समर्थ रामदास कहते हैं — सृष्टि में अनगिनत जीव हैं, परन्तु वे चार वर्गों में बाँटे जा सकते हैं: बद्ध, मुमुक्षु, साधक और सिद्ध। पहला प्रश्न है: बद्ध कौन है? बद्ध अर्थात् बाँधा हुआ जीव।
अंधों में अंध जैसा।
नेत्रविहीन दसों दिशा,
जैसे कोई विद्यार्थी मोबाइल गेम में इतना डूब जाए कि पढ़ाई भूल जाए, वैसे ही बद्ध जीव इन्द्रियों के मोह में जीवन का असली उद्देश्य भूल जाता है।
समर्थ कहते हैं कि ऐसा जीव शरीर, वाणी और मन से धन के पीछे लगा रहता है। स्वार्थ के लिए छल करता है, भ्रष्टाचार करता है, हिंसा करता है। अन्त में उसे अदालत, जेल और बीमारियों का सामना करना पड़ता है। इन्द्रिय सुखों का अधिक उपभोग शरीर और मन को रोगग्रस्त कर देता है।
समर्थ ने तीन सौ पचास वर्ष पहले जो बद्ध के लक्षण बताए थे, वे आज भी दिखते हैं। हम घर रहने के लिए नहीं, बल्कि एसी, टीवी, फ्रिज से सजाने के लिए बनाते हैं। स्नान स्वच्छता के लिए नहीं, सौन्दर्य के लिए करते हैं। भोजन पोषण के लिए नहीं, स्वाद के लिए करते हैं — पिज़्ज़ा, बर्गर, चॉकलेट। कारें और वस्तुएँ केवल दिखावे के लिए लेते हैं। माता-पिता और बच्चे बोझ लगते हैं, पर कुत्ता पालकर शौक पूरा करते हैं।
यदि हम इन्द्रिय रूपी कुत्तों के गुलाम बन गए, तो परिणाम शरीर और मन दोनों पर पड़ते हैं। त्वचा रोग, अस्थमा, मधुमेह, हृदय रोग, कैंसर, लिवर-किडनी की खराबी, आँखों का अंधापन — जीवन टूट जाता है और कमाया हुआ धन दवाइयों में डूब जाता है। मन अवसाद, चिंता, अनिद्रा, नशे में फँस जाता है; कुछ लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं। वृद्धाश्रमों में भीड़ बढ़ती है, जो टूटे रिश्तों की गवाही देती है।
बद्ध जीव संसार में असफल रहता है और परमार्थ भी प्राप्त नहीं कर पाता। उसकी स्थिति “धोबी का कुत्ता — न घर का, न घाट का” जैसी होती है। समर्थ ने लगभग सौ बद्ध लक्षण बताकर हमें सावधान किया है। हमें इन्द्रियों के मोह में न फँसकर इंद्रिय रूपी कुत्तोंका स्वामी बनना चाहिए — कुत्ता नहीं.


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