गुरुवार, 24 जुलाई 2025

मतदान का अधिकार, हमारा हक


बिहार में चुनाव आयोग ने मतदाता सूचियों की जांच पड़ताल की। फलस्वरूप लाखों नाम मतदाता सूची से कट गए। लाखों लोगों का मताधिकार छिन लिया गया। उसी पर चार लाइन:

मरे हुओं की आत्माएँ 
भटकती है जहाँ।  
उन्हे भी हक है 
मतदान करने का वहाँ। 

घुसपैठीयों का पसीना 
बहता है जहाँ।
उन्हे भी हक है
मतदान करने का वहाँ। 

डुप्लीकेट मतदाता भी 
बढ़ाते हैं मतदान जहाँ। 
उन्हे भी हक है
मतदान करने का वहाँ।

मत बदलो मतदाता सूची
चुनाव आयोग वालों। 
लोकतंत्र की रक्षा के लिए 
नकली मतदान जरूरी है।



सोमवार, 21 जुलाई 2025

ऑपरेशन सिंदूर : ट्रम्प चाचा कोमा में

 

ऑपरेशन सिंदूर के बाद ट्रंप चाचा  कोमा में चले गए हैं। वो भ्रमित व्यक्ति की तरह बड़बड़ाने लगे हैं। भारत के खिलाफ अनाप-शनाब बड़बड़ाने लगे हैं।  उन्होंने हाल ही में कहा कि भारत-पाक युद्ध में कई जेट विमान गिर गए, लेकिन किसके थे, ये नहीं बता सके। अमेरिका के सैकड़ों उपग्रह और CIA भी उन्हें सही जानकारी नहीं दे सके। सच्ची जानकारी मिलने पर उन्हें एहसास हुआ होगा कि भविष्य में भारत को ब्लैकमेल करना संभव नहीं है। इसका मानसिक झटका उन्हें जरूर लगा होगा।

मेरे एक मित्र कट्टर मोदी विरोधी हैं। कल उन्होंने मुझे फोन करके कहा, "पटाईत, ट्रम्प  चाचा  फिर कह रहे हैं, भारत के जेट गिर गए।" ऐसा कहते हुए वो खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। मैंने जवाब दिया, "भारत के युद्धक विमान गिर गए और तुम खुश हो रहे हो?" मान लो  चाचा  ने अगर सच कहा है, पाकिस्तान ने भारतीय युद्धक विमानों को मार गिराया।  हमारे  पायलट पैराशूट खोलकर पाकिस्तान की जमीन पर उतरे, फिर वहां से ओला-उबर पकड़कर भारत लौट आए। वो बोला, "पटाईत, कुछ भी मत बोलो!" मैंने कहा, "गधे, फिर क्या कहूं? अगर विमान सचमुच गिरते, तो अभिनंदन की तरह कोई पायलट पकड़ा गया होता या उसका शव तो पाक मीडिया दिखाता। अगर भारतीय युद्धक विमान भारत में गिरे होते, तो मीडिया वहां पहुंच जाता और स्थानीय लोग वीडियो डालते। भारत में हर शहीद सैनिक को सलामी दी जाती है, यह तो तुम्हें पता ही है।  थोड़ा तो अपने दिमाग का इस्तेमाल किया करो। उसके बाद मेरे मित्र के सुर बदल गए। उसने पूछा, "तो चाचा  झूठ क्यों बोले?" मैंने जवाब दिया, " चाचा कोमा में चले गए हैं।" उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया है। 

किराना हिल्स में शायद चाचा के परमाणु हथियारों का भंडार हो। ऐसा कहा गया है की भारत ने वहां मिसाइल हमला नहीं किया।  लेकिन उस इलाके में हुए धमाकों के सैटेलाइट फोटो मीडिया में हैं। बाद में उस क्षेत्र में कई भूकंप भी आए। शायद परमाणु हथियार जमीन के अंदर ही फट गए हो। नूरखान बेस में ज़मीन के अंदर हथियार भंडार नष्ट हुआ। भारत ने दुनिया को दिखा दिया कि पाकिस्तान के हथियार सुरक्षित नहीं हैं। अगर वहां ट्रम्प चाचा के हथियार थे तो उनका कोमा में जाना तय ही था।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि उस  सुबह वे भारत पर हवाई हमला करने वाले थे, लेकिन उससे पहले ही भारत ने ब्रह्मोस मिसाइल से हमारे एयरबेस पर हमला कर दिया। हमें जवाब देने के लिए 30 सेकंड भी नहीं मिले। भरात के हमले में कई हवाई अड्डों की हवाई पट्टी और वहाँ  खड़े विमान नष्ट हो गए। हवाई अड्डों पर पाकिस्तान के विमान हमला करने की तैयारी कर रहे थे, भारतीय हमले के समय वे असुरक्षित थे। बचाव का कोई उपाय ही नहीं था। कम से कम 30-40 विमानों को नुकसान हुआ होगा। सही आंकड़ा शायद कुछ सालों बाद पाकिस्तान बताएगा। भारत की सटीक हमला करने की क्षमता देखकर चाचाजी को झटका लगना स्वाभाविक था।

