसरे शब्दों में कदाचित उस समय इस प्राकृतिक संरचना का ७०-७५% भाग समुद्र के ऊपर होगा. फिर भी कुछ कुछ जगहों पर समुद्र की गहराई १०-१५ मीटर होने की संभावना नकारी नहीं जा सकती. इस परिस्थिति में श्रीराम की वानर सेना के लिए अस्त्र -शस्त्र एवं भोजन सामग्री लेकर समुद्र पार करना असम्भव था.
दोनों ही मान्यताओं में थोड़ी सचाई है. परन्तु वे पूर्ण सत्य नहीं है. मुझे तो लगता है इन विद्वानों ने शायद वाल्मीकि रामायण पढने का कष्ट भी नहीं किया होगा. रामसेतु (प्राकृतिक संरचना) का चित्र देखने पर किसी भी सामान्य बुद्धि के आदमी को यह समझ में आ जायेगा की आज भी इस प्राकृतिक संरचना का कम से कम ३०% हिस्सा समुद्र के ऊपर है. ५०-६० हजार वर्ष पूर्व जब समुद्र का स्तर काफी नीचे था, उस समय तो जंगली जानवर हाथी, तुंदुए इत्यादी इसी प्राकृतिक संरचना पर चलकर श्रीलंका पहुंचे होंगे. कुछ भारतीय इतिहासकारों के अनुसार, श्रीराम का जन्म आजसे 7500 वर्ष पूर्व हुआ था. अत: रामायण का घटनाक्रम भी ७५०० हजार वर्ष पूर्व का है. उस समय समुद्र का स्तर आज के मुकाबले कम से कम २०-२५ फूट नीचे था. दुसरे शब्दों में कदाचित उस समय इस प्राकृतिक संरचना का ७०-७५% भाग समुद्र के ऊपर होगा. फिर भी कुछ कुछ जगहों पर समुद्र की गहराई १०-१५ मीटर होने की संभावना नकारी नहीं जा सकती. इस परिस्थिति में श्रीराम की वानर सेना के लिए अस्त्र -शस्त्र एवं भोजन सामग्री लेकर समुद्र पार करना असम्भव था.
अब कल्पना करो श्रीराम वानर सेना के साथ समुद्र तट पहुंचे हैं. कम से कम २०-२५ हजार की सेना तो निश्चित होगी. इतनी बड़ी सेना को समुद्र पार श्रीलंका जाना है. यदि नौका द्वारा समुद्र पार जाना हो तो बड़ी संख्यामे नौकाएँ बनाने की आवश्यकता थी. इस कार्य में बहुत समय लगता. इसके आलावा समुद्र भी कम गहरा था, जगह-जगह जमीन समुद्र के बाहर दिखाई दे रही थी. कम गहराई एवं पथरीला समुद्र, ऐसे में नौका द्वारा समुद्र पार करना असम्भव था. निम्न चित्र से स्पष्ट है, आज भी भारत से श्रीलंका जाने का नौका मार्ग (ferry) रामसेतु (प्राकृतिक संरचना) से पर्याप्त दूरी पर है.
भारत में आज भी बरसात में नदी नालों पर बने पुल बह जाते है. ऐसे में ग्रामीण लोक पेड़ काटकर एवं पथरों की सहायता से एक कामचलाऊ पुल तैयार कर लेते है. सरकार दुबारा कब पुल बनाएगी यह बताना बड़ा मुश्किल होता है. श्रीरामचंद्र ने भी वृक्ष,
लता, घास, पत्थरों का इस्तमाल कर समुद्र पर एक कामचलाऊ पूल बनाने का निश्चय किया. वानर सेना में नील नाम का वानर इस तरह के पुल बनाने में निष्णांत था. श्रीराम ने उसे यह कार्य सौंपा.
