सत्यवान कार्यालय में वह ख़ास फाइल पढ़
रहा था. अचानक हाल ही में निकली
अकल दाढ़ में दर्द होने लगा. जैसे-जैसे वह फाइल के
पन्ने पलटता गया, उसका दर्द बढ़ता गया. आखिरकार उसने
उस फाइल को दुबारा अलमारी में रख दिया. शाम को घर पहुँचने
पर उसने नमक के पानी से गरारे करे, लौंग भी चबाकर देखी, परन्तु दाढ़ का दर्द
कम होने की बजाय बढ़ता गया. सारी रात उसने दर्द में तड़पते हुए बितायी. सुबह होते ही सत्यवान दांतों के डॉक्टर के यहाँ
पहुंचा.
डॉक्टर ने उसके दांतों का मुआयना किया और कहा, अकल दाढ़ में अकल का
कीड़ा लगा है, इसे जड़ समेत उखाड़ना पड़ेगा.
सत्यवान ने डॉक्टर से कहा, बिना दाढ़ उखाड़े काम नहीं चल सकता क्या. डॉक्टर ने हँसते हुए कहा, सत्यवान यह अकल का
कीड़ा बड़ा खतरनाक है, इसे जड़ समेत ही उखाड़ना पड़ता है, अन्यथा यह दिमाग में घुस जयेगा
और वहां पहुंचकर अकल के तारे तोड़ने लगेगा.
जानते हो इसका क्या नतीजा होगा, तुम्हारी सफ़ेद कमीज दागदार हो जायेगी. कुछ
दिनों में चेहरे पर भी कालिख पुत जाएगी. बिना पेंशन नौकरी
से रिटायर हो जाओगे. दर दर की ठोकरे खानी पड़ेगी, भीक मांगने की नौबत आ जाएगी.
डॉक्टर की बात सुन, सत्यवान की आंख के आगे तारे चमकने लगे, ‘अल्ला के नाम पर एक
रुपया दे दे, भगवान् तुम्हारा भला करे’ जैसी आवाजे उसे सुनाई देने लगी’ वह चिल्लाया
नहीं नहीं, डॉक्टर साहब, मुझे भीक नहीं
माँगनी है, निकाल दो उस अकल के कीड़े को जड़ समेत.
डॉक्टर ने अकल दाढ़ में इंजेक्शन लगाकर उसे सुन्न कर दिया और अकल के
कीड़े समेत उसे जड़ से उखाड दिया. सत्यवान
का दर्द गायब हो गया. वह घर आया, ठन्डे पानी से स्नान किया. बाल संवारने के लिए
दर्पण के सामने खड़ा हुआ. उसने दर्पण में अपना चेहरा देखा, वह चौंक गया, दर्पण में
उसका चेहरा उसे स्याह नजर आ रहा था.