राजा विक्रमादित्य सत्ता को केवल वैभव या प्रतिष्ठा के लिए प्राप्त नहीं चाहता था। वह सत्ता का उपयोग जनता के दुःख, गरीबी और अन्याय को दूर करने के लिए करना चाहता था। वह मंत्रियों और अधिकारियों लूट को बंद कर जनता का भला करना चाहता था। उसने निश्चय किया कि वह राज्यलक्ष्मी की आराधना करेगा और उसकी कृपा से प्राप्त सत्ता का उपयोग जनकल्याण के लिए करेगा। सत्ता प्राप्त करने के बाद वह गरुड़ जैसी पैनी नजर रख शासन के भ्रष्ट मंत्री और भ्रष्ट अधिकारियों के अत्याचारों से जनता की रक्षा करेगा।
राजा की तपस्या से राज्यलक्ष्मी प्रसन्न हुई। शुभ मुहूर्त पर विक्रमादित्य सिंहासन की ओर बढ़ा। लेकिन सिंहासन तक पहुँचने के लिए सिंहासन की सीढ़ियों पर लगी उसे चार पुतलियों की परीक्षा पास करनी थी।
पहली सीढ़ी पर जैसे ही राजा विक्रमादित्य ने पैर रखा पहली पुतली (जिसके आँखों पर पट्टी थी) बोली: “राजा को बुराई नहीं देखनी चाहिए।” चाहे भ्रष्टाचार और अन्याय सामने हो, उसे अनदेखा करना होगा।" राजा ने आँखें ढँक लीं। दूसरी पुतली (जिसके कान ढँके हुए थे) बोली: “राजा को बुराई नहीं सुननी चाहिए।” राजा को यदि जनता की पीड़ा, किसानों की आत्महत्या, गरीबी की चीखें सुनाई दे तो राजा को कान बंद रखने होंगे।" राजाने कान ढँक लिए। तीसरी पुतली (जिसके होंठों पर उंगलीथी) बोली: “राजा को बुरा नहीं बोलना चाहिए।” चाहे मंत्री भ्रष्ट हों, राजा को मौन रहना होगा।" राजा ने मौन स्वीकार किया।
चौथी पुतली बोली: “अगर आँखें, कान और मुँह बंद भी कर लो, तो आत्मा बेचैन रहेगी। न्यायप्रिय राजा सत्ता खो देता है। अगर सत्ता चाहिए, तो अपनी आत्मा मुझे दे दो।” विक्रमादित्य ने चौथी पुतली को अपनी आत्मा अर्पित कर दी और वह सिंहासन पर बैठ गया।
जैसे ही वह सिंहासन पर बैठा, उसके सामने एक दिव्य दृश्य प्रकट हुआ: हरे-भरे खेत, मुस्कुराते किसान, गलियों में खेलते खुशहाल बच्चे, चहल-पहल से भरे बाज़ार, और एक शांत, समृद्ध समाज। दुख, गरीबी या अन्याय का कोई नामोनिशान नहीं था। हर घर में हँसी थी, हर दिल में उम्मीद, और हर कदम में खुशी। विक्रमादित्य को विश्वास हो गया राजलक्ष्मी का आशीर्वाद से उसे एक स्वर्ग जैसा राज्य प्राप्त हुआ है।
आज भी कई नेता सत्ता पाने से पहले ईमानदारी और जनसेवा की बातें करते हैं, लेकिन सत्ता मिलते ही बदल जाते हैं। सत्ता पाने के लिए अक्सर आत्मा गिरवी रखनी पड़ती है। उसके बाद राजा को जनता के दुख और दर्द दिखाई नहीं देते हैं।