बुधवार, 19 अप्रैल 2023

वार्तालाप : वर्ल्ड हर्बल इनसाइक्लोपीडिया क्या है भाई?


करीब चार साल बाद मुझे दिल्ली के पुस्तक मेला देखने का मौका मिला। तीन-चार किताबें खरीदीं। अचानक मेरा ध्यान बहुत सुंदर आवरण और महीन कागज पर छपे विश्व हर्बल विश्वकोश के एक खंड की ओर गया।  मुझसे रहा न गया पुस्तक उठाकर उसके पन्ने पलटने लगा। मैंने वनस्पति विश्वकोश का ब्रोशर भी मांग लिया।  ब्रोशर में विश्व हर्बल विश्वकोश के 109 खंडो के बारे विस्तृत जानकारी थी। बीते 100 वर्षोंमे वनस्पति जगत में जो दुनिया में काम हुए हैं, उसमे यह वनस्पति विश्वकोश भी एक है।  यह कार्य विश्व में पहली बार भारत की किसी संस्था द्वारा किया जा रहा है। जिसपर हमें गर्व होना चाहिए।   

वनस्पति विश्वकोश औषधीय पौधों का एक बहु-विस्तृत संग्रह है। इस विश्वकोश का उद्देश्य दुनिया भर में फैले सभी पारंपरिक औषधीय पौधों के ज्ञान और उनके व्यापक उपयोग को एक पुस्तक में एक साथ लाना है। दुनिया भर में कुल 3.6 लाख पौधों की विविधता उपलब्ध है और इनमें से लगभग 60,000 पौधों का उपयोग दुनिया की पारंपरिक औषधीय प्रणालियों में किया जाता है। भविष्य में इन जड़ी-बूटियों का उपयोग मानव जाति के लाभ के लिए किया जा सकता है और आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधानों द्वारा विभिन्न रोगों के लिए दवाएं तैयार की जा सकती हैं। एक अन्य उद्देश्य भारतीय पारंपरिक औषधीय ज्ञान को पेटेंट चोरों से बचाना है।

वनस्पति विश्वकोश में दुनिया भर में बोली जाने वाली लगभग 1,700 क्षेत्रीय भाषाओं में दुनिया के लगभग 60,000 औषधीय पौधे, 7500 वनस्पति वंश, 6 फ़ाइलोजेनेटिक समूहों में 50000 पौधों की प्रजातियाँ, 1024 टेरियोफाइट्स, 850 कवक, 274 ब्रायोफाइट्स, 378 शैवाल, 44794 एंजियोस्पर्म, 536 जिम्नोस्पर्म शामिल हैं। इसमें 6 लाख ग्रंथ सूची स्रोत, 2.5 लाख पौधों के पर्यायवाची शब्द, 12 लाख स्थानीय नाम, 1300 ज्ञात रोगों के लिए 2200 से अधिक दवाएं भी शामिल हैं। इसके अलावा प्रामाणिक 30500 कैनवस पेंटिंग, 35000 औषधीय पौधों के रेखाचित्र हैं। इसके अलावा, इसमें यूरोपीय, अमेरिकी, अफ्रीकी, ऑस्ट्रेलियाई और एशियाई औषधीय प्रणालियों और उनमें इस्तेमाल होने वाली दवाओं के लिए अलग-अलग खंड हैं। अंतिम खंड में एक उपसंहार है।

यह विश्वकोश 109 खंडों में पूरा होगा। इस विश्वकोश के निर्माण में  25 पोस्ट डॉक्टरेट, 50 पीएचडी धारक, नैदानिक ​​शोधकर्ता, वनस्पतिशास्त्री, टैक्सोनोमिस्ट, माइक्रोबायोलॉजिस्ट, बायोटेक्नोलॉजिस्ट और अन्य वैज्ञानिकों सहित 900 वैज्ञानिक शामिल हैं। इसके अलावा 31 आईटी विशेषज्ञ और अन्य 120 आयुर्वेदिक डॉक्टर, 40 भाषाविद हैं। इन सभी के समन्वय में सैकड़ों निःस्वार्थ कार्यकर्ता और कर्मचारी शामिल हैं। दिलचस्प बात यह है कि अधिकांश वैज्ञानिकों ने अल्प वेतन पर या सेवा के रूप में काम किया है। अन्यथा इस कार्य को पूरा करना असम्भव हो जाता है। इस विश्वकोश के अब तक 70 खंड प्रकाशित हो चुके हैं। पहले खंड का विमोचन  माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा 3 मई 2017 के द्वारा हुआ था। 