हाल में हुए इज़राइल-ईरान युद्ध में अमेरिका की आधुनिक सुरक्षा प्रणाली हज़ारों किलोमीटर दूर से आ रहे मिसाइलों और ड्रोन को नहीं रोक सकी, जबकि भारत ने 25-50 किलोमीटर दूर से आ रहे मिसाइलों और ड्रोन को रोक दिया। भारत की सटीक सुरक्षा प्रणाली देख चाचाजी को ज़बरदस्त झटका लगा होगा।

ट्रम्प चाचा की तरह भारत में भी कुछ लोगों को गहरा धक्का लगा और उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया। भारत ने 9 आतंकी ठिकाने तबाह किए, वहां इतने आतंकी मारे गए कि एक आतंकी नेता ने कहा, "हम लाशें गिनते-गिनते थक गए। हमारा दर्द कोई नहीं समझ सकता।" पाकिस्तान के 11 एयरबेस नष्ट होने से इतना तो तय है, पाकिस्तान एक साल तक कुछ गड़बड़ नहीं कर सकता। भयंकर नुकसान होने के बाद भी पाकिस्तान ने जवाबी हमला न करके युद्धविराम स्वीकार किया। यानी बिना शर्त आत्मसमर्पण। फिर भी हमारे कुछ नेता कह रहे हैं कि भारत ने आत्मसमर्पण किया। शायद पाकिस्तान की हार का दुख उन्हें ज़्यादा हुआ होगा और वे भी ट्रम्प चाचा की तरह बड़बड़ाने लगें हैं। ईरान ने भारत को धन्यवाद दिया। उसका मुख्य कारण ईरान पर हमला करने के लिए कम से कम एक साल अमेरिका पाकिस्तान के हवाई अड्डों का इस्तेमाल नहीं कर पाएगा। 

अब ट्रम्प चाचा को भारत के साथ सभी व्यापारिक समझौते समानता के आधार पर करने की मानसिक तैयारी करनी चाहिए। उन्हें कोमा से जल्दी बाहर आना होगा। अब प्रधानमंत्री मोदी के भारत को कोई हल्के में नहीं ले सकता।


बुधवार, 16 जुलाई 2025

सनातन पर्व: काँवड़ यात्रा का आर्थिक महत्व

भारत में सनातन के सभी पर्व, तीर्थ यात्राएं इत्यादि का धार्मिक महत्व के साथ आर्थिक महत्व भी होता। सभी पर्व और यात्राएं समाजवादी अर्थव्यवस्था की प्रतीक है। इन पर्वों और यात्राओं के माध्यम से धन समाज के सभी तबकों तक पहुंचता है। आर्थिक चक्र को गति देता हैं। जिससे समाज का सर्वांगीण विकास होता है। इस साल हरिद्वार में कम से कम छह से सात करोड़ काँवड़ उठाने शिव के भक्त आएंगे। यह संख्या हम कम करके यदि पाँच करोड़ मान लेते हैं। इन काँवड़ यात्रियों में आधे ऐसे होने जो हर साल काँवड़ उठाते हैं और आधे वे होते हैं मनौती, संकल्प इत्यादि पूरा करने के लिए जो प्रथम बार काँवड़ उठाते हैं। 

