शुक्रवार, 28 नवंबर 2025

भारतीय युद्ध: गांधार की विजयी गर्जना

 

(मध्यरात्री का समय  शकुनि अपने शिविर के एक कोने में चतुरंग की पट पर नजर गड़ाए विचारों में डूबा था।तभी एक आवाज ने सन्नाटा तोड़ा और उसके विचारों की श्रृंखला टूट गई)।

शकुनि (चौंककर): "दीदी? तुम यहाँ? इस रात के समय? तुम्हारी आँखों में आँसू... कहीं वो अंधे राजा के पुत्रों के लिए तो नहीं?"

गांधारी (शांत लेकिन दृढ़ स्वर में): "शकुनि, गांधार छोड़ते समय जो व्रत हमने लिया था, वो आज भी मुझे याद है। कौरव भले ही मेरे गर्भ से जन्मे हों, पर वे साँप के बच्चे हैं। गांधार के शत्रु के पुत्र। मैं उनके लिए आँसू नहीं बहाऊंगी। आज रणभूमि में शल्य मारा गया। युद्ध का अंत निकट है। (सिसकते हुए) तुमसे अंतिम बार मिलने आई हूँ... शायद कल रणभूमि में..."

शकुनि (उसका वाक्य बीच में काटते हुए, कटु हँसी के साथ): "हा! हा! हा!
मतलब मैं कल मरने वाला हूँ, बस यही ना? युद्ध के पहले दिन से ही यह सत्य हम दोनों को पता था। अब रोने का क्या मतलब? भारतीय युद्ध में अठारह अक्षौहिणी सेना नष्ट हो गई। तीन पीढ़ियाँ समाप्त हो गईं। हमारे गांधार का क्या नुकसान हुआ? गिनती के कुछ सैनिक, जिनमें हम भी शामिल हैं। इतिहास में कभी ऐसा हुआ है क्या?

अब कोई भीष्म की सेना गांधार में प्रवेश नहीं करेगी। कोई गांधारी अपने जीवन का बलिदान नहीं देगी। गांधार को अब भारत से डर नहीं है। मूर्ख भारतीय राजा सत्ता के लिए विदेशी ताल पर नाचते हैं—अब दुनिया को यह पता चल गया है। हस्तिनापुर में मूर्ख बुद्धिजीवियों की भरमार थी—इसलिए हमारा कार्य सफल हुआ। गांधारी, आँसू पोंछो। अब भविष्य की ओर देखो।

सप्तसिंधु क्षेत्र के मूर्ख हिंदू और बौद्ध राजा स्वार्थवश सिंधु नरेश दाहीर की मदद नहीं करेंगे। देखो, गांधार की अश्वसेना सप्तसिंधु को नष्ट करने के लिए तैयार है..."

(दोनों एक साथ गर्जना करते हैं) "गांधार की विजय हो!"

यह कथा भले ही पुरानी हो, पर भारत की गुलामी का सच्चा इतिहास इसमें छिपा  है। 

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