मंगलवार, 17 जुलाई 2018

कविता : दक्खनी हवाएँ




दक्खनी हवाएँ
सुगंधी हवाएँ
प्राण जगे 
*चंद्रापीड के.

दक्खनी हवाएँ
विषैली हवाएँ
प्राण हरे
हिमालय के. 


टिप:  वसंत ऋतु में मलयगिरी की सुगन्धित वायु हिमालय स्थित मानसरोवर तक पहुँची  तब जन्म-जन्मान्तर  से सोये चंद्रापीड देह में चेतना का संचार होता है - कादंबरी.  

आज जहरीली और स्मागी हवाएँ हिमालय  के ही प्राण ले रही है.

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