काँवड़ उठाने वाले यात्री को नए जूते चप्पल खरीदने पड़ते हैं। शिव की तस्वीर लगी बनियान, अंगोछा,  टॉवल और कपड़े रखने के लिए एक बैग भी।  हरिद्वार पहुँचने के लिए ट्रेन, बस, टॅक्सी, ट्रक, रेलवे  इत्यादि का उपयोग करते होंगे। इसके लिए किराया देना पड़ता हैं।  कम से कम ढाई करोड़ लोगों 15 दिन के काल में एक दिन हरिद्वार रुकते होंगे। जिनमें से कम से कम एखाद करोड़ होटल धर्मशालाओं में भी रुकते होंगे। उन्हे भी रोजगार मिलता है। काँवड़ के लिए बांस का इस्तेमाल होता हैं। कई करोड़ बांस की जरूरत पड़ती है। बांस उगाने वालों से लेकर बेचने वालों को रोजगार मिलता है। कांवड़िए गंगाजल प्लास्टिक, पीतल, स्टील इत्यादि का प्रयोग करते हैं। उनको बनाने और बेचने वालों को रोजगार मिलता है । काँवड़ तैयार करने में भी कई लाख लोगों को रोजगार मिलता है। पाँच करोड़ लोग चार दिन भी यात्रा करेंगे तो मार्ग में उनके रुकने के लिए व्यवस्थाएं करनी पड़ती है। हजारो जगह  शिविर लगते हैं। टेंट वालों को रोजगार, डीजे वालों को रोजगार, जनेरेटर चलाने वालों को रोजगार,  बिजली वालों को रोजगार, हजारों  हलवाइयों को रोजगार, सभी जगह भगवान शिव और अन्य तस्वीरें लगी होती हैं। पूजा पाठ होता हैं। पूजा करनेवालों  को रोजगार, फूलों की खेती करने वालों और बेचने वालों को रोजगार, जागरण करने वालों को रोजगार, स्वांग भरने वालों को रोजगार, जूते चप्पल ठीक करने वाले मोचियों को भी रोजगार मिलता है। बीस से पच्चीस करोड़ पत्तल, दोने, चाय के कप का इस्तेमाल होता हैं। इन सभी को बनाने वालों और बेचने वालों को रोजगार मिलता हैं।  काँवड़ यात्रा के मार्ग में पड़ने वाले चाय की दुकान, ढाबे इत्यादि सभी को रोजगार मिलता हैं। फल, सब्जी, दूध, दही, पनीर सहित सभी खाद्य पदार्थों की बिक्री बढ़ जाती है। इससे भी रोजगार निर्मित होता है।  बड़े-बड़े सेठ धार्मिक आस्था और पुण्य कमाने के लिए शिविरों के निर्माण और भोजन इत्यादि पर हजारों करोड़ इन दिनों खर्च कर देते हैं। एक अनुमान कम से कम 20 से 25 हजार करोड़ के आर्थिक व्यवहार काँवड़ यात्रा के समय देश में होता है। 

काँवड़ यात्रा होती है, इसलिए हजारो मोची, हजारो पूजा पाठ कथा वाचकों को, स्वांग भरने वालों को, टेंट वालों को, डीजे वालों को, बिजली का काम  करने वालों को  ट्रक, टेम्पो, बस वालों को, रेलवे को, पत्तल बनाने वालों को,  बेचने वालों को, करोड़ों काँवड़ बनाने में कई लाख को रोजगार, किसानों को, साफ सफाई करने वालों इत्यादि को रोजगार मिलता है। अर्थव्यवस्था का नियम हैं जितने ज्यादा लोगों के पास पैसा पहुंचता है, उतना ही  पैसों का चक्र ज्यादा तेज घूमता हैं। जिनके पास पैसा आयेगा वह भी खर्च करेंगे, अप्रत्यक्ष रूप से लाख करोड़ का आर्थिक व्यवहार अकेली काँवड़ यात्रा की वजह से देश में होता है और कई लाख लोगों को रोजगार मिलता है। यह  रोजगार विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले हिन्दू ,मुस्लिम ,सिख, ईसाई सभी को मिलता हैं। काँवड़ यात्रा न हो तो यह आर्थिक गतिविधि नहीं होगी। लाखों लोगों का रोजगार डूब जाएगा। 

आखिर काँवड़ यात्रा करने वाले को क्या लाभ मिलता है। प्रतिदिन 50-60 किमी चलने से शारीरिक और मानसिक दृढ़ता आती है। कठिनाइयों से लड़ने की क्षमता विकसित होती है।  विभिन्न जाति, वर्ग, भिन्न-भिन्न भाषा-भाषी प्रान्तों  के लोगों से मिलना होता है। धार्मिक और सामाजिक समरसता फैलती है। कई गलतफहमियां दूर होती है। लोगों से संपर्क बढ़ता है। जिसका आर्थिक लाभ भी धंधे और रोजगार में होता है। 

कई महाविद्वान किताबी कीड़े जिन्हे अर्थव्यवस्था की समझ नहीं है, जो सनातन धर्म को समझते नहीं है, जिनके मन में सनातन धर्म के प्रति घृणा की भावना भरी है। वे ही काँवड़ यात्रा का विरोध करते हैं। आशा है, यह लेख पढ़ने के बाद आप भी काँवड़ यात्रा का समर्थन करेंगे और  शारीरिक रूप से स्वस्थ हो तो काँवड़  उठाने इस साल नहीं तो अगले साल जरूर जाएंगे।