आचार्य बालकृष्ण ने 15 साल पहले इस काम को करने का संकल्प लिया था। लेकिन यह काम हिमालय पर चढ़ने से भी ज्यादा कठिन है। यह एक अलग विषय है लेकिन आचार्य बालकृष्ण बिना ऑक्सीजन के हिमालय की 25000 फीट ऊंची पर्वत चोटी (रक्तवर्ण हिमाद्रि की चोटियाँ) पर चढ़ चुके  हैं। हिमालय का पुत्र होने के कारण यह कार्य उनके लिए कठिन नहीं था। उनकी 15 से अधिक वर्षों की तपस्या और दुनिया भर में वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में काम कर रहे संगठनों की मदद से यह महत्वपूर्ण कार्य पूर्णता की ओर अग्रसर है।

यह काम एक-एक कदम बढ़ते हुए  शुरू किया गया। सबसे पहला काम था आयुर्वेद में इस्तेमाल होने वाले पौधों का पता लगाना। आज आयुर्वेद में लगभग 700 जड़ी बूटियों का उपयोग किया जाता है। लेकिन औषधियों की वास्तविक संख्या जानने के लिए आयुर्वेद में प्रयुक्त होने वाली औषधियों का पता लगाना आवश्यक है। इसके लिए देश-विदेश में सुरक्षित पांडुलिपियों की खोज कर उन्हें डिजिटाइज करने का कार्य किया गया। 50801 ताड़पत्र पांडुलिपियों सहित 60000 से अधिक पांडुलिपियों सहित 63 लाख से अधिक पृष्ठों का डिजिटलीकरण किया गया। इसमें आयुर्वेद सहित 18 विषय हैं। पतंजलि ने दो दर्जन से अधिक प्राचीन आयुर्वेदिक पुस्तकोंका प्रकाशन भी किया। इन पुस्तकों से आयुर्वेदिक शिक्षकों, छात्रों और दवा निर्माताओं को लाभ होगा। इसके अलावा पेटेंट हासिल करने और भारतीय हितोंकों सुरक्षित करने में मदद मिलेगी। यह कार्य अब भी जारी है। भारत में पाए जाने वाले 20000 पौधों में से 1000 से अधिक जड़ी-बूटियों का उपयोग भारत की विभिन्न पारंपरिक औषधीय प्रणालियों में किया जाता है। आचार्य बालकृष्ण के अनुसार भारत में और 5 से 7 हजार पौधों की जड़ी-बूटी के रूप में खेती की जा सकती है। इसके लिए शोध की जरूरत है।

पतंजलि हर्बल गार्डन: इस हर्बल गार्डन का मुख्य उद्देश्य भारत में उपलब्ध औषधीय पौधों का संरक्षण और प्रचार-प्रसार करना है। पूरे भारत से 1,000 से अधिक औषधीय पौधे, झाड़ियाँ, पेड़ और लताएँ वैज्ञानिक समुदाय और आम जनता दोनों द्वारा उपयोग की जाती हैं।

पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन हर्बेरियम (पीआरएफएच) न्यूयॉर्क बॉटनिकल गार्डन, यूएसए द्वारा मान्यता प्राप्त है। 2,000 हर्बेरियम शीट्स पर पूर्वी और पश्चिमी हिमालय और उच्च गंगा के मैदानों से भारत के विभिन्न हिस्सों से टेरिडोफाइट्स, जिम्नोस्पर्म और एंजियोस्पर्म के 10,000 पौधे। छात्र और शोधकर्ता दोनों मामूली शुल्क देकर यहां पौधे की पहचान का प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकते हैं।

