गुरुवार, 4 दिसंबर 2025

यक्षप्रिया का दारुण अंत

 

अलकानगरी कुबेर की समृद्ध राजधानी थी—सोने की सड़कें, रत्नों से जड़ी इमारतें। यहाँ सुंदरता ही मूल्य थी, और वैभव ही धर्म। लेकिन इस चमक के पीछे एक जहरीला सच छिपा था।

आषाढ़ का मेघ, वरुणराज के आदेश से, अलकानगरी की ओर बढ़ रहा था। उसके भीतर अमृत जैसा जल था, लेकिन प्रदूषण से वह अब ज़हर बन चुका था।

यक्षप्रिया, जो एक महल में रहती थी, अपने प्रेमी का संदेश पाने के लिए छत पर दौड़ी। उसे उसकी बातें याद आईं— “तू अंधेरे में भी बिजली जैसी चमकती है। तू तो साक्षात रंभा है। दीपक की क्या ज़रूरत?”

बारिश शुरू हुई, और वह पहली बार आषाढ़ की बारिश में भीगने लगी। लेकिन अचानक उसकी त्वचा जलने लगी। वह कमरे में भागी और दर्पण में देखा—तेजाबी पानी ने उसके चेहरे और शरीर को घायल कर दिया था। वह चीख उठी। क्या उसका प्रेमी अब भी उससे प्रेम करेगा? यक्षों के राज्य में सुंदरता ही स्त्री का गहना थी।

बारिश थमी, लेकिन ज़मीन पर पेड़ जल चुके थे, पक्षी मर चुके थे। मेघ ने नीचे देखा—एक स्त्री रक्त में लथपथ पड़ी थी। लोग कह रहे थे, “पति विदेश में है और इसे बारिश में भीगने का शौक था। क्या इसे चेतावनी नहीं मिली?” एक बोला, “अब जब सुंदरता नहीं रही, तो जीएगी कैसे?” दूसरा बोला, “हम सब इस ज़हरीले वातावरण में धीरे-धीरे मर रहे हैं। किसी को चिंता नहीं। राजा को इस त्रासदी का दोषी ठहराते हुए, भीड़ ने राजा कुबेर के खिलाफ नारेबाज़ी शुरू कर दी. 

मेघ को यक्ष की याद आई। वह रामगिरी पर संदेश की प्रतीक्षा कर रहा था। अब उसे क्या बताए? कुछ पल के लिए मेघ रुक गया। सोचा—पानी को समुद्र में खाली कर दूँ। लेकिन वरुणराज का आदेश याद आया—जो तय किया गया है, वही करना है। मेघ ने दो आँसू बहाए और आगे बढ़ गया।

 

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