वाल्मिकि रामायण में युद्धकाण्ड के २२वे सर्ग के ५४ से ७३ इन बीस श्लोकों में ऋषि वाल्मीकि ने श्रीराम ने समुद्र पर किस तरह पुल बनाया गया इसका विस्तार से वर्णन किया है. वाल्मीकि रामायण में राम नाम लिखे पत्थर पानी में तैरने का कोई भी जिक्र नहीं है. वाल्मिकि रामायण के अनुसार, सहस्त्रो वानर जंगल में गए. अर्जुन, बेल, अशोक, साल, बांबू, नारियल, आम इत्यादी अनेक जातियों के वृक्षों को जड़ समेत अथवा काटकर वानर समुद्र तट पर लेकर आये. बलिष्ठ वानर बड़ी-बड़ी शिलाओंको यंत्रों की सहायता से समुद्र तट पर लेकर आये. समुद्र किनारे पर भी बड़ा कोलाहल था, कुछ वानर रस्सी लेकर माप ले रहे थे, कोई निर्माण सामग्री को निर्धारित जगह ले जा रहा था. बड़ी-बड़ी शिलाओं को समुद्र में फेंकने की भीषण आवाज हो रही थी. घास-फूस लकड़ी के द्वारा भिन्न-भिन्न स्थानों पर वानर पूल बना रहे थे. (दिल्ली में मेट्रो का कार्य भी भिन्न भिन्न स्थानों पर एक साथ हो रहा है). इस तरह केवल पांच दिनों में नल के नेतृत्व में वानरों ने सेतु का निर्माण पूर्ण कर लिया. बीस-पच्चीस हजार वानर सेना के लिए यह कार्य असम्भव नहीं था. श्रीराम की सेना इस सेतु से होकर श्रीलंका के तट पर पहुंची इसलिए इसे रामसेतु कहा गया.
शायद यह कामचलाऊ पुल कुछ ही वर्षों में नष्ट हो गया होगा. आज ७५०० वर्षों बाद इसके अवशेष मिलना असंभव है. परन्तु श्रीराम की सेना ने समुद्र पार करने के लिए पुल निश्चित ही बनाया था. महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण पढने पर रामसेतु के बारे में फैला भ्रम निश्चित दूर हो जायेगा.
टिप्पणी: वाल्मिकि रामायण के युद्धकांड के २२वे सर्ग के कुछ श्लोक, जिसमे ऋषि वाल्मीकि ने रामसेतु के निर्माण प्रक्रिया का वर्णन किया है :
ते नगान् नागसंकाशाः शाखामृगगणर्षभाः ।
बभञ्जुः पादपांस्तत्र प्रचकर्षुश्च सागरम् ॥ ५५ ॥
ते सालैश्चाश्वकर्णैश्च धवैर्वंशैश्च वानराः ।
कुटजैरर्जुनैस्तालैः तिलकैस्तिमिशैरपि ॥ ५६ ॥
बिल्वैश्च सप्तपर्णैश्च कर्णिकारैश्च पुष्पितैः ।
चूतैश्चाशोकवृक्षैश्च सागरं समपूरयन् ॥ ५७ ॥
हस्तिमात्रान् महाकायाः पाषाणांश्च महाबलाः ।
पर्वतांश्च समुत्पाट्य यंत्रैः परिवहन्ति च ॥ ६० ॥
अर्थ संक्षेप में: विशाल वानर जंगलो में गए. अर्जुन, बेल, अशोक, साल, बांबू, नारियल, आम इत्यादी अनेक जातियों के वृक्ष जड़ समेत अथवा काटकर समुद्र तट पर लेकर आये. बलिष्ठ वानर बड़ी-बड़ी शिलओंको यंत्रो की सहायता से समुद्र तट पर लेकर आये.
समुद्रं श्रोक्षोयामासुः निपतंतः समंततः ।
सूत्राण्यन्ये प्रगृह्णन्ति व्यायतं शतयोजनम् ॥ ६२ ॥
दण्डानन्ये प्रगृह्णन्ति विचिन्वन्ति तथा परे ।
वानरैः शतशस्तत्र रामस्याज्ञापुरःसरैः ॥ ६४ ॥
मेघाभैः पर्वताभैश्च तृणैः काष्ठैर्बबंधिरे ।
पुष्पिताग्रैश्च तरुभिः सेतुं बध्नन्ति वानराः ॥ ६५ ॥
अर्थ संक्षेप में :कुछ वानर रस्सी लेकर माप ले रहे थे, कोई निर्माण सामग्री को निर्धारित जगह ले जा रहा था. बड़ी-बड़ी शिलाओं को समुद्र में फेंकने की भीषण आवाज हो रही थी. सब जगह कोलाहल व्याप्त था. घास-फूस लकड़ी के द्वारा भिन्न-भिन्न स्थानों पर वानर पूल बना रहे थे. ॥इति ॥