वैदिक नामकरण प्रणाली: दुनिया में 3.6 लाख पौधों की प्रजातियाँ हैं और उनके वैज्ञानिक नाम लगभग 13 लाख तक पहुँचते हैं। यह स्थिति  भ्रम पैदा करती है। इसके अलावा वनस्पति विज्ञानियों को पौधों के नाम याद रखने में कठिनाई होती है। संस्कृत एक वैज्ञानिक भाषा है। भाषाविदों और आयुर्वेदिक दिग्गजों की मदद से "वैदिक नामकरण प्रणाली" विकसित की। वैदिक नामकरण पौधों की बाहरी और शारीरिक विशेषताओं पर जोर देता है और इस तरह से सार्थक तरीके से क्यूरेट किया गया  कि पौधों की पहचान बिना किसी विशेष उपकरण के उपयोग के की जा सकती है, इसके अलावा पौधों के लिंग और फाईलोजेनेटिक समूह को निर्दिष्ट किया जा सकता है। इसके अलावा, भविष्य में खोजे गए पौधों को भी नाम दिया जा सकता है, इस प्रकार वैज्ञानिक समुदाय के लिए एक उपयोगी डेटाबेस तैयार किया जा सकता है। वनौषधि एनसाइक्लोपीडिया दुनिया के लगभग 60,000 औषधीय पौधों के लिए एक पूर्ण नई संस्कृत नामकरण (द्विपद पैटर्न में) प्रदान करने वाली पहली पुस्तक है। नामकरण की उत्पत्ति के लिए वैज्ञानिक आधार के साथ परिवार से लेकर जीनस और प्रजाति स्तर तक का है । वैदिक नामकरण के प्रयोग को अन्तर्राष्ट्रीय शोध पत्रों ने स्वीकार किया है।

औषधीय पौधों के चित्रों का संग्रहालय: विश्वकोश बनाने में सबसे बड़ी समस्याओं में से एक पौधों के चित्र थे। उपलब्ध तस्वीरों या चित्रों में से अधिकांश के कॉपीराइट होने की संभावना थी। इसके अलावा इनकी प्रमाणिकता पर भी प्रश्नचिन्ह लग सकता था। अत: वनस्पति विश्वकोश में इस्तेमाल के लिए  दुनिया के सभी औषधीय पौधों के नए  सिरे से कैनवास पेंटिंगस बनाने का निर्णय लिया गया। कई वनस्पति विज्ञानियों और चित्रकारों की मदद से 35,000 कैनवस पेंटिंग और औषधीय पौधों के 30,000 रेखाचित्र बनाए गए। इस काम में कई साल लग गए। इन चित्रों का उपयोग हर्बल विश्वकोश में किया गया  है। यह संग्रह  औषधीय पौधोंका विश्व का सबसे बड़ा संग्रहालय है

वनस्पति विश्वकोश, वनस्पतिशास्त्रियों, पारम्परिक चिकित्सकों/चिकित्सकों के लिए उपयोगी होगा। यह विश्व की विभिन्न जड़ी-बूटियों पर शोध के नए रास्ते खोलेगा। इससे बढ़ते हर्बल दवा उद्योग विशेषकर आयुर्वेद को लाभ होगा। विश्व हर्बल विश्वकोश का प्रत्येक खंड 800 से 1000 पृष्ठों का है। प्रत्येक खंड की लागत लगभग 7000 रुपये है। प्रश्न पूछे गए और उत्तर दिए गए, एक विश्वकोश के निर्माण में शामिल समय, जनशक्ति और करोड़ों का  खर्च  को देखते हुए, लागत बहुत कम है। बिना किसी की मदत पतंजलि ने खुद यह कार्य किया है। 

रविवार, 16 अप्रैल 2023

आर्थिक युद्ध: भारतीय शहद को बदनाम करने का षडयंत्र

गत 15 वर्षों में भारत में शहद का उत्पादन 27000 एमटी से बढ़कर 1,33,200 एमटी (2022) तक पहुँच गया है। सन 2030 तक इसे दुगना करने का लक्ष्य है। भारत उत्पादन का आधे से ज्यादा शहद निर्यात करता है। जाहीर है भारत के इस उद्योग में बढ़ते कदम का नुकसान विदेशी उत्पादकों को होगा ही। भारतीय शहद उद्योग को धक्का पहुँचने के लिए  भारत की बड़ी कंपनियों के शहद के बारे में भारतीय जनता में भ्रम फैलाया का कार्य करना ही आर्थिक युद्ध है। इसके तहत भारत में शहद बनाने वाली बड़ी कंपनियों को भारत में ही बदनाम कर दिया जाए।  हमारे देश की पढ़ी-लिखी जनता भी यूरोप से कोई रिपोर्ट आई तो उसपर  बिना सोचे समझे  आंख बंद करके भरोसा करती है। इसके सिवा हम भारतीय पैसे के लिए चाहे नौकरशाह हो, पत्रकार हो या तथाकथित एनजीओ आसानी से बिक जाते है। भारतीय कंपनियों के शहद को भारत की प्रयोगशालाओं नकली सिद्ध करना संभव ही नहीं। तो यूरोप में ही सही। एक भारतीय एनजीओ की मदत से यह कार्य यूरोप के  गत वर्ष यूरोप में हुआ। 

