मन में प्रश्न उठाना स्वाभाविक है, आखिर आचार्य बालकृष्ण का जन्मदिन जन्म दिन ही ‘जडी-बूटी दिवस के रूप में क्यों मानना चाहिए. आखिर उनका इस क्षेत्र में उनका क्या योगदान है. हमारे देश में १८००० से ज्यादा औषधि वनस्पतियाँ है. लगभग ११०० औषधि वनस्पतियों का उल्लेख विद्यमान आयुर्वेदिक ग्रंथो में मिलता है. लेकिन अधिकांश का उपयोग औषधि बनाने के लिए नहीं किया जाता है. कई औषधि पौधे तो विलुप्त मान लिए गए थे. परन्तु आचार्य बालकृष्ण ने सम्पूर्ण हिमालय सहित भारत के सभी वनक्षेत्र का भ्रमण कर या जानकारी प्राप्त कर ११०० औषधि वनस्पतियोंको न केवल खोजा अपितु पतंजलि योगपीठ के ‘हर्बल गार्डन’ पुनर्स्थापित कर अनेक औषधि वनस्पतियोंको लुप्त होने से बचा लिया.
आयुर्वेद में प्रयोग होने वाली वनस्पतियों पर आधुनिक मान्य तरीकोंसे अनुसन्धान न होने की वजह से दुनिया में आयुर्वेद को औषधि शास्त्र के रूप में मान्यता नहीं मिली है. दूसरी और चीन ने अपने यहाँ की वनस्पतियों पर संशोधन किया है और चीनी हर्बल औषधियों को अनेक देशोंमे ‘औषधि’ दर्जा मिला है. आयुर्वेद को औषधि शास्त्र का दर्जा मिले इसलिए आचार्य बालकृष्ण के नेतृत्व में पतंजलि अनुसन्धान संस्थान की स्थापना हुई.
पतंजलि अनुसन्धान संस्थान: भारतीय औषधीय वनस्पतियोंके संशोधन के लिए देश की सबसे आधुनिक प्रयोगशाला ‘पतंजलि अनुसन्धान संस्थान” की स्थापना की. जिसका उद्घाटन हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजीने किया था. आज तीनसौ से ज्यादा वैज्ञानिक यहाँ जडीबुटीयों पर अनुसन्धान कर रहे है. अनेक रिसर्च पेपर आन्तराष्ट्रीय स्तर के मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हो चुके है. गिलोय, तुलसी, अश्वगंधा इत्यादि पर हुए रिसर्च की वजह से ही करोना के उपचार की औषधि खोजी जा सकी. आज देश के करोडो लोग इन्ही औषधियोंका प्रयोग कर करोना से सुरक्षित हो चुके है. जैसे-जैसे औषधि वनस्पतियों पर अनुसन्धान आगे बढेगा. लोगोंका विश्वास आयुर्वेदिक औषधियों पर बढेगा. दुनिया में आयुर्वेद को मान्यता मिलेगी. देश की जनता को सस्ता इलाज मिलेगा और किसानों को औषधि वनस्पतियोंकी खेती से हजारो करोडोंका मुनाफा होगा.
विश्व हर्बल विश्वकोष: आचार्यजी को केवल अपने देश की नहीं अपितु पूरे विश्व के स्वास्थ्य की चिंता है. पृथ्वी पर लाखो वनस्पतियाँ है जिनमे औषधि गुण है. जिनके प्रयोग से लोग स्थानीय लोग औषधि वनस्पतियोंका प्रयोगकर स्वास्थ्य लाभ कर सकते है. परन्तु लोगोंको इनकी जानकारी नहीं है. इसी बिखरे हुए ज्ञान को विश्व हर्बल विश्वकोष के माध्यम से एकस्थान पर एकत्रित करने का यह प्रथम बड़े पैमाने पर प्रयास है. ‘विश्व हर्बल विश्वकोष’ में ६० हजार से ज्यादा औषधि वनस्पतियों की जानकारी १०० खंडो में दुनिया भाषओंमे में उपलब्ध की जाएगी. जिसमे से १२ खंड अबतक प्रकाशित हो चुके है.
पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन हर्बेरियम: आचार्यजी के मार्गदर्शन में पतंजलि ने हरिद्वार में हर्बेरियम की स्थापना की है. जहाँ हिमालय और गंगा के मैदानमें मिलने वाले १०००० हजार पौधोंका हर्बेरियम शीट पर सुरक्षित किया है. जहाँ शोधकर्ता और विद्यार्थी अल्प शुल्क में पौधोंकी पहचानना सीखते है और उन्हें प्रमाणपत्र दिया जाता है. हम सभी जानते है पौधोंकी पहचान औषधि वनस्पतियोंको सुरक्षित करने में बड़ी भूमिका निभाती है.
प्लांट इलस्ट्रेशन का संग्रहालय: आचार्यजी के नेतृत्व में दुनिया में पहली बार एक जगह पर औषधिय पौधोंके चित्र और लाइन आरेखोंका एक विशाल संग्रह प्रदर्शित किया गया है. इस संग्रहालय में ड्राइंग शीटस पर ३०००० कैनवास पेंटिंग्स और ३५००० हजार काले और सफ़ेद रेखाचित्र हर्बल एन्साइक्लोपीडिया के अनुसार प्रदर्शित किये गए है. जिसका छात्रों और शोधकर्ता और अनुसंधानकर्ताओंको फायदा होगा.
गत दशक से आचार्यजी के प्रयास से ही भारत में औषधि जड़ीबुटीयों का रोपण बढ़ा है. देश में हरियाली बढ़ी है, एक छोटासा उदा. दिल्ली शहर में ही हजारो लोगोंने अपनी बालकनी या छतों पर गमलोंमे गिलोय एलोविरा, तुलसी इत्यादी लगायी हुई है. जड़ीबूटियों के क्षेत्र में उनके अतुलनीय योगदान को देखते हुए उनका जन्मदिवस जडीब-बूटी दिवस के रूप में मानना सर्वथा उचित है. ४ अगस्त को हम सब संकल्प ले की कम से कम एक औषधि पौधा हम अपने घर लगाये और पड़ोसियों को उपहार में दे.