रविवार, 17 अक्तूबर 2021

ख़्वाब

 पतझड़  की रातों में

वासंती ख़्वाब देखता हूँ l

टेसू  फूलोंकी आग में

आज भी जलता हूँ l


अधूरे सपनोंकी 

टीस बड़ी गहरी हैl

  खुशियों के पलोंकी 

यादें बड़ी धुंधली हैl


मिट्टी में मिलकर भी 

जीने की आस हैl 

सपनोंको पूरा करने की 

चाह अभी बाकी हैl


 







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