हम सभी जानते हैं भारत गर्म देश है। यहां के फूलो में खुशबू और मिठास होती है। भारतीय शहद औषधि गुणों से भरपूर होता है। इसी कारण  अमेरिका जैसा देश जो दुनिया का सबसे ज्यादा शहद उत्पादन करता है वह भी भारत से सबसे ज्यादा शहद खरीदता है। अब यूरोप की बात करे अधिकांश भाग ठंडा है। वहाँ के फूलों में खुशबू और मिठास नहीं होती। अत: यूरोप के शहद का मापदंड अलग है। इसी आधार पर भारतीय शहद के बारे में भ्रम फैलाया जा सकता था। यूरोप एक देश की एक छोटी प्रयोगशाला जिसके पास ३०० फूलोंके मार्कर थे जिसमे से ८५ प्रतिशत यूरोपियन फूलों के थे। भारतीय शहद के बारे में भ्रम फैलाने के लिए इसी प्रयोगशाला का उपयोग हुआ। भारत के एनजीओ के मुताबिक भारत  के सभी प्रमुख ब्रांड के शहद उस प्रयोगशाला में टेस्ट किए और रिपोर्ट के अनुसार यूरोपियन मापदंड के अनुसार अधिकांश बड़े भारतीय ब्रांड के शहद में मिठास ज्यादा थी। वह यूरोपियन मापदंड के अनुसार नहीं थे।   

बस फिर क्या भारतीय मीडिया में इस रिपोर्ट को उछाल दिया। मीडिया ने भी बिना विचार किए  पाँच की पंचायत में  इस पर चर्चा की। भारतीय ब्रण्ड्स को बदनाम किया। मजेदार बात  हमारे उपभोक्ता मंत्रालय ने भी वेब साइट पर उस रिपोर्ट को डाल दिया।  किसी ने प्रश्न नही पूछा क्या सचमुच भारतीय शहद ही वहां टेस्ट हुए थे? क्या शहद बनाने वाली कंपनियों से सहमति ली गई थी? क्या उस प्रयोगशाला के पास कोई वैधानिक अधिकार था? वैधानिक नियमोंका पालन किया गया था?  जिन शहद उत्पादकों के पास खुद की प्रयोगशाला नहीं होती वह दूसरी लैब जिन्हे इस कार्य के लिए भारत सरकार ने अधिकृत किया है अपने शहद की क्वालिटी की जांच नियमित कराते है। सबसे बड़ा सवाल क्या उस लेब के पास भारतीय फूलोके मार्कर थे? क्या भारतीय मापदण्डों के अनुसार टेस्टिंग हुई थी? इन सभी के जवाब नकारात्मक मिलते। क्या उपभोक्ता मंत्रालय को भारत सरकार के fassai के मापदंड और अधिकृत प्रयोगशालाओं पर विश्वास नहीं है, या बात कोई दूसरी है।    

बाकी सवाल ना उठने का कारण मुझे बताने की जरूरत नहीं है। सभी समझदार लोग जानते हैं। परिणाम सभी भारतीय कंपनियों डाबर से पतंजलि को बड़े-बड़े विज्ञापन  प्रमाण पत्र सहित अखबारों टीवी पर देकर उनका शहर शुद्ध है यह बताना पड़ा। करोड़ों रुपए उनके इस में खर्च हुए। फिर भी बहुत से लोग इस रिपोर्ट पर  विश्वास करेंगे और माल में महंगे दामों पर निम्न दर्जे के विदेशी शहद खरीदेंगे।   

फेक और भ्रमित कारणे वाली रिपोर्ट्स कैसे तैयार की जाती है, इसका एक अंदाजा सभी को हो गया होगा।