पद्मावत महाकवि जायसी की अमर कृति है. यह आत्मा के परमात्मा के मिलन का प्रवास है. महाकाव्य के उपसंहार में पद्मावत का सार बताते हुए स्वयं महाकवि कहते है:
“तन चितउर, मन राजा कीन्हा हिय सिंघल, बुधि पदमिनि चीन्हा।
गुरू *सुआ जेई पन्थ देखावा बिनु गुरू जगत को निरगुन पावा?
नागमती यह दुनिया–धंधा।बाँचा सोइ न एहि चित बंधा।।
राघव दूत सोई सैतानू।माया अलाउदीं सुलतानू”।।
चित्तोडगढ यह प्रतिक है मानवी शारीर का. इस शरीर में रत्नसेन नाम का आत्मा विराजमान है. जिसके मन में परमात्मा से मिलन की इच्छा है. हिरामन नाम का तोता गुरु है. वह रत्नसेन को सिंहल द्वीप का रास्ता बताता है. सिंहल द्वीप मनुष्य के ह्रदय में स्थित है. इस सिंहल द्वीप में शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी पीते हैं. अर्थात यहाँ कोई किसी से घृणा नहीं करता. जिस ह्रदय में सभी प्राणियों के लिए प्रेम हो उसी ह्रदय में सात्विक बुद्धी रुपी पद्मावती निवास करती है.
शरीररुपी चित्तोड में तांत्रिक राघव चेतन नामका शैतान भी रहता है. उसके पास मायावी शक्तियां थी. उन शक्तियों से वह चंद्रमा की कला भी बदल सकता था. जैसे ही पद्मावती चित्तोड़ आती है, राघव चेतन को देश निकला दे दिया जाता है. अर्थात जिस ह्रदय में सात्विक बुद्धि जागृत हो जाती है. वहां मायावी शक्तियां निवास नहीं कर सकती.
अलाउद्दीन खिलजी प्रतिक है भोग एवं विलास में डूबे संसारिक माया से ग्रस्त ग्रस्त मर्त्य मानव का. वह दर्पण में पद्मिनी को देखता है. दर्पण आभासी होता है. इसमे केवल छाया दिखती है, सत्य नहीं. यह दर्पण मायावी जगत का प्रतिक है. दर्पण में दिखने वाली पद्मिनी भी आभासी है. इसी आभासी पद्मिनी हासिल करने के लिए अल्लाउदीन खिलजी चित्तोडवर आक्रमण करता है.
गुरु का मार्ग दर्शन, प्रेमपूर्ण हृदय आणि सात्विक बुद्धी (पद्मावती) की सहायता से रत्नसेन नाम की आत्मा का परमेश्वर से मिलन होता है.
राजपूत स्त्रियाँ हवन कुंडात सर्वस्व अर्पण करती है. राजपूत योद्धा संपूर्ण चित्तोडगढ़ को अग्नी को समर्पित कर युद्ध में मर्त्य शरीर की आहुती देते है. सर्वस्व अर्पण करने पर उन्हें भी अलौकिक प्रेम की प्राप्ती होती है.
संसारिक मोह माया को सत्य मानाने वाले अलाउद्दीन खिलजी क्या प्राप्त होता है. शरीर नष्ट हो जाने के पश्चात बाकि बचती है केवल मिट्टी या चिता की राख. अर्थात सांसारिक माया मोह में डूबा मनुष्य अलौकिक प्रेम को प्राप्त कर नहीं सकता. दुसरे शब्दों में वह परमात्मा को प्राप्त नहीं कर सकता. शायद पद्मावत का माध्यम से महाकवि यही कहना चाहते हो. मेरी नजर में पद्मावत अलौकिक प्रेम की विजय गाथा है.
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