सोमवार, 2 अगस्त 2021

ऋग्वेद: खगोल विज्ञान : पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है


आयं गौः पृश्निरक्रमीदसदन्मातरं पुरः। 

पितरंच प्रयन्त्स्व:॥

ऋषिका: सार्पराज्ञी, देवता: सार्पराज्ञी, सूर्य 

(ऋ. १०/१८९/१)

अर्थ: पृथ्वी गमन करती है। पृथ्वी आकाशगंगा रूपी माँ के घर में है। पृथ्वी अपने पिता सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है।


ऋग्वेद ज्ञान और विज्ञान की खान है। इस खदान में कई कीमती रत्न हैं। हमारे वैदिक ऋषि इस सत्य को जानते थे कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है, फिर भी हमने अपनी दास मानसिकता के कारण उन्हें श्रेय देने का प्रयास नहीं किया। यह लेख सभी को अपने वैदिक ज्ञान से अवगत कराने के लिए है।

प्रत्येक गतिमान वस्तु भी एक "गौ" है। यहाँ "गौ " शब्द का अर्थ पृथ्वी क्यों है? यह सवाल दिमाग में आएगा हीl उसीका स्पष्टीकरण:

ऋचा की दृष्टा ऋषिका का नाम सर्पाराज्ञी है।

प्रथम देवता का नाम भी सर्पाराज्ञी हैहमारी आकाशगंगा भी सर्पिल है। अंतरिक्ष में, वह एक सांप जैसी कुंडली मारी दिखाई देती है। इसलिए ऋषिका ने आकाशगंगा को सर्पाराज्ञी कहा होगा। (यह मेरा निष्कर्ष है)।
दूसरे देवता सूर्य है। भक्त अपने देवता की परिक्रमा करता है, यह हमारी प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा है। दृष्टा ऋषिका हमारी धरती पर रहने वाली मानुषी थी। हो सकता है कि वह दिन-रात खगोल विज्ञान का अध्ययन करती रही हो, विशेष रूप से अपनी आकाशगंगा का, शायद इसलिए उसका नाम सर्पाराज्ञी पड़ा होगा। आकाशगंगा और सौरमण्डल के अध्ययन के बाद उसने निकाले निष्कर्ष का वर्णन उपरोक्त ऋचा में किया। पृथ्वी के लिए उसने "गौ" शब्द का प्रयोग किया। उसीने सर्वप्रथम दुनिया को बताया की पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है।


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