हमारे देश में आज भी गाँव देहात के लोग भी चेहरे पर मुस्कान लाकर राम-राम, जय रामजी, राधे-राधे कहते हुए एक दूसरे का अभिवादन करते हैं। श्रीसार्थ दासबोध समर्थ रामदास स्वामी कहते है, छोटे-बड़े सभी को मिलने पर आदर के साथ नमस्कार करना चाहिए। समर्थ कहते हैं, नमस्कार करने में जेब से कोई पैसा खर्च नहीं होता, अत: नमस्कार करने में कंजूसी नहीं करनी चाहिए। नौकरी, व्यापार-धंधे सहित सभी सांसरिक कामकाज में नमस्कार करने से फ़ायदा होता है। संत महात्माओंकों नमस्कार करने से पारमार्थिक लाभ भी प्राप्त होते हैं। नमस्कार करने से गली-मोहल्ले के सभी लोग, दुकानदार, रेहड़ी वाले, सब्जी वाले, नाम से शायद न जाने पर चेहरे हमें से जरूर पहचानने लगते हैं। जिसका हमें निश्चित तौर पर फ़ायदा होता है।
इसका एक उदाहरण। एक पुरानी घटना है, उस समय हमारी कॉलोनी में पक्की सड़कें नहीं थीं। रिक्शा लेने या ऑफिस जाने के लिए जनकपुरी सी-1 के बस स्टॉप तक पैदल ही जाना पड़ता था। कुछ रेहड़ी-पटरी वाले वहां फल और सब्जियां इत्यादि बेचते थे। मैं रोज उन्हे आते-जाते नमस्ते करता था। कभी-कभी उनसे फल और सब्जियां भी खरीद लेता था। एक दिन मैं अपनी डेढ़ साल की बेटी को साथ लिए जनकपुरी सी-1 बस स्टैंड के पास रिक्शा से उतरा। तेज रफ्तार से आते एक कार ने रिक्शा को टक्कर मार दी। रिक्शा का पिछला पहिया टेढ़ा हो गया और रिक्शा भी क्षतिग्रस्त हो गया। कार चालक कार से बाहर निकला और रिक्शा चालक पर भड़क गया, मेरी कार की हेड लाइट टूट गई है, नुकसान की भरपाई कौन करेगा कहते हुए उसने रिक्शा चालक पर हाथ उठाया। मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और कहा यह तुम्हारी गलती है, तुम्हें रिक्शेवाले को नुकसान भरपाई देनी चाहिए। पहले तुझे ही नुकसान भरपाई देता हूँ, कहते हुए उसने मुझ पर हाथ उठाया। खबरदार साहब पर हाथ उठाया तो.... बोलते हुए सड़क पर बैठे फल विक्रेता तुरंत मेरी सहायता के लिए आए। पल भर में स्थिति बदल गई। कार चालक ने परिस्थिति भाँपते हुए चुपचाप रिक्शेवाले को मरम्मत का खर्चा दिया। आज भी सोचता हूँ यदि मैंने उन्हें प्रणाम न किया होता तो क्या वे मेरी सहायता के लिए आते? शायद रिक्शेवाले के साथ-साथ मेरी भी पिटाई हो जाती। सारांश बिना हिचक छोटे बड़े सभी को आदर के साथ नमस्कार करना चाहिए। संकट के समय न जाने कौन हमारी मदत को आजाए।
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