मंगलवार, 21 मार्च 2023

अप त्यम्  परिपन्थिनम् मुषीवाणम् हुरःचितम् । 
दूरम् अधि  स्रुतेः अज॥
(ऋ.१/४२/३)

ऋषि परमेश्वर से चित्त में उठने वाली मूषक प्रवृति से रक्षा की प्रार्थना कर रहा है। मूषक प्रवृति का अर्थ बिना मेहनत किए दूसरों की वस्तुएँ हड़पने की कभी न समाप्त होने वाली इच्छा, जैसे चूहा हमेशा दूसरोंकी वस्तुएँ कुतरता रहता है। वह दूसरों के खेत से, घर से वस्तुएँ चुरा-चुरा कर अपने बिल में इकठ्ठा करता रहता है। उसकी भूक कभी शांत नहीं होती। मूषक प्रवृति का शिकार मनुष्य भी स्वार्थ में अंधा होकर दूसरों की संपत्ति, धन, दौलत, स्त्री हड़पने के लिए नाना षड्यंत्र रचता है। वह चोरी करता है, डकैती डालता है, रिश्वत लेता है, इत्यादि। समर्थ रामदास कहते हैं, ऐसा करने से पाप इकठ्ठा होता है और एक दिन उसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ते है। चूहा भी पिंजरे में पकड़ा जाता है अथवा जहर खाकर मरता है। वैसे ही मनुष्य को भी मूषक प्रवृति के बुरे नतीजे भुगतने पड़ते हैं। आज हम देखते है, समाज के कई शक्तिशाली व्यक्ति भी इसी मूषक प्रवृति के शिकार होकर जेल की सजा काट रहे है। 

आजकल पूरा समाज ही इस मूषक प्रवृति का शिकार हो रहा है। उसे बिजली, पानी, राशन, शिक्षा, इलाज, बैंक में पैसा, जो जो सरकार दे सके  बिना कष्ट किए मुफ्त में चाहिए। कई राजनेता भी वोट बैंक के लिए समाज में मूषक प्रवृति को बढ़ावा दे रहे है। जिसका परिणाम मुफ्त की आदत पड़ने पर अधिकांश लोग मेहनत करना छोड़ देंगे। खेती-बाड़ी उद्योग धंधे समाप्त होने लगेंगे। पाप इकठ्ठा होने से जनता भूक, अराजकता और हिंसा से पीड़ित होने लगेगी। अभी भी समय हाथ से नहीं गया है। समाज में फैली इस दुष्प्रवृति पर लगाम लगाना आवश्यक है। 

 

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