शुक्रवार, 21 नवंबर 2025

चित्रगुप्त का न्याय: सेल्फी लेने वाला बंदर बन गया

 
उसकी मृत्यु हो गई। उसकी आत्मा एक प्रकाशमार्ग से होती हुई चित्रगुप्त के दरबार में पहुँची। उसके सामने एक विशाल न्यायासन था, जिस पर चित्रगुप्त विराजमान थे। वे श्वेत वस्त्रों में, तेजस्वी और शांत दिखाई दे रहे थे। उनके सामने असंख्य ग्रंथ रखे थे—जिनमें पृथ्वी पर मौजूद हर मनुष्य के पाप और पुण्य का लेखा-जोखा दर्ज था।

चित्रगुप्त ने पूछा, “तुम कहाँ जाना चाहते हो?”

आत्मा ने उत्तर दिया, “मेरे जीवन में कई गलतियाँ हुईं, लेकिन अंत में मैं भगवान के दर्शन के लिए गया। मैंने उनके चरणों में क्षमा माँगी। मेरे पाप मिट गए। मुझे स्वर्ग मिलना चाहिए।”

आत्मा चौंक गया। “ऐसा कैसे हो सकता है? मैं मंदिर गया था। मैंने फोटो लिए, सेल्फी ली, रील बनाई। सबूत है!”

चित्रगुप्त मुस्कराए। “हाँ, सबूत है। तुमने मंदिर के सिंहद्वार के सामने सेल्फी ली थी। परिसर की मूर्तियों के साथ फोटो हैं। धार्मिक विधियों के वीडियो भी हैं। यहाँ तक कि देवता के दर्शन करते हुए क्षमा माँगने की रील भी है। लेकिन…”

चित्रगुप्त थोड़ी देर रुके। “तुम्हारा ध्यान केवल कैमरे पर था। क्षमा माँगते समय तुम्हारा अंतःकरण मौन था। तुम्हारी आँखों में भक्ति नहीं थी, केवल फ्रेम था। तुम्हारे मन में पश्चाताप नहीं था, केवल पोस्ट करने की जल्दी थी। इसलिए तुम्हारे पाप मिटे नहीं।”

आत्मा चुप हो गया। उदास हो गया।

चित्रगुप्त बोले, “मैं तुम्हें नरक नहीं भेजूंगा। मैं तुम्हें पृथ्वी पर वापस भेजता हूँ—दिल्ली के चिड़ियाघर में, एक बंदर के रूप में।”

“बंदर?” आत्मा चौंक गया।

“हाँ! वहाँ तुम बंदरों जैसी शरारतें करोगे। लोग तुम्हारे साथ सेल्फी लेंगे, फोटो खींचेंगे, रील बनाएंगे। जैसे तुमने देवता के सामने किया था। लेकिन अब तुम उनकी फ्रेम में रहोगे। लोग तुम्हारे रूप में हास्य, करुणा और विडंबना देखेंगे। तुम्हें अपना पूर्व जन्म याद आएगा— ‘मैंने भी ऐसा किया था, और अब उसका परिणाम भुगत रहा हूँ।’ तब यदि तुम सच्चे अंतःकरण से अपने पापों की क्षमा माँगोगे, तो अगले जन्म में तुम्हें स्वर्ग मिलेगा।”

अब आत्मा शांत था। 

उसे समझ आ गया था—सबूत फोटो नहीं होते, भावनाएँ होती हैं।
 

 

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