शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2014

अनजानी कविता


प्रकृति का गीत
में नहीं गुनगुनाता.

प्यार के तराने
मुझे नहीं भाते.

भगवान से करुणा
मैने नहीं मांगी.

मुझे है दिखता
नग्न सत्य केवल
चीखता हूँ, चिल्लाता हूँ
कोई नहीं सुनता.

कभी कभी लगता है
मेरी कविता भी
मुझसे अनजानी है.

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