शनिवार, 13 दिसंबर 2025

समर्थ विचार: (स्वामी बनो, कुत्ते मत बनो)

 
समर्थ रामदास कहते हैंसृष्टि में अनगिनत जीव हैं, परन्तु वे चार वर्गों में बाँटे जा सकते हैं: बद्ध, मुमुक्षु, साधक और सिद्ध। पहला प्रश्न है: बद्ध कौन है? बद्ध अर्थात् बाँधा हुआ जीव।
 
समझाने के लिए मैं एक उदाहरण देता हूँ। एक व्यक्ति अपने कुत्ते को जंजीर से बाँधकर घूमने ले जाता है। यदि कुत्ता प्रशिक्षित है तो वह मालिक के पीछे-पीछे चलता है। परन्तु अक्सर कुत्ता आगे भागता है और मालिक जंजीर पकड़े हुए पीछे-पीछे दौड़ता है। कभी-कभी कुत्ता जंजीर तोड़कर किसी को काट लेता है, और फिर झगड़े, खर्च, अदालत तक की नौबत आती है। मालिक को सुख नहीं मिलता, केवल दुःख मिलता है। वास्तव में मालिक ही कुत्ते के मोह में बंध जाता है। इसी प्रकार हमारी इन्द्रियाँआँख, कान, नाक, जीभ, स्पर्श, हाथ, पैरसब कुत्तों जैसी हैं। यदि हम इनके मोह में फँस गए तो हम इनके गुलाम बन जाते हैं। समर्थ कहते हैं:
 
अब बद्ध तो जानिए ऐसा
अंधों में अंध जैसा।
नेत्रविहीन दसों दिशा,
शून्याकार।
 
जिसके सामने केवल अंधकार है, उसे सही विचार समझ में नहीं आता। उसे धर्म, परोपकार, दान, भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, ध्यान, मोक्ष का पता नहीं होता। वह काम, क्रोध, अहंकार, ईर्ष्या और स्वार्थ में डूबा रहता है।

जैसे कोई विद्यार्थी मोबाइल गेम में इतना डूब जाए कि पढ़ाई भूल जाए, वैसे ही बद्ध जीव इन्द्रियों के मोह में जीवन का असली उद्देश्य भूल जाता है।
 
समर्थ कहते हैं कि ऐसा जीव शरीर, वाणी और मन से धन के पीछे लगा रहता है। स्वार्थ के लिए छल करता है, भ्रष्टाचार करता है, हिंसा करता है। अन्त में उसे अदालत, जेल और बीमारियों का सामना करना पड़ता है। इन्द्रिय सुखों का अधिक उपभोग शरीर और मन को रोगग्रस्त कर देता है।
 
समर्थ ने तीन सौ पचास वर्ष पहले जो बद्ध के लक्षण बताए थे, वे आज भी दिखते हैं। हम घर रहने के लिए नहीं, बल्कि एसी, टीवी, फ्रिज से सजाने के लिए बनाते हैं। स्नान स्वच्छता के लिए नहीं, सौन्दर्य के लिए करते हैं। भोजन पोषण के लिए नहीं, स्वाद के लिए करते हैंपिज़्ज़ा, बर्गर, चॉकलेट। कारें और वस्तुएँ केवल दिखावे के लिए लेते हैं। माता-पिता और बच्चे बोझ लगते हैं, पर कुत्ता पालकर शौक पूरा करते हैं।
 
आज बहुत लोग सोशल मीडिया परलाइक्सपाने के लिए भागते हैं। परन्तु अन्त में उन्हें शान्ति नहीं मिलती, बल्कि मानसिक तनाव बढ़ता है। यही बद्ध का लक्षण है।
 
यदि हम इन्द्रिय रूपी कुत्तों के गुलाम बन गए, तो परिणाम शरीर और मन दोनों पर पड़ते हैं। त्वचा रोग, अस्थमा, मधुमेह, हृदय रोग, कैंसर, लिवर-किडनी की खराबी, आँखों का अंधापनजीवन टूट जाता है और कमाया हुआ धन दवाइयों में डूब जाता है। मन अवसाद, चिंता, अनिद्रा, नशे में फँस जाता है; कुछ लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं। वृद्धाश्रमों में भीड़ बढ़ती है, जो टूटे रिश्तों की गवाही देती है।
 
अत्यधिक उपभोग से पृथ्वी का पर्यावरण बिगड़ता हैहवा-पानी विषाक्त होते हैं, जंगल नष्ट होते हैं, ऋतुओं का ताल बिगड़ता है। इसी लोभ से शासन की साम्राज्यवादी प्रवृत्तियाँ बढ़ती हैं, संसाधनों पर कब्ज़े के लिए युद्ध होते हैं, और मानवता को विनाशकारी परिणाम भुगतने पड़ते हैं।
 
बद्ध जीव संसार में असफल रहता है और परमार्थ भी प्राप्त नहीं कर पाता। उसकी स्थिति धोबी का कुत्ता घर का, घाट का जैसी होती है। समर्थ ने लगभग सौ बद्ध लक्षण बताकर हमें सावधान किया है। हमें इन्द्रियों के मोह में फँसकर इंद्रिय रूपी कुत्तोंका स्वामी बनना चाहिएकुत्ता नहीं.

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