मानव मन एक अथाङ्ग सागर है। हर क्षण करोड़ों विचार तरंगे हमारे मन मे क्षण भर के लिए उठती है और नष्ट हो जाती है। परंतु कुछ विचार तरंगे सदा के लिए हमारी स्मृति मे दर्ज हो जाती है। हमारे धर्मग्रंथ कहते हैं, विधाता के मन में विचार आया और सृष्टि का निर्माण हुआ। हमारे प्राचीन ऋषियोंका कहना है की "इस ब्रह्मांड में जो कुछ भी है वह हमारे शरीर में भी है।" अरबों खरबों सूष्म कोषों से हमारे शरीर की निर्मिति हुई है। प्रत्येक सूष्म कोष का स्वतंत्र अस्तित्व होता है ऐसा विज्ञान मानता है। प्रत्येक सूष्म कोष में दर्ज विचार एक ब्रह्मांड की निर्मिति करने में सक्षम है। मन में उठने वाले विचार ही कोषों में स्मृति का निर्माण करते हैं। ब्रह्मांड के निर्माण के साथ ही इन कोषों की स्मृति भी बढ़ती रहती है और उसी स्मृति के अनुसार पृथ्वी पर मानव समेत सभी जीव-जन्तु, वनस्पतियोंका निर्माण हुआ है। मनुष्य के समस्त जीवन, धर्म अर्थ काम और मोक्ष तक का प्रवास, कोषों में दर्ज स्मृतियाँ ही तय करती है। मनुष्य कोषों में दर्ज स्मृति अपनी भविष्य की पीढ़ी को भी देता है। इसीलिए हमारी शारीरिक और मानसिक बनावट हमारे पूर्वजों की तरह होती है। पूर्वजों की बीमारियाँ भी हमे इसी वजह से मिलती है।
मन में उठने वाले सकारात्मक विचारों से सकारात्मक स्मृतियों बनती है जो मनष्य को धर्म मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। मनुष्य को ज्ञानवान, कर्मशील और पुरुषार्थी बनाती है। सभी प्राणियोंके जीवन के अधिकार का सम्मान करना सिखाती है। दूसरी ओर नकारात्मक विचार नकारात्मक स्मृतियाँ बनाते हैं जो हमारे शरीर में स्थित सूष्म कोषों को भ्रमित करती हैं। भ्रमित कोष शरीर को ही शारीरिक और मानसिक हानी पहुंचाने लगते हैं। मनुष्य ज्ञानहीन, कर्महीन, अधर्मी और हिंसक बन जाता है। युद्ध, रोग आत्महत्या इत्यादि का मुख्य कारण मन में उठने वाले नकारात्मक विचार ही है।
मनुष्य जाती का अस्तित्व ही सकारात्मक विचारों पर टिका है। नकारात्मक विचार हिंसा को जन्म देते हैं और धरती के समस्त जीवन को नष्ट कर सकते हैं। इसलिए सकारात्मक सोचो इस से हमारे सूष्म कोष सृजन कार्य में व्यस्त रहे और पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व बना रहे।