रविवार, 19 मार्च 2023

वार्तालाप: (3) जीभ और सर्वनाश

जीभ हमारे शरीर का महत्वपूर्ण अंग है। जीभ न हो तो हम भोजन का स्वाद नहीं लेते। जीभ न हो तो हम बोल भी नहीं सकते। लेकिन अगर हम नहीं जानते कि जीभ कि मदत से क्या कहना है और कैसे कहना है तो हमारी जीभ हमारे सर्वनाश का कारण भी बन सकती है।

महाभारत में राजसूय यज्ञ का प्रसंग आता है। महाराज युधिष्ठिर ने कौरवों को राजसूय यज्ञ में आने का यह निमंत्रण दिया था। इस न्योते का एक उद्देश्य कौरवों के साथ मित्रता को मजबूत करना भी था। लेकिन मय दानव द्वारा बनाए गए माया महल में दुर्योधन सहित सभी कौरव पानी से भरे एक कुंड में गिर जाते हैं। उन्हें इस तरह पानी में गिरते देख, द्रौपदी कौरवों का उपहास उड़ाते हुए अपनी सखियों से कहती है, “देखो-देखो, अंधे के पुत्र अंधे, कैसे सब जल में जा गिरे। हा! हा! हा!"। द्रोपदी के कटु वचनों ने दुर्योधन के दिल में गहरा घाव किया। बदले की भावना से वह जल उठा। उसी समय उसने पांडवों का सर्वनाश करने की प्रतिज्ञा की। दुर्योधन ने पांडवों के विनाश के लिए कई षड्यंत्र रचे। आखिरकार महाभारत के युद्ध में पूरे कुरु वंश का विनाश हो ही गया। यदि द्रौपदी ने मूर्खतापूर्ण कटु वचन न बोले होते, तो पांडव इंद्रप्रस्थ में चैन से राज करते और कौरव हस्तिनापुर में सत्ता का सुखपूर्वक आनंद उठाते। समर्थ रामदास स्वामी कहते हैं, मूर्ख व्यक्ति कटु वचन बोलता है और उसका परिणाम भुगतता है। अत: जीभ का उपयोग गलती से भी कटु वचन बोलने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।

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