वाल्मिकि रामायण में युद्धकाण्ड के २२वे सर्ग के ५४ से ७३ इन बीस श्लोकों में ऋषि वाल्मीकि ने श्रीराम ने समुद्र पर किस तरह पुल बनाया गया इसका विस्तार से वर्णन किया है. वाल्मीकि रामायण में राम नाम लिखे पत्थर पानी में तैरने का कोई भी जिक्र नहीं है. वाल्मिकि रामायण के अनुसार, सहस्त्रो वानर जंगल में गए. अर्जुन, बेल, अशोक, साल, बांबू, नारियल, आम इत्यादी अनेक जातियों के वृक्षों को जड़ समेत अथवा काटकर वानर समुद्र तट पर लेकर आये. बलिष्ठ वानर बड़ी-बड़ी शिलाओंको यंत्रों की सहायता से समुद्र तट पर लेकर आये. समुद्र किनारे पर भी बड़ा कोलाहल था, कुछ वानर रस्सी लेकर माप ले रहे थे, कोई निर्माण सामग्री को निर्धारित जगह ले जा रहा था. बड़ी-बड़ी शिलाओं को समुद्र में फेंकने की भीषण आवाज हो रही थी. घास-फूस लकड़ी के द्वारा भिन्न-भिन्न स्थानों पर वानर पूल बना रहे थे. (दिल्ली में मेट्रो का कार्य भी भिन्न भिन्न स्थानों पर एक साथ हो रहा है). इस तरह केवल पांच दिनों में नल के नेतृत्व में वानरों ने सेतु का निर्माण पूर्ण कर लिया. बीस-पच्चीस हजार वानर सेना के लिए यह कार्य असम्भव नहीं था. श्रीराम की सेना इस सेतु से होकर श्रीलंका के तट पर पहुंची इसलिए इसे रामसेतु कहा गया.
शायद यह कामचलाऊ पुल कुछ ही वर्षों में नष्ट हो गया होगा. आज ७५०० वर्षों बाद इसके अवशेष मिलना असंभव है. परन्तु श्रीराम की सेना ने समुद्र पार करने के लिए पुल निश्चित ही बनाया था. महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण पढने पर रामसेतु के बारे में फैला भ्रम निश्चित दूर हो जायेगा.
टिप्पणी: वाल्मिकि रामायण के युद्धकांड के २२वे सर्ग के कुछ श्लोक, जिसमे ऋषि वाल्मीकि ने रामसेतु के निर्माण प्रक्रिया का वर्णन किया है :
ते नगान् नागसंकाशाः शाखामृगगणर्षभाः ।
बभञ्जुः पादपांस्तत्र प्रचकर्षुश्च सागरम् ॥ ५५ ॥
ते सालैश्चाश्वकर्णैश्च धवैर्वंशैश्च वानराः ।
कुटजैरर्जुनैस्तालैः तिलकैस्तिमिशैरपि ॥ ५६ ॥
बिल्वैश्च सप्तपर्णैश्च कर्णिकारैश्च पुष्पितैः ।
चूतैश्चाशोकवृक्षैश्च सागरं समपूरयन् ॥ ५७ ॥
हस्तिमात्रान् महाकायाः पाषाणांश्च महाबलाः ।
पर्वतांश्च समुत्पाट्य यंत्रैः परिवहन्ति च ॥ ६० ॥
अर्थ संक्षेप में: विशाल वानर जंगलो में गए. अर्जुन, बेल, अशोक, साल, बांबू, नारियल, आम इत्यादी अनेक जातियों के वृक्ष जड़ समेत अथवा काटकर समुद्र तट पर लेकर आये. बलिष्ठ वानर बड़ी-बड़ी शिलओंको यंत्रो की सहायता से समुद्र तट पर लेकर आये.
समुद्रं श्रोक्षोयामासुः निपतंतः समंततः ।
सूत्राण्यन्ये प्रगृह्णन्ति व्यायतं शतयोजनम् ॥ ६२ ॥
दण्डानन्ये प्रगृह्णन्ति विचिन्वन्ति तथा परे ।
वानरैः शतशस्तत्र रामस्याज्ञापुरःसरैः ॥ ६४ ॥
मेघाभैः पर्वताभैश्च तृणैः काष्ठैर्बबंधिरे ।
पुष्पिताग्रैश्च तरुभिः सेतुं बध्नन्ति वानराः ॥ ६५ ॥
अर्थ संक्षेप में :कुछ वानर रस्सी लेकर माप ले रहे थे, कोई निर्माण सामग्री को निर्धारित जगह ले जा रहा था. बड़ी-बड़ी शिलाओं को समुद्र में फेंकने की भीषण आवाज हो रही थी. सब जगह कोलाहल व्याप्त था. घास-फूस लकड़ी के द्वारा भिन्न-भिन्न स्थानों पर वानर पूल बना रहे थे. ॥इति ॥